CG NEWS: अभी तक जैन धर्म को नहीं समझ पाए इसलिए हम खाने-पीने समेत अन्य भौतिक सुखों में लिप्त: विराग मुनि
CG NEWS: रायपुर। संसार के प्रति अंदर से उदासीन भाव से ही क्रिया करना चाहिए। हमने अब तक जैन धर्म को नहीं समझा, इसलिए आज हम खाने-पीने समेत अन्य भौतिक सुखों में लिप्त हैं। मनुष्य भव में जैन कूल में जन्म लेकर हमें इतनी अनुकूलता मिली है, उसके बाद भी प्रमाद में पड़े हैं। कर्म सत्ता कब यह अनुकूलता छीन ले, पता नहीं चलेगा। हमें इस भव में विरागी बनना है, ताकि मोक्ष प्राप्ति हो सके। दूसरों की संपत्ति देखकर हम दुखी और ईर्ष्या करने लगे हैं। जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है। मन में संतोष लाना होगा।
CG NEWS: एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी में श्री विनय कुशल मुनिजी महाराज साहब के पावन सानिध्य में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में विराग मुनि महाराज साहब ने ये बातें कही। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को आकर्षित करने अच्छे-नए के चक्कर में परंपराएं बदल रहे हैं। ऐसे करेंगे तो भावी पीढ़ी तक असल धर्म कैसे पहुंचेगा! इसी तरह चलता रहा तो धर्म का स्वरूप ही बदल जाएगा। सत्यानाश हो जाएगा। अगर हम फिर भी परिवर्तन कर रहे हैं तो क्या यह मान लिया चाहिए कि परमात्मा को देश-काल का ज्ञान नहीं था, क्योंकि उन्होंने तो कभी धर्म में परिवर्तन के लिए नहीं कहा। जिन शासन में अभी प्रवचन काल साढ़े 17 हजार साल चलना है। समय के साथ परिवर्तन का दौर इसी तेजी से चला तो महज 50 साल बाद धर्म ही नहीं बचेगा।
बुरे वक्त में जो अपनों को धन न दे
उसका धन धर्म कार्य में न लगाएं
मुनिश्री ने कहा कि आज भाई तभी तक साथ हैं, जब तक उनके मन का हो रहा है। जहां मन की न हो या धर्म निभाने की बात आ जाए, भाइयों में बंटवारा होते देर नहीं लगती। जो धन अपनों के बुरे वक्त में काम नहीं आता, वह धन भाव-भावांतर तक आत्मा की दुर्गति का कारण बनता है। जो व्यक्ति बुरे समय में अपनों का साथ न दे, उसका धन धर्म के कार्य में भी नहीं लगाना चाहिए। जीवन में पूरी कोशिश होनी चाहिए कि मन के परिणाम हमेशा पवित्र बने रहें।
आज मनुष्य की हालत चिंतामणि लेकर
घर-घर भीख मांगने वालों की जैसी है
मुनिश्री ने कहा, सभी धर्मों ने राग-द्वेष से बचने की नसीहत दी है। इन कषायों से बचने का पवित्रतम उपाय जैन धर्म में है। समस्या ये है कि हम धर्म को जानते तो हैं, समझते नहीं। धर्म आ गया तभी मानो जब गुण भी आए, वरना आपके पास जो है वह इन्फॉर्मेशन से ज्यादा कुछ नहीं। आज मनुष्य की हालत चिंतामणि रत्न लेकर घर-घर भीख मांगने वाली भिखारी जैसी है। दुर्लभ मानव जीवन में आत्मकल्याण की जगह हम भौतिक सुखों के पीछे भाग रहे हैं। ध्यान रखिएगा, भौतिक वस्तुएं कुछ समय के लिए आपका दुख दबा सकती हैं। सुख कभी नहीं दे सकतीं।
महान सिद्धि तप में तपस्वियों ने
किया बेला, इकतीसा जाप जारी
आत्मस्पर्शीय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष पारस पारख और महासचिव नरेश बुरड़ ने बताया कि महान सिद्धि तप के अंतर्गत गुरुवार को तपस्वियों का तेला रहेगा। बड़ी तपस्या के क्रम में 7 उपवास के तपस्वी कपिल बैद का बुधवार को धर्मसभा में श्रीसंघ की ओर से सम्मान किया गया। श्रीमति श्रद्धा बोथरा का 27वां उपवास रहा। सिद्धि तप के तपस्वियों की अनुमोदनार्थ 26 अगस्त को जन्माष्टमी पर सुबह 9 बजे से प्रार्थना होगी। यहां बॉम्बे से आए सुप्रसिद्ध संगीतकार नरेंद्र वाणीगोता ‘निराला’ द्वारा बोली बोली जाएगी। हम इसका लाभ उठा सकते हैं। मुकेश निमाणी और गौरव गोलछा ने बताया कि दादा गुरुदेव इकतीसा जाप के अंतर्गत हर रात 8.30 से 9.30 बजे तक श्री जैन दादाबाड़ी में प्रभु भक्ति का क्रम जारी है।