
CG NEWS: This famous flower and plant of Chhattisgarh on the verge of extinction..
बिलासपुर। ब्यूटिया मोनोस्पर्मा देता है संकेत कि मिट्टी की सेहत बिगड़ रही है। इससे भी महत्वपूर्ण यह कि वृक्ष की यह प्रजाति मेड़ के स्थिरीकरण के लिए आदर्श है। बेहद महत्वपूर्ण इस गुण के बावजूद जैसी उपेक्षा की जा रही है, उससे विलुप्ति की कगार पर है यह प्रजाति।
स्थान विशेष नहीं, हर जगह मिलने वाला ब्यूटिया मोनोस्पर्मा जिस गति से विलुप्ति की राह पर चल पड़ा है, उसे देखते हुए वानिकी वैज्ञानिक चिंता में आ चुके हैं। संरक्षण और संवर्धन मांग रही यह प्रजाति, वनसंपदा की सूची से भी बाहर है। अंतिम आस है उन किसानों से जिनकी भूमि पर बचे हुए हैं।
देता है यह संकेत

मिट्टी क्षारीय या अम्लीय ? बखूबी के साथ संकेत देता है ब्यूटिया मोनोस्पर्मा का वृक्ष। भूमि सुधार के लिए जरूरत भी इसकी मदद से जानी जा सकती है। मिट्टी की सेहत अच्छी या खराब ? इसकी मौजूदगी ही स्पष्ट संकेत देती है। यह बेहद अहम जानकारी देता है।
मददगार है ब्यूटिया मोनोस्पर्मा
मेड़ों का उपयोग भी विभिन्न फसलों के लिए किए जाने के चलन ने, मेड़ का प्राकृतिक स्वरूप बिगाड़ दिया है। यह बारिश के दिनों में टूटती, दरकती मेड़ के रूप में देखी जा सकती है। मूल स्वरूप में लाने और मेड़ों को स्थिर रखने के लिए ब्यूटिया मोनोस्पर्मा को ही मजबूत साथी माना जा रहा है।
यहां भी मददगार
पत्तियों का पाचन मान कम होता है। इसके बावजूद पशु आहार बनता है। फूल में टैनिन की भरपूर मात्रा होती है। इसलिए कपड़ा ईकाइयों की मांग रहती है। तना से निकलने वाला द्रव्य, दस्तरोधी औषधि बनाने वाली कंपनियां खरीदती हैं। आंतरिक छाल से जो महीन रेशा निकलता है उसकी पहुंच नाव उद्योग तक हो चली है।
वृक्ष का प्रत्येक भाग उपयोगी
पलाश या टेसू भारत के सुंदर फूलों वाले प्रमुख वृक्षों में से एक है। प्राचीन काल से ही इस वृक्ष के फूलों से ‘होली’ के रंग तैयार किए जाते रहे हैं। वृक्ष के प्रत्येक भाग जैसे तना, जड़, फल, फूल और बीज से दवाई बनाई जाती है। पेड़ से प्राप्त गोंद को ‘कमरकस’ या ‘किनो’ नाम से जाना जाता है।