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BIG NEWS : आखिर क्यों विकास से विनाश की ओर बढ़ रहा जोशीमठ ? सरकार से कहां हुई चूक ..

BIG NEWS: Why is Joshimath moving from development to destruction? Where did the government go wrong?

जोशीमठ के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गई हैं. मौसम बिगड़ने के बाद अब फिर से जिस खतरे की आशंका जताई जा रही थी, वो सच साबित होने लगी है. कई प्रभावित परिवार दावा कर रहे हैं कि बीती रात की बारिश के बाद उनके घरों में दरारें बढ़ी हैं. एक-एक करके लोगों के घर दरक रहे हैं. जिस घर में कुछ दिन पहले सबने नया साल मनाया, वही टूट गया.

लोग अपने घर को छूकर और देख रो रहे हैं. आज पूरा शहर खचा खच भवनों और इमारतों से भरा है. ऐसे में सवाल इस बात का है कि क्या जोशीमठ को इतने विकास की ज़रूरत थी? सवाल का जवाब जानने के लिए हमने पर्यावरणविद और भू-वैज्ञानिकों से बात की. सबने एक सुर में कहा कि हम हिमालय को बर्बाद कर रहे हैं.

आजतक से बातचीत में हिमालय बचाओ आंदोलन के पुरोधा, पर्यावरणविद, पद्मश्री-पद्मभूषण डॉक्टर अनिल जोशी कहते हैं कि विकास से किसी को कोई समस्या नहीं है, लेकिन विकास की नीति सही होनी चाहिये, आज हमारी नीतियों की वजह से हिमालय बर्बाद हो रहा है, प्रधानमंत्री को स्वयं इसमें दखल देकर हिमालय के लिए एक नई नीति बनानी चाहिए.

उधर उत्तराखंड के वरिष्ठ भू वैज्ञानिक डॉक्टर एमपीएस बिष्ट का मानना है कि 2009 में एनटीपीसी की टनल में टीबीएम मशीन फंसने से काफी समस्या हुई थी, लेकिन आज के समय में बिना साक्ष्य के नहीं कह सकते कि जोशीमठ का जिम्मेदार सिर्फ एनटीपीसी है. हालांकि डॉ. बिष्ट मानते हैं कि कुछ ही सालों में जिस तरह यहां भवन बने हैं, वह एक चिंता का विषय है.

प्रोफेसर यशपाल ने आजतक को बताया कि ज्यादा विज्ञान में जाए बगैर अगर आप आर्नोल्ड हैम और ऑगस्ट गैंसर की किताब थ्रोन ऑफ गोड्स और मिश्रा समिति 1976 की रिपोर्ट पढ़ लेंगे, उसमे में ही जोशीमठ का भविष्य पता चलता है, फिर सरकार ने इतने सालों से अनदेखी की.

उधर शासन के सचिव मीनाक्षी सुंदरम का कहना है कि मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट 1976 में आई थी, तब और अब काफी कुछ बदल चुका है, जोशीमठ के सिर्फ 20 प्रतिशत में समस्या है, बाकी सब ठीक है, हम और आप यहां है, कंस्ट्रक्शन वर्क को हम नहीं रोक सकते, यह सब पब्लिक के लिए हो रहा है.

पतंजलि योगपीठ के आचार्य बालकृष्ण ने भी जोशीमठ पर चिन्ता जताते हुए कहा कि जोशीमठ को किसी भी कीमत पर हमें खोने नही देना है, पहाड़ों में कंक्रीट के जंगल को थामना होगा. वहीं सचिव मीनाक्षी सुंदरम कहते हैं कि जोशीमठ में मकान बनाने के लिए कोई नक्शे की जरूरत नहीं पड़ती थी, हालांकि जोशीमठ नगर पालिका को इसमें देखना था.

उधर नगर पालिका अध्यक्ष शैलेन्द्र पंवार कहते हैं कि जिला प्राधिकरण बना लेकिन विरोध के चलते निरस्त कर दिया गया, यहां 100-100 साल से लोगों के घर हैं, ज़मीन है लेकिन बड़ी इमारते बनती गई और इसमें कोई कानून नहीं है. अब सवाल यह है कि अब तक जोशीमठ पर कई रिपोर्ट आ चुकी हैं लेकिन इसके बावजूद सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.

जोशीमठ भूस्खलन पर अब तक आई 5 रिपोर्ट

1976 में गठित हुई थी पहली समिति. इस रिपोर्ट को गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एमसी मिश्रा ने बनाई थी. इसमें जोशीमठ को भूस्खलन क्षेत्र पर बसा शहर पाया गया था और निर्माण पर रोक लगाने के सुझाव दिए थे. मिश्रा कमेटी ने यह भी कहा था की ढलानों से ना छेड़छाड़ हो.

2006 में दो रिपोर्ट आई. स्वप्नमिता के खुलासे में अलकनंदा किनारे भू कटाव की बात सामने आई थी. वाडिया इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में भी ऐसा खुलासा हुआ था.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने 2014 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. समिति ने अधिक व अनियंत्रित निर्माण को लेकर ध्यान खींचा था. 2022 में फिर 16 से 19 अगस्त के बीच सर्वे हुआ.

पिछले साल टीम ने सरकार को 28 पेज की विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट में शहर में ड्रेनेज और सीवरेज की व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए थे. वहीं आजतक की ग्राउंड रिपोर्ट पर हमने दिखाया कि कैसे निर्माण कार्य अभी तक जारी और पहाड़ों में लगातार ड्रिलिंग की जा रही है. यानी जोशीमठ दरक रहा है, लेकिन पहाड़ों की खुदाई जारी है.

खैर जोशीमठ में अब तक 131 परिवारों को खतरे से बाहर निकाला जा चुका है. 3000 से ज्यादा प्रभावित परिवारों को शासन ने 45 करोड़ की सहायता राशि स्वीकृत कर दी है. जोशीमठ के हालात पर उत्तराखंड सरकार लगातार एक्शन में है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उच्चस्तरीय बैठक कर रहे हैं. इन सबके बीच जोशीमठ के अलावा अन्य शहरों में मकानों में आ रही दरारों ने भी चिंता की लकीरें बढ़ा दी हैं.

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