पत्रकारों के लिए बनाए गए पत्रकार गृह निर्माण समिति/योजना में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का मामला सामने आया है। आरोप है कि पत्रकारों के नाम पर बनी इस योजना में गैर पत्रकारों को नियमों को ताक पर रखकर भूमि आवंटित कर दी गई, जबकि कई पात्र और सक्रिय पत्रकार आज भी भूमि से वंचित हैं।
इस गंभीर विषय को लेकर कई पत्रकारों ने संबंधित विभाग और जिम्मेदार अधिकारियों से लिखित शिकायतें की हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि बार-बार शिकायत के बावजूद आज तक न तो कोई ठोस जांच हुई और न ही दोषियों पर कार्रवाई।
कई सवाल, लेकिन जवाब नहीं
जब योजना केवल पत्रकारों के लिए है, तो गैर पत्रकारों को आवंटन किस आधार पर किया गया?
आवेदन की जांच, पात्रता सत्यापन और दस्तावेजों की जांच किसने की?
क्या इसमें अधिकारियों और समिति पदाधिकारियों की मिलीभगत है?
शिकायतों के बाद भी जांच से बचने की कोशिश क्यों?
पत्रकारों में आक्रोश
इस पूरे मामले को लेकर पत्रकारों में भारी नाराजगी है। उनका कहना है कि
> “जो योजना हमारी सुरक्षा और आवास के लिए बनाई गई थी, वही भ्रष्टाचार और सिफारिश की भेंट चढ़ गई। पात्र पत्रकार दर-दर भटक रहे हैं और गैर पत्रकार जमीन पर कब्जा जमाए बैठे हैं।”
गंभीरता से जांच की मांग
पत्रकार संगठनों ने मांग की है कि
पूरे आवंटन प्रक्रिया की उच्च स्तरीय और निष्पक्ष जांच कराई जाए
गैर पत्रकारों को किए गए आवंटन तत्काल निरस्त किए जाएँ
दोषी अधिकारियों/पदाधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो
पात्र पत्रकारों को न्यायसंगत रूप से भूमि आवंटन किया जाए
यदि इस मामले को इसी तरह दबाया गया, तो यह न केवल पत्रकारों के अधिकारों का हनन होगा बल्कि पूरी व्यवस्था की साख पर भी सवाल खड़े करेगा। अब देखना यह है कि प्रशासन इस गंभीर मामले पर कब तक आंख मूंदे बैठा रहता है।
