वर्क प्लेस पर गाली-गलौज और बदतमीजी नहीं है अपराध, जानिए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा
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दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यस्थल पर वरिष्ठों की डांट-फटकार को जानबूझकर अपमान नहीं माना जा सकता बशर्ते यह अनुशासन और कर्तव्यों से संबंधित हो। कोर्ट ने आईपीसी की धारा 504 के तहत कार्यस्थल पर गाली-गलौज या अशिष्टता को जानबूझकर अपमान नहीं माना। यह निर्णय एक आपराधिक मामले में दिया गया जिसमें कार्यवाहक निदेशक पर एक सहायक प्रोफेसर को अपमानित करने का आरोप था।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि कार्यवाहक निदेशक ने अन्य कर्मचारियों के सामने उसे डांटा था।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कार्यस्थल पर वरिष्ठ की ओर से डांट-फटकार को जानबूझकर किया गया अपमान नहीं माना जा सकता जिसमें आपराधिक कार्यवाही की जरूरत हो। साथ ही कहा कि ऐसे मामलों में व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाने की अनुमति देने के नतीजे बुरे साबित हो सकते हैं इससे कार्यस्थल पर आवश्यक अनुशासनात्मक माहौल बिगड़ सकता है।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि महज गाली-गलौज, अशिष्टता, बेरुखी या बदतमीजी आइपीसी की धारा 504 के तहत जानबूझकर अपमान नहीं मानी जाएगी।
शांति भंग करने से जुड़ी है धारा
आईपीसी की धारा 504 शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करने से संबंधित है। जुलाई, 2024 से इस धारा का स्थान भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 352 ने लिया है जिसके तहत अपराध में दो वर्ष तक कारावास का प्रावधान है।
शीर्ष अदालत ने यह फैसला बौद्धिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण के राष्ट्रीय संस्थान के कार्यवाहक निदेशक के विरुद्ध 2022 के आपराधिक मामले को खारिज करते हुए सुनाया। उन पर एक सहायक प्रोफेसर का अपमान करने का आरोप था।
क्यों पड़ी डांट और कर दिया केस?
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि कार्यवाहक निदेशक ने अन्य कर्मचारियों के समक्ष उसे डांटा था और फटकार लगाई थी क्योंकि उसने उसके विरुद्ध उच्चाधिकारियों से शिकायत की थी। साथ ही यह आरोप भी लगाया था कि कार्यवाहक निदेशक संस्थान में पर्याप्त पीपीई किट उपलब्ध कराने में विफल रहे, जिससे कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा पैदा हो गया था।
शीर्ष अदालत ने 10 फरवरी के अपने फैसले में कहा कि आरोप-पत्र एवं उसके साथ दिए गए दस्तावेज से आरोप काल्पनिक प्रतीत होते हैं और उन्हें आईपीसी की धारा 269 (लापरवाहीपूर्ण जिससे खतरनाक बीमारी फैल सकती है) व धारा 270 (जानलेवा बीमारी फैलाने का दुर्भावनापूर्ण कार्य) के तहत अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता। इसलिए आइपीसी की धारा 504 के तहत वरिष्ठ की फटकार को जानबूझकर अपमान नहीं माना जा सकता बशर्ते यह फटकार कार्यस्थल से संबंधित मामलों और अनुशासन व कर्तव्यों के निर्वहन से संबंधित हो।