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Jallianwala Bagh History : बर्बर खूनी दास्तां का गवाह है यह बाग, जानें जनरल डायर ने क्यों चलाई थी गोली

गुलाम भारत की कई दास्तां हैं, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। आज की पीढ़ी जब उन कहानियों( story) को सुनती है तो कभी रगो में खून दौड़ जाता है तो कभी गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है। कभी आंखों में आंसू आ जाते हैं, तो कभी क्रोध से भर जाते हैं। गुलाम भारत के इतिहास( history) में एक ऐसी खूनी दास्तां भी है, जिसमें अंग्रेजो के अत्याचार और भारतीयों के नरसंहार की दर्दनाक घटना( accident) है। हर साल वह दिन जब भी आता है, उस नरसंहार की यादें ताजा हो जाती हैं। शहादत का यह दिन 13 अप्रैल को होता है।

दरअसल, उस दिन जलियांवाला बाग(Jallianwala Bagh) में अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल( satyapal) व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी( arrest) के खिलाफ एक सभा का आयोजन किया गया था। हालांकि इस दौरान शहर में कर्फ्यू( curfew) लगा हुआ था। लेकिन कर्फ्यू के बीच हजारों लोग सभा में शामिल होने पहुंचे थे। कुछ लोग ऐसे भी थे जो बैसाखी( baisakhi) के मौके पर अपने परिवार के साथ वहीं लगे मेले को देखने गए थे।

जलियांवाला बाग नरसंहार कब हुआ था?

पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग नाम की एक जगह है। 13 अप्रैल 1919 के दिन इसी जगह पर अंग्रेजों ने कई भारतीयों (indians) गोलियां बरसाई थीं। उस कांड में कई परिवार खत्म( family) हो गए। बच्चे, महिला, बूढ़े तक को अंग्रेजो ने नहीं छोड़ा। उन्हें बंद करके गोलियों से छलनी कर दिया।

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