Chhattisgarhi Official Language Day Special : Even after 25 years, justice has not been done, neither in the medium of education nor in governance – Dr. Vaibhav Bemetariha
रायपुर। 28 नवंबर … छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस. 2007 में इसी तारीख को छत्तीसगढ़ विधानसभा में छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा देने विधेयक पारित हुआ था. विधेयक पारित होने के साथ ही जुलाई 2008 में छत्तीसगढ़ी भाषा को राजकाज की भाषा बनाने और प्राथमिक शिक्षा में लागू कराने छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का गठन किया गया. लेकिन 2 वर्ष बाद ही छल के साथ छत्तीसगढ़ी से बड़ी ई को गायब करते हुए आयोग का नाम छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग कर दिया गया. लेकिन वर्तमान में आयोग की स्थिति यह है कि बीते 7 वर्षों से आयोग बिना अध्यक्ष और सदस्यों के संचालित है. इस तरह देखा जाए तो पृथक राज्य छत्तीसगढ़ बनने के 25 साल और विधेयक पारित होने के 18 वर्ष बाद भी छत्तीसगढ़ी के साथ न्याय नहीं हो सका है.
दरअसल सरकारी सिस्टम में छत्तीसगढ़ी के साथ छल ही होता रहा है. इस छल को समझने के लिए राज्य गठन के साथ ही केंद्र और राज्य के बीच हुए पत्राचार के बारे में जानना होगा. 2001 से लेकर 2025 तक की विकास यात्रा में छत्तीसगढ़ी भाषा कैसे अपने घर में जूझ रही है इसे समझना होगा. और इसे बेहतर तरीके बताते-समझाते हैं छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए पूरी तरह से खुद को समर्पित कर चुके छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संरक्षक और राष्ट्रीय स्वयं सेवा संघ के पूर्व प्रचारक नंदकिसोर सुकुल.
नंदकिसोर सुकुल का कहना है कि देश में राज्यों का गठन भाषावार हुआ है. मध्यप्रदेश से अलग राज्य छत्तीसगढ़ का गठन भी भौगोलिक रूप में ही नहीं बल्कि भाषिक-साहित्यिक और सांस्कृतिक रूप में हुआ. छत्तीसगढ़ राज्य की पहचान उसकी महतारी अस्मिता छत्तीसगढ़ महतारी से है, मातृभाषा है, संस्कृति से है. इसी पहचान के चलते केंद्र सरकार की ओर से राज्य सरकार को 2001 यह पत्र लिखा गया था कि छत्तीसगढ़ राज्य को किस श्रेणी में रखा जाए ? क श्रेणी में या ख श्रेणी में ?
यहाँ यह भी जान लीजिए कि देश में राज्यों के लिए भाषा आधार पर तीन श्रेणियाँ बनाई गई है. इसमें क श्रेणी में हिंदीभाषी राज्य हैं. ख श्रेणी में क्षेत्रीय भाषा और हिंदी भाषी राज्य और ग श्रेणी में पूरी तरह से क्षेत्रीय भाषी राज्य. इस आधार पर छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से केंद्र सरकार को यह जवाब प्रेषित किया जाना था कि छत्तीसगढ़ राज्य को ख श्रेणी में रखा जाए. क्योंकि छत्तीसगढ़ राज्य की पहचान छत्तीसगढ़ीभाषी राज्य के रूप में है. छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी राज्य की मुख्य भाषा और संपर्क भाषा. राज्य में छत्तीसगढ़ी के साथ हल्बी, गोंडी, सरगुजी, कुड़ुक जैसी भी कई महत्वपूर्ण भाषाएं हैं. लेकिन राज्य सरकार की ओर से इस पर किसी तरह का कोई जवाब नहीं दिया गया. नतीजन छत्तीसगढ़ को ख की जगह क श्रेणी में रख दिया गया. इसका बड़ा नुकसान आज अस्मिता की लड़ाई के रूप में छत्तीसगढ़ी समाज को उठाना पड़ रहा है.
नंदकिसोर यह भी बताते हैं कि इस उपेक्षा के साथ राज्य के साहित्यकारों ने मिलकर एक साझा मंच का गठन किया. इस मंच को नाम दिया गया छत्तीसगढ़ी राजभासा मंच. इस मंच के साथ डॉ. महादेव प्रसाद पाण्डेय, श्यामलाल चतुर्वेदी, पालेश्वर शर्मा, जागेश्वर प्रसाद, लक्ष्मण मस्तुरिया, रामेश्वर वैष्णव, रामेश्वर शर्मा, परदेसी राम वर्मा, मन्नू लाल जैसे कई बड़े साहित्यकार और राज्य निर्माण आंदोलकारी लोग जुड़े. और मंच के साथ बिलासपुर से शुरू हुआ छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का हक दिलाने का अभियान.
कई वर्षों के संघर्ष और राज्य सरकार के साथ बैठकों और संवाद के बाद छत्तीसगढ़ी राजभाषा विधेयक लाए जाने पर सहमति बनी. 2007 में आखिरकार सरकार ने पक्ष और विपक्ष के सभी सदस्यों की समहति के साथ छत्तीसगढ़ी राजभाषा विधेयक 28 नवंबर को पारित किया. लेकिन यहाँ भी छत्तीसगढ़ी के साथ एक धोखा कर दिया गया. इसकी जानकारी साहित्यकारों और मंच के लोगों को बाद में लगी. हुआ यह है कि विधेयक में छत्तीसगढ़ी को हिंदी के अतिरिक्त भाषा के रूप में जोड़ दिया गया. इसका नुकसान यह हो रहा है कि आज भी छत्तीसगढ़ी सरकारी कामकाज की आधिकारिक भाषा नहीं बन पाई और सिर्फ प्रचार-प्रसार तक सीमित रह गई है.
नंदकिसोर के मुताबिक विधेयक के साथ हुई इस गड़बड़ी से साहित्यकारों में बढ़ी नाराजगी दूर करने जुलाई 2008 में छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का गठन किया गया. सरकार की ओर से कहा गया कि आयोग राज्य के कर्मचारियों और अधिकारियों को छत्तीसगढ़ी काम-काज के लिए प्रशिक्षित करेगा. छत्तीसगढ़ी भाषा के उत्थान के लिए काम करेगा. आयोग के गठन के साथ अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति कर दी गई. लेकिन दो साल बाद आयोग में भी एक छल हो गया. छत्तीसगढ़ी की जगह आयोग का नाम छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग कर दिया गया.
वर्तमान में छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग की स्थिति यह है कि बीते 7 यहाँ न तो कोई अध्यक्ष और न ही सदस्य है. आयोग की भूमिका छत्तीसगढ़ी के प्रचार-प्रसार तक सीमित है. आयोग की ओर समय-समय पर प्रशिक्षण और कार्यशाला का आयोजन होते रहता है. साहित्यकारों को राज्य की भाषाओं में लिखने, किताबें प्रकाशित कराने के लिए अनुदान दिया जाता है. कार्यक्रमों और सम्मेलनों का आयोजन भी साल में होते रहता है. लेकिन इन सबके बाद भी छत्तीसगढ़ी को आज भी अपने घर में बड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है.
नंदकिसोर इसके पीछे राजनेताओं की इच्छा शक्ति, सरकारी सिस्टम के साथ ही छत्तीसगढ़ी समाज को जिम्मेदार मानते हैं. उनका कहना है कि अपनी मातृभाषा या महतारी अस्मिता को लेकर वैसा गौरव छत्तीसगढ़ में नहीं दिखता, जैसा दूसरे राज्यों में है. छत्तीसगढ़ी समाज का महतारी भाषा के प्रति उदासीन रवैय्या दिखता है. और इसी का फायदा सिस्टम उठा रहा है.
सच्चाई यह कि 3 करोड़ आबादी वाले राज्य में छत्तीसगढ़ी ढ़ाई करोड़ से अधिक लोगों की मातृभाषा है. 2020 में सरकार की ओर से कराए गए भाषा सर्वेक्षण भी यह स्पष्ट हो चुका है कि 65 फीसदी अधिक आबादी छत्तीसगढ़ीभाषी है. जबकि राज्य में हिंदीभाषी लोगों का प्रतिशत करीब 6 है. अन्य दूसरी भाषाएं हैं. यही नहीं शिक्षा के अधिकार कानून 2009 और नई शिक्षा नीति-2020 में यह स्पष्ट प्रावधान किया गया प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य रूप से मातृभाषा में ही दी जानी है. नई शिक्षा नीति को मोदी की गारंटी भी कहा गया है. लेकिन यह भी उतना ही सच है कि राज्य में अब मोदी की शिक्षा नीति वाली गारंटी में प्रभावी रूप में लागू नहीं है.
यही वजह है कि आज भी साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार, समाज के लोग समय-समय पर बैठक आयोजित कर, चर्चा कर, जन-जागरण कर सरकार को यह बताते रहते हैं कि 25 साल में छत्तीसगढ़ी के साथ पूर्ण न्याय नहीं हो सका है. नंदकिसोर सुकुल बड़े दुखी मन से कहते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा है, लेकिन अपनी मूल पहचान और महतारी अस्मिता में अभी संघर्षरत है. हालांकि वें अभी हार नहीं माने हैं और 83 वर्ष की उम्र में भी सरकार और समाज को जगाने के अभियान में लगे हुए हैं. उन्हें पूर्ण भरोसा है छत्तीसगढ़ी आज नहीं तो कल छत्तीसगढ़ियों की शिक्षा और काम-काज में माध्यम भाषा अवश्य बनेगी.
