SUPREME COURT: SC said – no effect in Bihar, Sir is necessary
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट कर दिया कि देशभर में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया को रोकने का कोई सवाल नहीं है। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग को संविधान और कानून दोनों से यह अधिकार प्राप्त है कि वह मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक पुनरीक्षण करा सके।
पीठ ने यह भी कहा कि अगर किसी तरह की गड़बड़ी सामने आती है तो अदालत सुधारात्मक निर्देश देगी, लेकिन SIR को रोकने का कोई आधार नहीं है। अदालत ने उदाहरण देते हुए बताया कि बिहार में SIR के बाद जमीनी स्तर पर कोई नकारात्मक प्रभाव दिखाई नहीं दिया।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो आरजेडी सांसद मनोज झा की ओर से पेश हुए, ने SIR प्रक्रिया का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि देश में करोड़ों निरक्षर लोग एन्यूमरेशन फॉर्म नहीं भर पाते, जिसके कारण बड़ी संख्या में नागरिक मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। सिब्बल ने कहा कि आधार कार्ड में पूरा पता और जन्मतिथि होने के बावजूद चुनाव आयोग व्यक्ति की नागरिकता तय करने की कोशिश करता है, जबकि यह उसका अधिकार क्षेत्र नहीं होना चाहिए।
इस पर CJI सूर्यकांत ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं और वहां चुनाव एक पर्व की तरह होते हैं। उन्होंने कहा कि बिहार SIR को लेकर शुरुआत में तरह-तरह की आशंकाएं जताई गईं, लेकिन हटाए गए नामों में अधिकतर मृतक और पलायन कर चुके लोग मिले। जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने भी कहा कि वर्ष 2012 और 2014 में कई राज्यों में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या वयस्क आबादी से अधिक पाई गई थी, इसलिए सूची का आक्रामक पुनरीक्षण आवश्यक है।
अदालत ने यह भी दोहराया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। पीठ ने कहा कि आधार केवल सुविधाओं के लिए दिया जाता है। यदि कोई पड़ोसी देश का मजदूर भारत में रोजगार कर रहा है और उसके पास आधार है, तो वह केवल आधार के आधार पर मतदाता बनने का पात्र नहीं हो जाता।
सुप्रीम कोर्ट ने उस तर्क को भी खारिज कर दिया कि SIR पहले कभी लागू नहीं हुआ, इसलिए इसे लागू नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग के पास फॉर्म-6 की सत्यता जांचने और मतदाता सूची को शुद्ध बनाए रखने का अंतर्निहित अधिकार है।
इसी मामले से जुड़ी तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल की याचिकाओं पर भी सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। तमिलनाडु और केरल मामलों में आयोग को 1 दिसंबर तक जवाब दाखिल करना होगा, जबकि बंगाल मामले की सुनवाई जल्द तय की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि SIR प्रक्रिया जारी रहेगी, चुनाव आयोग को मतदाता सूची सही रखने का पूरा अधिकार है और किसी भी गड़बड़ी पर कोर्ट तुरंत हस्तक्षेप करेगा।
