RAJBHASA PAD YATRA: 85-year-old Nandkishore Shukla’s padayatra for Chhattisgarhi as the official language, ministers gave big assurances
रायपुर। राजभाषा छत्तीसगढ़ी को राजकाज की भाषा और प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने की मांग को लेकर 85 वर्षीय नंदकिशोर शुक्ल पंडरी से विधानसभा तक पैदल पदयात्रा करते हुए पहुंचे। छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के प्रदेश संरक्षक शुक्ल ने विधानसभा पहुंचकर शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव, गृह मंत्री विजय शर्मा और विधानसभा अध्यक्ष रमन सिंह से मुलाकात कर अपनी मांगों पर चर्चा की।
सुबह 9 बजे अकेले डंडे के सहारे निकले शुक्ल को रास्ते में छत्तीसगढ़िया पत्रकार महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष गजेंद्ररथ मिले। बातचीत में जब उद्देश्य पता चला तो वे भी आधे रास्ते से पदयात्रा में शामिल हो गए और छत्तीसगढ़ी प्रेमियों से अपील की कि वे मातृभाषा के सम्मान के लिए इस आंदोलन का हिस्सा बनें।
विधानसभा में शुक्ल और गजेंद्ररथ ने छत्तीसगढ़ी को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम और राजकाज की भाषा बनाने के लिए मजबूत तर्कों के साथ मंत्रियों से आग्रह किया। गृह मंत्री विजय शर्मा ने मांग को “जायज” बताया और आश्वासन दिया कि सरकार इस विषय पर जल्द बड़ा कदम उठाएगी। वहीं शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव ने एनसीईआरटी को छत्तीसगढ़ी सहित कुरुख, सादरी, हल्बी, गोंडी जैसी भाषाओं में पाठ्यपुस्तकें तैयार करने और प्रक्रिया तेज करने के निर्देश देने की बात कही।
शुक्ल ने कहा कि छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा देने वाली भाजपा सरकार के लिए यह सबसे अच्छा समय है कि वह केंद्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत करे। उन्होंने पत्रकारों से भी छत्तीसगढ़ी भाषा के मुद्दे को मीडिया में प्रमुखता से उठाने की अपील की और उन चैनलों व अखबारों का धन्यवाद किया जो छत्तीसगढ़ी में समाचार या कॉलम प्रकाशित कर रहे हैं।
शुक्ल ने भरोसा जताया कि आने वाला समय छत्तीसगढ़ी के लिए सकारात्मक होगा, लेकिन चेतावनी भी दी कि अगर उनकी पुकार अनसुनी रही तो वे अनिश्चितकालीन धरने के लिए तैयार हैं। वहीं छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए लगातार संघर्ष कर रहे गजेंद्ररथ ने कहा कि जरूरत पड़ी तो वे आमरण अनशन तक जाएंगे और छत्तीसगढ़ी साहित्यकारों, लेखकों और फिल्मकारों से बड़े आंदोलन के लिए एकजुट होने की अपील की।
उन्होंने कहा कि 25 वर्ष बाद भी छत्तीसगढ़ की मातृभाषा को न्याय नहीं मिल पाया है और न ही यह राजकाज की भाषा बन सकी है। इसलिए अब छत्तीसगढ़ियों को अपनी मातृभाषा की लड़ाई खुद लड़नी होगी।
