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जीवन में उच्च आकांक्षा होनी चाहिए, महत्वाकांक्षा नहीं :  मनीष सागरजी महाराज

रायपुर। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में चातुर्मासिक प्रवचनमाला में सोमवार को परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी श्री मनीष सागरजी महाराज ने कहा कि उच्च आकांक्षा होनी चाहिए, लेकिन महत्वाकांक्षा नहीं होनी चाहिए। मैं ऊपर उठू, मेरा जीवन ऊपर उठे, मैं गुणों से ऊपर उठ जाऊं, मैं अपनी पवित्रता एवं सद्गुणों में ऊपर उठ जाऊं, यह भावना तो सभी की होनी चाहिए। मैं महत्वपूर्ण बन जाऊं, मुझे महत्व मिले, मेरा नाम हो, मेरी प्रसिद्धि हो, मेरी पहचान हो ऐसी महत्वाकांक्षा नहीं होनी चाहिए। अपने भीतर क्या है, यह अपने को टटोलना है। कहीं उच्च आकांक्षा की आड़ में महत्वाकांक्षा तो नहीं है, क्योंकि महत्वाकांक्षा बहुत खतरनाक चीज है।

 

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि आत्मा ही हमेशा आनंद में रहती है। हमें मूल स्वरूप को पहचानना है। यह परमात्मा का ही स्वरुप है और यही हमारा ही स्वरूप है।आप आसक्ति और व्यसनों की दुनिया में भटकाव में रहते हो। अर्थ और भोग में फंसे हो। यह जिन शासन नायाब हीरा आपको मिला है। जिन शासन को पाने के बाद आपको अनंतकाल में अपने अस्तित्व की पहचान करने वाला नहीं मिलेगा। इस सच्चे यथार्थ अस्तित्व की पहचान आपको होनी चाहिए। आत्मा की अनंत शक्ति को पहचानना चाहिए। यह अजर, अमर, अविनाशी है। यह ज्ञान, दर्शन, चारित्र्य का अनंत गुना का पिंड है। यह आत्मा भले हमारी बीज रूप है लेकिन यही आगे विशाल वृक्ष बनने की संभावना रखती है।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जो नश्वर है उसे अपना मानोगे तो मुंह की खाओगे। आत्मा में जो लेवल बढ़ा वह आपका लेवल है। पूरा शरीर जीव नहीं है, केवल आत्मा ही मुख्य है। सभी वैसे हैं जैसे परमात्मा हैं लेकिन सब भ्रम में है। केवल कर्मों की कालिख के कारण ही संसार में हो। आपके कर्मों के कारण ही ना जाने कितने शरीर मिले हैं। हमें हमारे अंदर के जीव को ढूंढना है। ऊपर जो भी है वह जड़ है और भीतर जो आत्मा बस वही वह चेतन है।

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