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सरलता और समता से ही विकास संभव : मनीष सागरजी महाराज

रायपुर। परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी श्री मनीष सागरजी महाराज ने शनिवार को टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए जीवन में सरलता और समता के गुण को अपनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि आप जीवन में सरलता और समता को आधार बनाकर विकास कर पाएंगे। सरलता छूटने लगे तो बच्चे बन जाएं और समता छूटने लगे तो महावीर बन जाएं। छोटे से बड़े तक आपके समझ में यह बातें आ गई तो वह आपके अंदर आध्यात्म उत्पन्न होगा।

चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में उपाध्याय भगवंत ने कहा कि मनुष्य भव पाना बहुत कठिन है और इस भव को पाकर भी गंभीरता नहीं होती। सभी को इस भव में अपने जन्म की वैल्यू समझना चाहिए। विकास के लिए जीवन में क्वालिटी डेवलप करना चाहिए। हमारा व्यवहार, विचार और दशा कैसी हो जिससे हम पात्रता प्राप्त कर सकते हैं। मुनिश्री ने पहली क्वालिटी बताई कि जीवन में सरलता अपनाएं। जीवन में सरल बनिए, सरल बनने के बहुत फायदे है। जैसे बचपन जीवन का सबसे अच्छा रूप है, क्योंकि वह सरल है। इसमें ना राग है और ना द्वेष होता है। सरल व्यक्ति अध्यात्म के लायक होता है। वह साधक बने ना बने, ज्ञानी बन सकता है और जो ज्ञानी होता है वह पूज्यनीय होता है।
मुनिश्री ने दूसरी क्वालिटी बताई समता। जीवन में उतार-चढ़ाव बहुत आएंगे, आप सोचते हैं दिन में यह करना है लेकिन जो सोचते हैं वह नहीं हो पता। कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक होता है लेकिन आपको समता रखना है। समता नहीं होगी तो मन चंचल होगा और अध्यात्म को पाने की पात्रता नहीं होगी। जब तक भीतर से संसार नहीं उतरेगा तब तक आध्यात्म की प्राप्ति नहीं हो सकेगी। परिस्थिति में जो भी उतार-चढ़ाव हो बस विचलित नहीं होना चाहिए, यही समाता है। समता अर्थात शांत रहना जो शांत रहता है वह समता में रहता है। शांत रहने का अभ्यास करो, विचलित नहीं हो।

लक्ष्य और लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग ज्ञात होना चाहिए : महेंद्र सागरजी महाराज

अध्यात्म योगी उपाध्याय भगवंत महेंद्र सागर जी महाराज ने कहा कि लक्ष्य और लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग ज्ञात होना चाहिए। लक्ष्य तक पहुंचने में बाधक कार्य को हटाना है और साधक कार्य को अपनाना है। तब आप अपने लक्ष्य तक पहुंच पाएंगे। जैसे ड्राइवर को ध्यान होता है कि कोई मंजिल तक पहुंचना है तो उसे किस मार्ग से चलना है। मार्ग की आने वाली कठिनाई को हटाते हुए वह आगे बढ़ता है। ऐसे ही हमारा अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है,उसके बाधक कार्य को समझे। इसके लिए प्रतिक्रमण,ध्यान और कार्यशैली साधक है। स्वाध्याय से हम विभिन्न प्रकार के ध्यान कर सकते हैं। कोई आपको कहानी बताई जाती है तो वह मार्ग है, उसके सार को समझ लिए तो आपको सिद्धांत समझ आएगा। कसाय जीवन को बिगाड़ता है, हमें क्रोध का त्याग करना चाहिए।
आत्मशोधन तप आज से
श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ व चातुर्मास समिति, विवेकानंद नगर के अध्यक्ष श्याम सुंदर बैदमुथा ने बताया कि 13 जुलाई रविवार को उपवास के साथ आत्मशोधन तप शुरू हो रहा है। सोमवार को बियासना होगा। यह सिलसिला एक माह चलेगा । रविवार को विशेष प्रवचन होगा।

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