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NDA MAJORITY RAJYA SABHA : एनडीए को राज्यसभा में मिले बहुमत से कितना फायदा ?

NDA MAJORITY RAJYA SABHA: How much does NDA benefit from the majority in Rajya Sabha?

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बाद पहली बार कोई खबर आई है जिसे सुनकर बीजेपी में खुशी महसूस की जा रही होगी. जुलाई में आये उपचुनावों के नतीजे भी ऐसे नहीं थे कि बीजेपी थोड़ी राहत महसूस कर सके – लेकिन राज्यसभा चुनाव के रुझानों ने ही बीजेपी खेमे में खुशियों की सौगात भर दी है.

बीजेपी के लिए खुशखबरी ये है कि एनडीए ने राज्यसभा में भी बहुमत का आंकड़ा छू लिया है. 2014 में बीजेपी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद पहली बार ऐसा संभव हुआ है. ऐसा लगता है जैसे कुदरत का बैलेंसिंग फैक्टर ऐसे ही काम करता है – लोकसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी अपने बूते बहुमत हासिल नहीं कर पाई थी, और एनडीए सहयोगियों की मदद से ही सत्ता में वापसी संभव हो सकी.

राज्यसभा की 12 सीटों पर उपचुनावों की घोषणा की गई थी, लेकिन सभी उम्मीदवार निर्विरोध चुन लिये गये हैं. इनमें से 11 सीटों पर NDA को जीत मिली है, जबकि एक सीट INDIA ब्लॉक के खाते में गई है. एनडीए में भाजपा को 9, अजित पवार वाली एनसीपी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को एक-एक सीट मिली है, और एक सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार की जीत हुई है.

बीजेपी की खुशी तो वैसे भी कांग्रेस के दुखों का स्वाभाविक कारण होती है, लेकिन एक ही सीट की जीत उसके लिए बहुत बड़ी राहत है – और हां, विपक्ष के लोकप्रिय वकील अभिषेक मनु सिंघवी के लिए तो खुशी का वाजिब सबब भी है.

राज्यसभा में अब कौन कितने पानी में?

राज्यसभा की 12 सीटों के उपचुनाव में 11 सीटें जीतने के बाद राज्यसभा में अब एनडीए को भी बहुमत मिल गया है. लोकसभा में भी एनडीए की ही सरकार है, और सरकार को बहुमत भी बीजेपी की वजह से नहीं, एनडीए की वजह से ही मिली हुई है. पांच पांच साल की दो पारी के बाद बीजेपी तीसरी पारी में बहुमत से चूक गई.

प्रधानमंत्री तो फिर से नरेंद्र मोदी ही बने, लेकिन बीजेपी को इसके लिए टीडीपी नेता एन. चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू नेता नीतीश कुमार की बैसाखी की मदद लेने को मजबूर होना पड़ा. जिस तरह से बीजेपी से मौजूदा केंद्र सरकार एक के बाद एक कई मुद्दों पर ताबड़तोड़ यू-टर्न लेती जा रही है, इस बात से इनकार तो नहीं ही किया जा सकता कि सब कुछ पहले की तरह ही चाक चौबंद है.

राज्यसभा में बहुमत का गणित ऐसे समझा जा सकता है. 245 सदस्यों वाले सदन में अभी 8 सीटें कम हैं, लिहाजा प्रभावी संख्या 237 है. असल में 8 में से 4 सीटें जम्मू-कश्मीर से हैं, और चार सीटें मनोनीत कैटेगरी वाली हैं.

सदन की मौजूदा स्ट्रेंथ 237 के हिसाब से बहुमत का आंकड़ा 119 होता है. 11 सीटों पर जीत के साथ ही अब सदन में NDA के सदस्यों की संख्या 112 हो गई है. 6 मनोनीत और एक निर्दलीय सदस्य का समर्थन भी एनडीए के साथ ही है – और इस हिसाब से बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के बहुमत का सफर पूरा हो चुका है.

एनडीए को बहुमत का फायदा भी मिल पाएगा क्या

देखा जाये तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिले झटके की एक तरह से भरपाई हो गई है. ये भरपाई नंबर के हिसाब से जरूर हुई है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर भी उतनी ही प्रभावी है क्या जितनी प्रतीत हो रही है?

एकबारगी तो ऐसा लगता है जैसे व्यक्ति बदल गये हों, और परिस्थितियां बिलकुल पहले जैसी ही रह गई हैं. सीधे सीधे न सही, लेकिन लोकसभा और राज्यसभा में बीजेपी की हैसियत को मिला कर देखें तो कुछ हद तक ऐसा ही लगता है.

ऐसा लगता है जैसे बीजेपी के मामले में राज्यसभा और लोकसभा की परिस्थितियों में अदला-बदली हो गई है. दीवार की एक तरफ कुछ चीजें बदल गई थीं, और वैसे ही अब दूसरी तरफ भी बदल गई हैं. फर्क ये जरूर पड़ा है कि जैसे राज्यसभा में पहले बीजेपी को एनडीए से बाहर भी मदद के लिए हाथ फैलाना पड़ता था, अब वो बात नहीं रही. ये बात अलग है कि पहले लोकसभा में बीजेपी को एनडीए की भी परवाह नहीं रहती थी, लेकिन अब बगैर एनडीए साथियों के एक कदम भी आगे बढ़ाना मुश्किल हो रहा है.

लोकसभा चुनाव और राज्यसभा उपचुनाव के बाद बीजेपी के मददगार नेताओं के नाम बदल गये हैं. जैसे पहले बीजेपी को राज्यसभा में कुछ भी अपने मन से करने के लिए एनडीए से बाहर नवीन पटनायक और जगनमोहन रेड्डी का मुंह देखना पड़ रहा था, अब वैसा ही चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के मामले में करना पड़ रहा है. पहले पटनायक और जगनमोहन को राजनीतिक रूप से साथ बनाये रखना पड़ता था, अब नाडूय और नीतीश के बीजेपी से मोहभंग होने से रोकने की कोशिश करनी पड़ रही है.

फर्ज कीजिये किसी मसले में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू बीजेपी सरकार के फैसले से इत्तेफाक नहीं रखते तो मजबूरी में कदम तो पीछे खींच ही लेने होंगे. अगर लोकसभा में ही बीजेपी को कदम पीछे खींचने पड़े तो राज्यसभा तक पहुंचने की नौबत आने से रही. और अगर राज्यसभा में कोई बिल एनडीए की बहुमत की बदौलत पास भी हो गया तो लोकसभा की मंजूरी के बगैर उसका क्या मतलब रह जाएगा.

और अगर बीजेपी की ऐसी बेबसी खत्म नहीं होती, तो राज्यसभा में मिले एनडीए को बहुमत का केंद्र सरकार को आखिर किया और कितना फायदा मिल पाएगा?

बड़ी राहत तो कांग्रेस के लिए है

ध्यान से देखें तो बीजेपी से ज्यादा बल्ले बल्ले तो कांग्रेस के मोहल्ले में हो रही होगी. एक इशारा तो तेलंगाना में सरकार बनाते ही कांग्रेस के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने दे ही दी थी. दरअसल, हरियाणा से दीपेंदर हुड्डा और राजस्थान से केसी वेणुगोपाल राज्यसभा के सांसद हुआ करते थे, लेकिन चुनाव लड़ और जीतकर वे अब लोकसभा पहुंच चुके हैं. बेशक लोकसभा में कांग्रेस की दो सीटें बढ़ गईं, लेकिन राज्यसभा के लिए मुश्किल खड़ी हो गई.

दो सीटें कम हो जाने के बाद राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 26 हो गई थी. राज्यसभा में विपक्ष का नेता होने के लिए 25 सीटों की दरकार होती है. अगर किसी वजह से एक-दो सीट इधर उधर हो जाती तो मल्लिकार्जुन खरगे की कुर्सी हिल जाती.

तभी तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने बीआरएस के राज्यसभा सांसद केशव राव को कांग्रेस में शामिल करा दिया. केशव राव का दो साल का कार्यकाल बचा हुआ था. सत्ता में आने के बाद कांग्रेस के लिए राज्यसभा अपने नेता भेजने का अवसर तो पैदा हो ही गया था.

अब केशव राव वाली सीट से ही अभिषेक मनु सिंघवी निर्विरोध चुनाव जीत कर राज्यसभा पहुंच रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस विधायकों की क्रॉस वोटिंग के कारण अभिषेक मनु सिंघवी को हार का मुंह देखना पड़ा था. बीच में तो ऐसी भी चर्चा थी कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी चाहते थे कि अभिषेक मनु सिंघवी राज्यसभा उनकी तरफ से पहुंच जायें. हालांकि, अभिषेक मनु सिंघवी की तरफ से ऐसी बातों का खंडन किया गया था. लेकिन स्वाति मालीवाल केस के दौरान ये चर्चा काफी जोर पकड़ रही थी.

बहरहाल, अंत भला तो सब भला. अब तो अभिषेक मनु सिंघवी भी राज्यसभा पहुंच गये हैं, और 27 सांसदों के साथ मल्लिकार्जुन खरगे की कुर्सी को भी थोड़ी मजबूती मिल गयी है. क्या कांग्रेस के लिए ये बड़ी राहत नहीं है?

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