
CG NEWS: रायपुर। जड़ यानी तन का राग करने से शरीर की शक्ति कमजोर हो जाती है। आत्मा का राग करने से शक्ति बढ़ती है। संसार में रहते हमारे भीतर तड़प होनी चाहिए कि कब चा रित्र मिले और कम से कम से कम पाप व अहिंसा के साथ कैसे जीवन जी सकते हैं। एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी में विनय कुशल मुनिजी महाराज साहब के पावन सानिध्य में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में विराग मुनि महाराज साहब ने ये बातें कही। उन्होंने कहा, आज धन कमाने के लिए दिनभर मजदूरी कर रहे हैं, लेकिन इसको भोगेगा कौन! पता नहीं। जीवन में अपेक्षा रहेगी और वह पूरी नहीं होगी तो क्रोध एवं द्वेष का भाव आएगा, जो की पतन का कारण है।
हमें मैत्री भाव एवं करुणा के साथ अहिंसा पूर्ण जीवन जीना है। वापस मानव भव कब मिलेगा, पता नहीं। मिलेगा भी तो कैसे देश, कैसे कुल, कैसे धर्म और शरीर में मिलेगा, कुछ पता नहीं। अभी सब अनुकूलता मिली है, लेकिन धर्म के प्रति श्रद्धा भाव नहीं है। संसार के प्रति उदासीन भाव रखना चाहिए। हम हैं कि भौतिक सुखों के पीछे भाग रहे हैं। रसास्वादन में लिप्त हैं। इस दुर्लभ मानव जीवन को सफल बनाने के लिए विषयों का विराग जरूरी है।
छोटी-छोटी बातों पर आवेश में आएंगे
तो अपने ही पतन की ओर बढ़ते जाएंगे
मुनिश्री ने कहा, छोटी-छोटी बातों पर आवेश में आएंगे तो अपने ही पतन की ओर जाएंगे। अनजाने में किए पाप क्षमा योग्य हैं, बशर्ते उसके लिए व्यक्ति के मन पश्चाताप की भावना भी होनी चाहिए। एक जमाना था जब श्रावक-श्राविकाएं भी गुरु भगवंतों को शिक्षा दे दिया करते थे। आज गुरु भगवंत शिक्षा देते थक जाते हैं पर लोग हैं कि उनकी बातों पर अमल ही नहीं करते। भेदभाव, ईर्ष्या, काम, क्रोध, लोभ, मोह से बचने कहते हैं, लोग और इन्हीं में सबमें उलझते चले जाते हैं। इन कषायों के फेर में पड़कर अपनी ही आत्मा की दुर्गति न करें। संयम-चारित्र्य कब मिले, इसकी कामना करें। आत्मकल्याण करें।
फिल्म, पिकनिक जाने में आनंद
मंदिर ऐसे आते हैं जैसे मजबूरी
मुनिश्री ने कहा, आज धर्म के अनुपालन पर भी प्रश्न चिन्ह है। लोग जब पिकनिक, पिक्चर देखने जाते हैं, तो उनकी खुशी देखिए। कितना आनंद आता है। वही लोग जब प्रभु दर्शन करने मंदिर या प्रवचन सुनने किसी धर्मसभा में जाते हैं तो चेहरे के हाव-भाव से लगता है जैसे किसी मजबूरी में आए हों। इसके पीछे यही कारण है कि धार्मिक जगहों पर जाने में संयम मर्यादा का पालन करना पड़ता है। क्या आज की पीढ़ी के लिए संयम, मर्यादा का पालन मजबूरी है। ये तो पुरातन काल से हमारी परंपरा में शामिल रहे हैं।
पाप से कमाया हुआ पैसा कभी
भी आपके काम नहीं आएगा
मुनिश्री ने कहा, इस संसार में आए हो तो आत्मा की गति सुधारने की तड़प होनी चाहिए। कितना अच्छा सौभाग्य था जो जिन शासन मिला। देव, गुरु, धर्म की कृपा प्राप्त हुई। फिर इस जीवन को ज्यादा से ज्यादा धन कमाने और इकट्ठा करने में क्यों जाया कर रहे हैं। पाप करके कितना भी धन इकट्ठा कर लीजिए, जरूरी वक्त पर वह पैसा काम नहीं आएगा। पूरा जीवन धन संग्रह करने में लगा देंगे, इसे भोगेगा कौन? राग-द्वेष में पड़कर जीवन व्यर्थ न करें। करूणा-मैत्री भाव के साथ जिएं।
तपस्वियों के अनुमोदनार्थ 26
को दादाबाड़ी में भव्य कार्यक्रम*
आत्मस्पर्शीय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष पारस पारख और महासचिव नरेश बुरड़ ने बताया कि चातुर्मास के अंतर्गत जप-तप, साधना-आराधना का सिलसिला जारी है। 26 अगस्त को बॉम्बे से आए सुप्रसिद्ध संगीतकार नरेंद्र वाणीगोता ‘निराला’ द्वारा महान सिद्धि तप के तपस्वियों के अनुमोदनार्थ बोली बोली जाएगी। आप भी इसका लाभ उठा सकते हैं। 100 सिद्धि तक के तपस्वियों के बहुमान का अवसर बार-बार नहीं आता। जप नहीं कर सकते, तो अनुमोदन तो जरूर कर सकते हैं। मुकेश निमाणी और गौरव गोलछा ने बताया कि दादा गुरुदेव इकतीसा जाप के अंतर्गत हर रात 8.30 से 9.30 बजे तक श्री जैन दादाबाड़ी में प्रभु भक्ति का क्रम जारी है।