Trending Nowशहर एवं राज्य

SUPREME COURT’S COMMENT : निजी संपत्ति सरकार ले सकती है नहीं ? सुप्रीम कोर्ट ने की तीखी टिप्पणी

SUPREME COURT’S COMMENT: Can the government take private property? Supreme Court made sharp comment

क्या किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को आम लोगों की भलाई के लिए सरकार अपने कब्जे में ले सकती है या नहीं? इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का मकसद ‘सामाजिक बदलाव की भावना’ लाना है, इसलिए ये कहना खतरनाक होगा कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को समाज के भौतिक संसाधन के रूप में नहीं माना जा सकता. हालांकि, कोर्ट ने ये भी कहा कि ये कहना भी खतरनाक होगा कि समाज के भले के लिए सरकार निजी संपत्ति को कब्जे में नहीं ले सकती.

अदालत की ये टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है, जब देश में ‘संपत्ति के बंटवारे’ को लेकर सियासी बवाल जारी है.

मामले पर सुनवाई करने वाले जजों में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह शामिल हैं.

ये पूरा मामला 1976 के महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MHADA) कानून से जुड़ा है. 1986 में इस कानून में संशोधन किया गया था. इस संशोधन ने सरकार को किसी निजी व्यक्ति की संपत्ति को अधिग्रहित करने का अधिकार दे दिया था. इस संशोधन में कहा गया है कि ये कानून संविधान के अनुच्छेद 39(B) को लागू करने के लिए बनाया गया है.

इसके खिलाफ 1992 में मुंबई के प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (POA) ने याचिका दायर की थी. इसके बाद 15 और याचिकाएं दायर हुईं. इस मामले की सुनवाई पहले तीन जजों की बेंच ने की. 1996 में इसे पांच जजों की बेंच के पास भेजा गया. फिर 2001 में इसे सात जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया. आखिरकार 2002 में ये मामला 9 जजों की बेंच के पास आया.

नौ जजों की बेंच निजी संपत्ति को लेकर 1977 में आए जस्टिस कृष्णा अय्यर के फैसले की व्याख्या पर सुनवाई कर रही है. उस फैसले में जस्टिस कृष्णा अय्यर ने निजी संपत्ति को अनुच्छेद 39(B) के तहत ‘भौतिक संसाधनों’ का हिस्सा माना था.

ये पूरा मामला क्या है? संविधान का अनुच्छेद 39(B) क्या है? सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मार्क्सवादी कॉन्सेप्ट का जिक्र क्यों किया? समझते हैं…

क्या है अनुच्छेद 39(B)?

संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का जिक्र किया गया है. नीति निर्देशक तत्व राज्य और केंद्र, दोनों सरकार को समाज की भलाई और समानता के लिए नीतियां तैयार करने का अधिकार देते हैं.

अनुच्छेद 39(B) सरकार को समाज की भलाई के लिए भौतिक संसाधनों को उचित तरीके से साझा करने के लिए नीतियां बनाने का अधिकार देता है. इसमें निजी स्वामित्व वाली संपत्ति भी शामिल है.

इस पर सुनवाई क्यों?

1978 में कर्नाटक सरकार बनाम रंगनाथ रेड्डी मामले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस कृष्णा अय्यर ने फैसला दिया था. जस्टिस अय्यर ने अपने फैसले में कहा था कि ‘भौतिक संसाधनों’ में सभी तरह के संसाधन आते हैं, फिर चाहे वो प्राकृतिक हों या मानव-निर्मित, सार्वजनिक (सरकारी) हों या निजी. जस्टिस अय्यर ने अनुच्छेद 39(B) के तहत निजी संपत्ति को भी ‘भौतिक संसाधनों’ का हिस्सा माना था. हालांकि, उस मामले में सुनवाई कर रही बेंच के ज्यादातर जज जस्टिस अय्यर के फैसले से सहमत नहीं थे.

महाराष्ट्र का कानून क्या है?

1976 में महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) कानून आया था. 1986 में इसमें संशोधन किया गया था.

इस संशोधन के जरिए सरकार को किसी निजी संपत्ति को अधिग्रहित करने का अधिकार दिया गया था. हालांकि, इसमें शर्त ये थे कि जिस संपत्ति को कब्जे में लेने के लिए सरकार को महीने के किराये के 100 गुना बराबर दर पर भुगतान करना जरूरी होगा.

1986 के संशोधन में इस कानून में धारा 1A जोड़ी गई थी. इस धारा में कहा गया है कि इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 39(B) को लागू करने के लिए बनाया गया है.

1992 में मुंबई के प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (POA) ने इस कानून को चुनौती दी थी. 1996 में इस बेंच को पांच जजों की बेंच के पास भेजा गया था. बाद में ये सात जजों की बेंच के पास गया.

सात जजों की बेंच ने कहा था, ‘अनुच्छेद 39(B) के तहत निजी संपत्ति को ‘भौतिक संसाधन’ माना जाए या नहीं, इसपर अपना दृष्टिकोण साझा करने में कुछ कठिनाई है.’ इसके बाद 2002 में ये मामला नौ जजों की बेंच के पास चला गया.

… जब हुआ मार्क्सवाद का जिक्र

मंगलवार को मामले पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जस्टिस अय्यर कहते हैं कि अगर अनुच्छेद 39(B) का ध्यान रिडिस्ट्रीब्यूशन पर है, तो चाहे वो भौतिक संसाधन सार्वजनिक हो या निजी, इससे फर्क नहीं पड़ता. यही फैसले का तर्क है.’

इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने कहा कि जस्टिस अय्यर इस बात की वकालत करते हैं कि आप किसी की जमीन कब्जा करें और उसे बांट दें. ये बहुत ही मार्क्सवादी कॉन्सेप्ट है कि किसी की जमीन लें और उसे हर किसी को बांट दें.

तब सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हमें जस्टिस अय्यर की मार्क्सवादी व्याख्या तक जाने की जरूरत नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘एक ओर पूंजीवाद, संसाधनों पर व्यक्तिगत मालिकाना हक की बात करता है. दूसरी ओर, समाजवाद किसी संपत्ति को निजी नहीं मानता और उस पर सभी का हक होने का दावा करता है. लेकिन भारत में संपत्ति को लेकर गांधीवादी सिद्धांत है, जो संपत्ति को ट्रस्ट में रखता है. भारत में संपत्ति को न सिर्फ आने वाली पीढ़ियों के लिए, बल्कि पर्यावरण के लिए भी रखा जाता है और यही सतत विकास की अवधारणा है.’

सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला करना है?

सुप्रीम कोर्ट को इस पर फैसला करना है कि क्या अनुच्छेद 39(B) सरकार को आम लोगों की भलाई के लिए भौतिक संसाधनों को उचित रूप से साझा करने के लिए नीतियां बनानी चाहिए, जिसमें निजी संपत्ति भी शामिल है?

संपत्ति बंटवारे पर कार्ल मार्क्स का क्या था रूख?

अमीर और गरीब के बीच की खाई के अंतर को कम करने के लिए संपत्ति या पैसे के रिडिस्ट्रीब्यूशन की वकालत की जाती है. माना जाता है कि रोमन साम्राज्य में एक ही परिवार के मालिकाना हक वाली संपत्ति या जमीन की मात्रा को सीमित करने के लिए सख्त कानून बनाए गए थे.

ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि साम्यवादियों का मानना है कि ज्यादा संपत्ति या धन से भ्रष्टाचार बढ़ता है. इतना ही नहीं, अगर किसी एक व्यक्ति का ही संपत्ति पर पूरा हक होगा, तो इससे विद्रोह भड़कने का खतरा है.

कार्ल मार्क्स ‘कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो’ में लिखते हैं कि धन को हरेक व्यक्ति की क्षमता और जरूरत के अनुसार बांटा जाना चाहिए.

सोवियत संघ के दौर में और चीन ने कम्युनिज्म सिस्टम को लागू किया है, लेकिन ये कभी भी तार्किक नहीं हो सका. ऐसा इसलिए क्योंकि कोई भी देश धन का समान रूप से बंटवारा नहीं कर सका.

Share This: