आरक्षण पर बड़ी खबर, राज्य सरकार ने भेजा राजभवन के 10 सवालों का जवाब, सीएम ने कहा- अब हस्ताक्षर में न हो देरी

रायपुर। राजभवन की ओर से आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर जिन 10 सवालों का जवाब राज्य सरकार से मांगा था, राज्य सरकार ने वो जवाब भेज दिया है। सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि आरक्षण विधेयक को लेकर राजभवन को जवाब भेज दिया गया है। अब राज्यपाल को हस्ताक्षर करने में देरी नहीं करनी चाहिए।
मुख्यमंत्री साथ ही यह भी कहा है कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, फिर भी सरकार ने जवाब राजभवन को भेजा है, अब हस्ताक्षर में देरी नहीं होनी चाहिए। आपको बता दें कि 2 दिसंबर को राज्य सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था, जिसमें आरक्षण संशोधन से जुड़े 2 बिल पास कराए गए थे।आरक्षण विधेयक विधानसभा में पारित होने के बाद तत्काल राजभवन भेजा गया था। मगर हस्ताक्षर से पहले राज्यपाल की ओर से 10 सवालों की एक सूची राज्य सरकार को भेजी गई थी, पिछले दिनों जब कांग्रेस विधायकों का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिला था प्रतिनिधिमंडल को भी सवालों की सूची राज्यपाल ने दी थी।
राज्य सरकार ने भेजा इन सवालों के जवाब
- क्या इस विधेयक को पारित करने से पहले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई डाटा जुटाया गया था? अगर जुटाया गया था तो उसका विवरण।
- 1992 में आये इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण 50% से अधिक करने के लिए विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थितियों की शर्त लगाई थी। उस विशेष और बाध्यकारी परिस्थितियों से संबंधित विवरण क्या है।
- उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में सरकार ने आठ सारणी दी थी। उनको देखने के बाद न्यायालय का कहना था, ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं किया गया है जिससे आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक किया जाए। ऐसे में अब राज्य के सामने ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आरक्षण की सीमा 50% से अधिक की जा रही है।
- सरकार यह भी बताये कि प्रदेश के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग किस प्रकार से समाज के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की श्रेणी में आते हैं।
- आरक्षण पर चर्चा के दौरान मंत्रिमंडल के सामने तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में 50% से अधिक आरक्षण का उदाहरण रखा गया था। उन तीनों राज्यों ने तो आरक्षण बढ़ाने से पहले आयोग का गठन कर उसका परीक्षण कराया था। छत्तीसगढ़ ने भी ऐसी किसी कमेटी अथवा आयोग का गठन किया हो तो उसकी रिपोर्ट पेश करे।
- क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट भी मांगी है।
- विधेयक के लिए विधि विभाग का सरकार को मिली सलाह की जानकारी मांगी गई है। राजभवन में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए बने कानून में सामान्य वर्ग के गरीबों के आरक्षण की व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं। तर्क है कि उसके लिए अलग विधेयक पारित किया जाना चाहिए था।
- अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति सरकारी सेवाओं में चयनित क्यों नहीं हो पा रहे हैं।
- सरकार ने आरक्षण का आधार अनुसूचित जाति और जनजाति के दावों को बताया है। वहीं संविधान का अनुच्छेद 335 कहता है कि सरकारी सेवाओं में नियुक्तियां करते समय अनुसूचित जाति और जनजाति समाज के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाये रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा। सरकार यह बताये कि इतना आरक्षण लागू करने से प्रशासन की दक्षता पर क्या असर पड़ेगा इसका कहीं कोई सर्वे कराया गया है?