
रायपुर । प्रदेश में आरक्षण विधेयक को लेकर घमासान मचा हुआ है। पक्ष-विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जोरों पर है। वहीं विपक्ष ने राज्यपाल की कार्यशैली पर भी सवाल उठाया है। इसी बीच राज्यपाल अनुसुइया उइके का बयान सामने आया है। आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर को लेकर उन्होंने कहा कि 10 सवालों के जवाब मिलने के बाद वे इस पर विचार करेंगीं।
दरअसल राज्यपाल ने हस्ताक्षर करने से पहले राज्य सरकार से 10 बिंदुओं पर जानकारी मांगी है। राजभवन से भेजे पत्र में कहा गया है कि विधेयक पर विधि विशेषज्ञों से राय लेने के बाद सवाल तैयार किए हैं, जिनकी जानकारी जरूरी है।
जिन बिंदुओं पर जवाब मांगा गया है, उनमें पूछा गया है कि-
आरक्षण विधेयक पारित होने के पहले क्या एससी-एसटी को लेकर क्वांटिफायबल डाटा तैयार किया गया था?
आरक्षण का प्रतिशत 50 फीसदी से ज्यादा किए जाने के लिए विशेष और बाध्यकारी परिस्थितियों का विवरण दिया जाए।
58 फीसदी आरक्षण रद्द किए जाने के हाईकोर्ट के फैसले के ढाई महीने बाद क्या आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाए जाने को लेकर कोई विशेष डाटा जुटाया गया है?
राज्य सेवाओं में एससी एसटी वर्ग का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है। राज्य सेवाओं में एससी एसटी वर्ग के लोग चयनित नहीं हो पाते। ऐसे में एससी एसटी वर्ग के लोग किस तरह सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं, इसका डाटा पेश किया जाए।
एससी और एसटी वर्ग के पिछड़ेपन के अध्ययन के लिए क्या सरकार ने कोई कमेटी बनाई है?
मंत्री परिषद के सामने आरक्षण संशोधन विधेयक पेश करते समय जिस क्वांटिफायबल डाटा आयोग के गठन की बात कही गई थी, उस आयोग की रिपोर्ट राजभवन भेजी जाए।
आरक्षण संशोधन विधेयक पर विधि विभाग की रिपोर्ट पेश की जाए।
विधेयक में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग का उल्लेख नहीं है। ऐसे में इस कानूनी सवाल का जवाब दिया जाए कि क्या शासन को ईडब्लूएस के लिए संविधान के अनुच्छेद 16(6) के तहत अलग से अधिनियम लाना चाहिए था?
विधेयक के लागू होने के बाद एसटी के लिए 32 फीसदी, एससी के लिए 13 फीसदी, ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू करने से आरक्षण की कुल सीमा 72 फीसदी हो जाएगी। क्या इस आरक्षण को लागू करने के लिए प्रशासन की तैयारियों का ध्यान रखा गया है। क्या इस संबंध में कोई सर्वेक्षण किया गया था यदि हां तो उसकी रिपोर्ट राज्यपाल के भेजी जाए।
सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा मंत्री परिषद के सामने पेश की गई रिपोर्ट में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक राज्यों में आरक्षण के प्रतिशत का उल्लेख किया गया है। इन सभी राज्यों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा करने से पहले आयोग का गठन किया गया था। ऐसे में छत्तीसगढ़ में क्या ऐसी किसी कमेटी का गठन किया गया है? अगर हां तो रिपोर्ट पेश की जाए।
इससे पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्यपाल पर सीधा हमला बोला था। उन्होंने राज्यपाल पर हठधर्मिता का आरोप लगाया और कहा कि वे नियम से बाहर काम करना चाहती हैं। वहीं पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह ने कहा है कि राजभवन पर राजनीतिक दबाव नहीं है, राज्यपाल संवैधानिक रूप से काम कर रही हैं।
बहरहाल, आरक्षण संशोधन विधेयक पर सियासी तकरार के साथ छत्तीसगढ़ियों का इंतजार भी बढ़ता जा रहा है। अब देखना होगा कि राज्यपाल विधेयक पर हस्ताक्षर करेंगी, इसे वापस लौटाएंगी या ये मामला यूं ही लटका रहेगा।