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शारदीय नवरात्रि के पहले दिन बन रहा दुर्लभ संयोग, जानें मुहूर्त से लेकर पूजा विधि

हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है। मां दुर्गा की उपासना का पर्व साल में चार बार आता है। जिसमें दो गुप्त नवरात्रि और दो चैत्र व शारदीय नवरात्रि होती है। शारदीय नवरात्रि अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है। नवरात्रि की शुरुआत 26 सितंबर से होगी। इस बार नवरात्र पर दुर्लभ संयोग बन रहा है। शारदीय नवरात्रि शुक्ल और ब्रह्म योग से शुरू होगी। 26 सितंबर की सुबह 8.06 मिनट से ब्रह्म योग लगेगा, जो 27 सितंबर की सुबह 6.44 मिनट पर समाप्त होगा। शुक्ल योग का आरंभ 25 सितंबर को सुबह 9.06 मिनट से अगले दिन सुबह 8.06 मिनट तक रहेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शारदीय नवरात्रि में दोनों योग अतिदुर्लभ है। इससे जातकों के जीवन में सुख-समृद्धि आएगी।

शारदीय नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त

– अश्विन प्रतिपदा तिथि आरंभ: 26 सितंबर 2022, सुबह 03.23 मिनट से

– अश्विन प्रतिपदा तिथि समापन: 27 सितंबर 2022, सुबह 03.08 मिनट तक

शारदीय नवरात्रि मुहूर्त

– ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04.41 मिनट से सुबह 05.29 मिनट तक

– अभिजित मुहूर्त: सुबह 11.54 मिनट से दोपहर 12.42 मिनट तक

– विजय मुहूर्त: दोपहर 02.18 मिनट से दोपहर 03.07 मिनट तक

– गोधूलि मुहूर्त: शाम 06.07 मिनट से शाम 06.31 मिनट तक

नौ दिनों तक देवी के विभिन्न स्वरूपों की होगी पूजा

– नवरात्रि प्रथम दिन (26 सितंबर)- मां शैलपुत्री पूजा

– नवरात्रि दूसरा दिन (27 सितंबर), मां ब्रह्मचारिणी पूजा

– नवरात्रि तीसरा दिन (28 सितंबर), मां चंद्रघंटा पूजा

– नवरात्रि चौथा दिन (29 सितंबर), मां कुष्माण्डा पूजा

– नवरात्रि पांचवां दिन (30 सितंबर), मां स्कंदमाता पूजा

– नवरात्रि छठा दिन (1 अक्टूबर), मां कात्यायनी पूजा

– नवरात्रि सातवां दिन (2 अक्टूबर), मां कालरात्रि पूजा

– नवरात्रि आठवां दिन (3 अक्टूबर), मां महागौपूजा

– नवरात्रि नवां दिन (4 अक्टूबर), मां सिद्धिरात्रि पूजा

शारदीय नवरात्रि पूजा विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। साफ वस्त्र पहनें। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की विधि को पूरा करें। कलश में गंगाजल भरें और कलश के मुख पर आम के पत्ते रखें। नाारियल को लाल चुनरी के साथ लपेटें। नारियल को आम के पत्ते के ऊपर रखें। कलश को मिट्टी के बर्तन के पास या फिर उसके ऊपर रखें। मिट्टी के बर्तन पर जौके बीज बोएं और नवमी तक हर रोज कुछ पानी छिड़कें। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें।फूल, कपूर, अगरबत्ती, और व्यंजनों के साथ पूजा करनी चाहिए। साथ ही घर पर नौ कन्याओं को आमंत्रित करें। उन्हें एक साफ और आरामदायक जगह पर बैठाकर उनके पैर धोएं। उनकी पूजा करें और उनके माथे पर तिलक लगाएं। साथ ही उन्हें स्वादिष्ट भोजन परोसें। दूर्गा पूजा के बाद अंतिम दिन घट विसर्जन कर दें।

‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’

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