मुख्यमंत्री ने भाजपाईयों से पूछा क्या पुलिस जवानों को गाली देना, मारना छत्तीसगढ़ की संस्कृति है?

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भाजपा के आंदोलन और उस दौरान उपजी अप्रिय स्थिति पर दिया वक्तव्य
रायपुर। छत्तीसगढ़ के राजनैतिक इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी पार्टी के कार्यकर्ता गालियाँ दे देकर पुलिस को लाठीचार्ज के लिए उकसाते रहे और हमारे जवान मुस्कुरा कर विनती करते रहे। यह हैं हमारे छत्तीसगढिय़ा संस्कार। ये कांग्रेस पार्टी है साहब, हम गांधीवादी लोग हैं। गांधीगिरी का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है? एक छत्तीसगढिय़ा नागरिक होने की हैसियत से मुझे कल बहुत शर्मिंदगी हुई जब मैंने देखा कि भाजपा के कार्यकर्ता पुलिस पर लाठी भांज रहे थे। हमारी महिला पुलिस की बच्चियाँ लाठी खाते रहीं, गालियाँ सुनी लेकिन अपने कर्तव्य पर डटी रहीं। मैं उन्हें बधाई देता हूँ कि इस बर्बर व्यवहार के बाद भी उन्होंने संयम रखा। मैं आपसे पूछता हूँ, क्या पुलिस जवानों को गाली देना, मारना छत्तीसगढ़ की संस्कृति है?
ये पहली बार नहीं हुआ है, भाजपा के लोग पिछले एक साल से लगातार प्रयासरत हैं कि कैसे भी ये पुलिस को उकसाये, जनता को उकसाया और प्रदेश में हिंसा हो, शांति भंग हो। वो तो साधुवाद है हमारी पुलिस को, जिन्होंने संयम का अनूठा उदाहरण पेश किया है। वैसे मुझे हंसी भी आती है, जब मैं पीसीसी अध्यक्ष था तब भी ये लोग मेरे घर में पत्थर फेंकते थे, कालिख पोतते थे और आज मैं मुख्यमंत्री हूँ तब भी ये यही कर रहे हैं। कारण सरल है, ये अंतर है उनकी उत्तेजक मानसिकता और हमारी छत्तीसगढिय़ा संस्कृति में।
मैंने विपक्ष में रहते हुए इनके दमन को सहा है, मेरी आवाज़ दबाने का भरसक प्रयास किया गया था। मैंने उसी समय प्रण किया था कि मैं छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र की सदैव रक्षा करूँगा। आज मैं इनके कार्यकर्ताओं का भी मुख्यमंत्री हूँ, मैं हमेशा इनके विरोध करने के संवैधानिक अधिकार का भी संरक्षण करूँगा। उस समय को याद करिए जब बिलासपुर में कैसे इन्होंने कांग्रेस भवन के अंदर जाकर हमारे कार्यकर्ताओं के साथ अकारण हिंसा की थी। उस समय, उनके राज में विरोध करने का अधिकार बचा कहाँ था।
भाजपा की तो मानसिकता कहें या मास्टर प्लान कहें, वह यही है कि जब तक लाठीचार्ज नहीं होगा, आँसू गैस के गोले नहीं फोड़े जायेंगे, वॉटर कैनन नहीं चलेगा, परिवर्तन नहीं होगा। इनका मुद्दा बेरोजग़ारी तो कभी था ही नहीं, इनका मुद्दा था इसके बहाने पुलिस को उकसाएँ, लाठी खाएँ, माहौल बनाएँ और फिर लाठीचार्ज ही मुद्दा बन जाए। ये भूल गए कि यहाँ छत्तीसगढिय़ा सरकार है, लोकतंत्र अभी जि़ंदा है। मैंने अपनी पुलिस से यही कहा था, हमें दिखाना है छत्तीसगढिय़ा संस्कार क्या होते हैं। विपक्ष को बोलने दीजिए। मुझे पता है कि कल जनता को इस प्रदर्शन से कितनी असुविधा हुई, नन्हें बच्चों की पढ़ाई का नुक़सान हुआ। इसके लिए मैं मेरी जनता से क्षमाप्रार्थी हूँ।

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