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यह है ‘मौत की मशीन’, स्विट्जरलैंड में इच्छामृत्यु की मशीन को कानूनी मंजूरी, जानिए यह कैसे जान लेती है

Explained: यह है ‘मौत की मशीन’, स्विट्जरलैंड में इच्छामृत्यु की मशीन को कानूनी मंजूरी, जानिए यह कैसे जान लेती है
यह है सुसाइड पॉड, जिसे ऑस्‍ट्रेलिया के नॉन-प्रॉफि‍ट संगठन एग्‍जि‍ट इंटरनेशनल ने विकसित किया है.

इच्‍छामृत्‍यु के मामले में स्विट्जरलैंड सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. यहां सुसाइड पॉड यानी इच्‍छामृत्‍यु की मशीन को कानूनी मंजूरी दे दी गई है. इस मंजूरी के बाद इच्‍छामृत्‍यु का रास्‍ता साफ हो गया है. ऐसे मरीज जो गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं और जिनके बचने की उम्‍मीद नहीं है वो इस मशीन के जरिए मौत को गले लगा सकेंगे. हालांकि सरकार के इस फैसले पर लोग सवाल भी उठा रहे हैं. उनका कहना है, इस फैसले से आत्‍महत्‍या को बढ़ावा मिलेगा. इस सुसाइड पॉड को विकसित करने वाले ऑस्‍ट्रेलिया के नॉन-प्रॉफि‍ट संगठन एक्‍ज‍िट इंटरनेशनल के फाउंडर डॉ. फिलिप निटस्‍के को लोग डॉ. डेथ के नाम से बुला रहे हैं.

इच्‍छामृत्‍यु की जरूरत कब पड़ती है, यह मशीन कैसे इंसान को खत्‍म करती है और अब तक कैसे दी जाती थी इच्‍छामृत्‍यु, जानिए इन सवालों के जवाब…

इच्‍छामृत्‍यु की जरूरत कब पड़ती है?
इच्‍छामृत्‍यु का मतलब है अपनी मौत को गले लगाना. इसकी जरूरत तब पड़ती है जब जीवन मौत से भी ज्‍यादा तकलीफदेह हो जाता है. इच्‍छामृत्‍यु को अंग्रेजी में यूथनेशिया (Euthanasia) कहते हैं. इस शब्‍द की उत्‍पत्‍त‍ि ग्रीक भाषा के Euthanatos से हुई है. इसमें Eu का अर्थ है अच्‍छी और Thanatos का मतलब है मौत. इस तरह यह बना इच्‍छामृत्‍यु. यह दो तरह की होती हैं, पहली एक्टिव यूथनेशिया और दूसरी पैसिव यूथनेशिया.

एक्टिव यूथनेशिया के तहत मरीज की जिंदगी का अंत सीधे तौर पर डॉक्‍टर्स की मदद से किया जाता है. वहीं, पैसिव यूथनेशिया के तहत रिश्‍तेदारों और सगे-सम्‍बंधियों की अनुमति से डॉक्‍टर्स कोमा या गंभीर हालत में पड़े मरीज को बचाने वाले जीवनरक्षक उपकरण को धीरे-धीरे बंद करते जाते हैं. इस तरह मरीज की मौत हो जाती है.

‘मौत की मशीन’ जान कैसे लेती है?
इसे तैयार करने वाले संगठन एक्‍ज‍िट इंटरनेशनल का कहना है, हमनें सुसाइड पॉड के दो प्रोटोटाइप तैयार किए हैं. इसका नाम सारको रखा गया है. इसमें मरीज को लिटाया जाता है. इसके बाद एक बटन दबाया जाता है. ऐसा करने के बाद मशीन के अंदर नाइट्रोजन का लेवल बढ़ना शुरू हो जाता है और 20 सेकंड के अंदर ऑक्‍सीजन का लेवल 21 फीसदी से 1 फीसदी तक पहुंच जाता है. नतीजा, मरीज की 5 से 10 मिनट के अंदर मौत हो जाती है.

जब मशीन नहीं थी तो इच्‍छामृत्‍यु की प्रक्रि‍या क्‍या थी?
सुसाइड पॉड को तैयार करने वाले संगठन एक्‍ज‍िट इंटरनेशनल के संस्‍थापक डॉ. फ‍िलिप कहते हैं, इस नई मशीन से इच्‍छामृत्‍यु मांगने वाला मरीज पैनिक नहीं होता. अब तक इच्‍छामृत्‍यु का तरीका अलग था. स्विटजरलैंड में 1300 लोगों को इच्‍छामृत्‍यु दी जा चुकी है.

अब तक इच्‍छामृत्‍यु मांगने वाले मरीजों को लिक्विड सोडियम पेंटोबार्बिटल का इंजेक्‍शन दिया जाता था. इंजेक्‍शन देने के 2 से 5 मिनट बाद मरीज गहरी नींद में चला जाता था. इसके बाद कोमा में जाने के बाद मरीज की मौत हो जाती थी. कंपनी का कहना है, अब सुसाइड कैप्‍सूल की मदद से मरीज को ज्‍यादा आसान मौत दी जा सकेगी.

Explained: यह है 'मौत की मशीन', स्विट्जरलैंड में इच्छामृत्यु की मशीन को कानूनी मंजूरी, जानिए यह कैसे जान लेती है

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