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SUPRIM COURT : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: जमानत नियम है, जेल अपवाद, विशेष कानूनों में सुधार की जरूरत

SUPRIM COURT: Big decision of the Supreme Court: Bail is the rule, jail is the exception, special laws need to be reformed.

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए (प्रिवेंशन आफ मनी लांड्रिंग), एनडीपीएस (नशीले पदार्थ रखना) और यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोक अनिधियम) जैसे विशेष कानूनों में जमानत के कड़े मानक होना और आरोपियों को लंबे समय तक जेल काटने पर चिंता जताते हुए कहा है कि मुकदमे के निस्तारण में अत्यधिक देरी और जमानत देने के लिए उच्च सीमा (कड़े मानक) एक साथ नहीं चल सकते।

अपने फैसले में कोर्ट ने ईडी पर भी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि जब पीएमएलए के तहत दर्ज अपराध का ट्रायल तर्कसंगत समय में पूरा होने की संभावना न हो तो ऐसी स्थिति में संवैधानिक अदालतें पीएमएलए की धारा 45(1)(3) जैसे प्रविधानों को ईडी के हाथ का उपकरण बनने की इजाजत नहीं दे सकतीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह अपराध न्यायशास्त्र का तय सिद्धांत है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद।

‘अदालतों की शक्तियों को नहीं छीन सकते’ –

कोर्ट ने कहा कि पीएमएलए की धारा 45 (1)(3) जैसे जमानत के कड़े प्रविधान का इस्तेमाल अभियुक्त को बिना ट्रायल के बहुत लंबे समय तक जेल में रखने के लिए नहीं हो सकता। ये प्रविधान मौलिक अधिकारों के हनन के आधार पर जमानत देने की संवैधानिक अदालतों की शक्तियों को नहीं छीन सकते। इन सख्त टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने कैश फॉर नौकरी घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी को गुरुवार को सशर्त जमानत दे दी।

सेंथिल बाला जी पिछले 15 महीने से जेल में हैं। ट्रायल शुरू न होने और पीएमएलए जैसे विशेष कानूनों में आरोपियों के लंबे समय तक जेल काटने पर चिंता जताने वाला यह फैसला न्यायमूर्ति अभय एस ओका और अगस्टिन जार्ज मसीह की पीठ ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में वी. सेंथिल बालाजी की याचिका स्वीकार करते हुए दिया।

बालाजी ने सुप्रीम कोर्ट में की थी अपील –

मद्रास हाई कोर्ट से जमानत अर्जी खारिज होने के बाद सेंथिल बालाजी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने सेंथिल बालाजी को नियमित जमानत देते हुए कड़ी शर्तें लगाई हैं। कोर्ट ने कहा है कि 25 लाख का जमानती बंधपत्र और इतनी ही राशि के दो जमानती पेश करने पर बालाजी को जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा। वह गवाहों से संपर्क की कोशिश नहीं करेंगे।

साथ ही कोर्ट ने कहा कि चेन्नई के ईडी ऑफिस में डिप्टी डायरेक्टर के समक्ष हर सोमवार और शुक्रवार को हाजिरी देंगे। पासपोर्ट सरेंडर करेंगे। केस की सुनवाई के दौरान नियमित तौर पर कोर्ट में हाजिर होंगे बेवजह सुनवाई का स्थगन नहीं मांगेंगे। इस मामले में बालाजी पर आरोप है कि 2011 से 2016 के बीच जब वह तमिलनाडु में परिवहन मंत्री थे, उन्होंने स्टाफ और भाई के साथ मिलकर परिवहन विभाग में नौकरी देने के बदले लोगों से पैसे लिए थे।

‘स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन’ –

सुप्रीम कोर्ट ने जमानत स्वीकार करते हुए कहा कि आरोपी 15 महीने से जेल में है और तीन-चार वर्षों में ट्रायल पूरा होने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में अगर याचिकाकर्ता की हिरासत जारी रही तो उसके स्पीडी ट्रायल के अधिकार और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। पीठ ने कहा कि पहले भी केए नजीब सहित कई फैसलों में कोर्ट कह चुका है कि जमानत देने के कड़े प्रविधान मौलिक अधिकार के हनन पर जमानत देने की संवैधानिक अदालतों की शक्ति नहीं छीनते।

कोर्ट ने कहा कि अगर कानून में तय सजा का महत्वपूर्ण हिस्सा अभियुक्त जेल काट चुका है और तर्कसंगत समय में ट्रायल पूरा होने की संभावना नहीं है तो जमानत देने के कड़े प्रविधान पिघल जाएंगे। हालांकि अपवाद के मामले भी हो सकते हैं, जिनमें जमानत पर अभियुक्त समाज के लिए खतरा बन सकता हो, ऐसे मामले में कोर्ट जमानत से मना कर सकता है। यह विवेकाधिकार है।

 

 

 

 

 

 

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