SUPREME COURT : मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई का बड़ा फैसला, नारायण राणे को झटका !

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SUPREME COURT : Big decision of Chief Justice Bhushan Gavai, shock to Narayan Rane!

नई दिल्ली, 16 मई 2025। SUPREME COURT भारत के नए मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई ने पदभार संभालते ही एक ऐतिहासिक और कड़ा फैसला सुनाते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में महाराष्ट्र के शिवसेना-भाजपा शासनकाल के दौरान पुणे की 30 एकड़ वन भूमि को एक बिल्डर को सौंपने के आदेश को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने इस भूमि को वापस वन विभाग को सौंपने का निर्देश दिया है।

राजनीतिक-प्रशासनिक गठजोड़ का उदाहरण बताया

SUPREME COURT न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले को सत्ता, नौकरशाही और बिल्डरों के गठजोड़ का क्लासिक उदाहरण करार दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यह सत्ता के दुरुपयोग का गंभीर मामला है और देशभर की राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया गया है कि वे एक साल के भीतर इस प्रकार के सभी संदिग्ध भूमि हस्तांतरणों की जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपें।

1998 में हुई थी संदिग्ध सौदेबाजी

SUPREME COURT यह विवाद पुणे के कोंढवा क्षेत्र की 30 एकड़ जमीन से जुड़ा है, जिसे 1998 में तत्कालीन राजस्व मंत्री नारायण राणे के विभाग ने एक व्यक्ति चव्हाण को कृषि भूमि के नाम पर आवंटित किया था। चव्हाण ने जल्द ही यह जमीन ‘रिची रिच कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी’ को 2 करोड़ रुपये में बेच दी, और फिर प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से इसे गैर-कृषि घोषित कर दिया गया।

बिल्डरों की बड़ी योजना पर कोर्ट की रोक

इस जमीन पर एक बड़ी आवासीय योजना प्रस्तावित थी, जिसमें 1,550 फ्लैट, 3 क्लबहाउस, 30 रो हाउस और 1 शॉपिंग कॉम्प्लेक्स शामिल थे। इस परियोजना को सिटी ग्रुप, ऑक्सफोर्ड प्रॉपर्टीज और रहेजा बिल्डर्स का संयुक्त उद्यम बताया गया था, लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद यह योजना ठप पड़ गई है।

पर्यावरण समूह की याचिका बनी आधार

SUPREME COURT इस मामले का खुलासा पर्यावरण संरक्षण समूह ‘सजग चेतना मंच’ द्वारा 2002 में दायर याचिका के जरिए हुआ था। कोर्ट ने इसके बाद CEC (केंद्रीय सशक्त समिति) से जांच करवाई। समिति की रिपोर्ट में भूमि के अवैध आवंटन और रिकॉर्ड से छेड़छाड़ की पुष्टि की गई।

रिकॉर्ड से छेड़छाड़ और फर्जी दस्तावेजों की जांच CID को

दिसंबर 2023 में बिल्डर द्वारा पुराने रिकॉर्ड में हेरफेर कर कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश सामने आई थी। जनवरी 2024 में यह मामला CID को सौंप दिया गया था।

वन भूमि पर मुआवजे का प्रावधान

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि निर्माण के कारण भूमि की वापसी संभव नहीं हो, तो बिल्डर से बाजार मूल्य के अनुसार मुआवजा वसूला जाएगा। इसके अलावा, सभी राज्यों को निर्देश दिया गया है कि वे हर साल वन भूमि के ऐसे मामलों की समीक्षा कर कार्रवाई करें।

 

 

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