SUPREME COURT : CrPC की धारा 311 के तहत ट्रायल के किसी भी चरण में बुलाए जा सकते हैं गवाह, ऑनर किलिंग केस में 11 दोषियों की अपील खारिज

SUPREME COURT : Witnesses can be called at any stage of trial under section 311 of CrPC, appeal of 11 convicts in honor killing case rejected
नई दिल्ली, 19 मई। SUPREME COURT ऑनर किलिंग से जुड़े एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 311 के तहत किसी भी व्यक्ति को मुकदमे के किसी भी चरण में गवाह के रूप में बुलाया जा सकता है, भले ही साक्ष्य पहले ही बंद हो चुका हो। अदालत ने यह भी कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत न्यायालय को प्राप्त शक्तियां CrPC की धारा 311 की पूरक हैं।
यह फैसला जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस पीके मिश्रा की डिवीजन बेंच ने तमिलनाडु के कन्नगी-मुरुगेसन ऑनर किलिंग केस की सुनवाई करते हुए दिया। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलों को बरकरार रखते हुए 11 दोषियों की अपील खारिज कर दी।
अदालत ने कहा – न्याय के लिए गवाहों को बुलाना जरूरी
SUPREME COURT कोर्ट ने कहा कि अगर न्यायालय को लगता है कि किसी व्यक्ति को अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में बुलाया जाना चाहिए था लेकिन किसी चूक के कारण ऐसा नहीं हुआ, तो उसे बुलाया जा सकता है। यह शक्ति कोर्ट स्वप्रेरणा से या पक्षकारों के आवेदन पर इस्तेमाल कर सकता है। अदालत ने कहा कि उद्देश्य यह है कि कोई भी आवश्यक साक्ष्य छूट न जाए।
‘अदालती गवाह’ बनाम ‘अभियोजन गवाह’ पर भी स्पष्टता
फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया कि जब अदालत खुद किसी व्यक्ति को बुलाती है, तो वह अदालती गवाह (court witness) होता है और उसकी जांच के दौरान कुछ सीमाएं होती हैं। वहीं, जब अभियोजन पक्ष किसी को बुलाता है तो वह गवाह मुख्य, पुनः और जिरह की पूरी प्रक्रिया से गुजरता है।
क्या है मामला?
SUPREME COURT यह मामला मुरुगेसन और कन्नगी की ऑनर किलिंग से जुड़ा है। दलित युवक मुरुगेसन और वन्नियार समुदाय की युवती कन्नगी ने वर्ष 2003 में गुप्त रूप से विवाह किया था। जब लड़की के परिवार को इसकी जानकारी मिली, तो उन्होंने दोनों को पकड़कर कीटनाशक पिला दिया और फिर शव जला दिए। इसे तमिलनाडु में ऑनर किलिंग का पहला मामला माना गया।
CBI जांच के बाद 2021 में ट्रायल कोर्ट ने लड़की के भाई को मौत की सज़ा और पिता सहित 12 अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इन सजाओं को बरकरार रखते हुए पीड़ित पक्ष को 5 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया है।