सावन के महीने में पुलिस और महादेव के भक्तों में आंख मिचौली चल रही है। बताते हैं कि महादेव के कर्ता-धर्ता कुछ लोगों को एक जांच एजेंसी ने दबोच लिया है। इसका खुलासा जल्द हो सकता है।
चर्चा यह भी है कि महादेव की एक पुलिस अफसर पर खूब कृपा बरसी है। अफसर को प्रसाद के रूप जमीन-जायजाद और आभूषण हासिल हुए हैं। महादेव के भक्तों के नाम भी देर सबेर सार्वजनिक हो सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो प्रदेश की राजनीति में हलचल मचेगी ही। अब आगे क्या होता है, इसको लेकर उत्सुकता है।
बैस के अभिनंदन से कइयों की नींद उड़ी…
रमेश बैस इन दिनों महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में एक संवैधानिक पद पर हैं। पिछले दिनों उनके जन्मदिन के अवसर पर रायपुर के इंडोर स्टेडियम में एक अभिनंदन समारोह का आयोजन किया गया। बैसजी के जन्मदिन पर ऐसा अभिनंदन पहली बार ही हुआ। आने वाले समय में राज्य में विधानसभा का चुनाव होने वाला है। प्रदेश में भाजपा की स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है। चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, यह बोलने की स्थिति में भी पार्टी का कोई नेता नहीं है। ऐसे में पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले रमेश बैस का जिस तामझाम से नागरिक अभिनंदन किया गया उससे कइयों को लगने लगा कि बैस आने वाले दिनों में राज्य की राजनीति में तो नहीं आएंगे। समारोह में यह बोलकर बैस ने सीएम पद के भाजपाई दावेदारों की चिंता और बढ़ा दी कि उनका 40 साल का राजनीतिक जीवन बेदाग रहा और उन पर कोई आरोप नहीं लगा। उनकी आगामी गतिविधियों पर भी बाकी दावेदारों की निगाहें रहेंगी। चर्चा है कि बैसजी के सम्मान समारोह कि पूरा खर्चा एक कांग्रेस नेता ने वहन किया था। इसको लेकर कार्यक्रम स्थल पर कानाफूसी होती रही।
पेटियों में बंद प्रजातंत्र
भाजपा का चुनाव घोषणा-पत्र बनाने से पहले 32 सदस्यीय समिति कार्यकर्ताओं और जनता से सुझाव लेने प्रदेश के दौरे पर निकल चुकी है। समिति के सदस्य अपने साथ पेटियाँ लेकर चल रहे हैं, जिसमें लोग लिखित सुझाव डाल सकेंगे। इसी तरह की क़वायद 2018 के चुनाव से पहले प्रत्याशी चयन को लेकर की गई थी। कई नेताओं को हेलिकॉप्टर से पेटियों के साथ भेजा गया। पेटियों में सुझाव देने वाले कार्यकर्ताओं को आजतक नहीं पता चला कि उनकी राय को बंद पेटियों से निकाला गया या नहीं। कुछ कार्यकर्ताओं का मानना है कि उनकी राय को महत्व नहीं दिया गया। नतीजतन पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। प्रदेश भाजपा एकबार फिर उसी प्रक्रिया को अपना रही है। संदेह में डूबे कार्यकर्ताओं का मानना है की इस दफे भी शायद ही उनके सुझावों को घोषणा-पत्र में शामिल किया जाये। यह भी संभव है कि पेटियाँ खोली ही न जाये। आख़िर प्रजातंत्र को पेटियों में क़ैद करने का सिलसिला कब थमेगा?
पताल की महंगाई मार गई
पताल यानी टमाटर की महंगाई की इन दिनों घर-घर में चर्चा है। कई हफ्तों से इसकी कीमत डेढ़ सौ से दो सौ रुपए के बीच बनी हुई है। महंगे टमाटर को लेकर कई तरह के मजाकिया वीडियो सोशल मीडिया में भी चल रहे हैं। टमाटर की महंगाई ने अच्छे-अच्छे के होश उड़ा दिए हैं। लेकिन यह बात कम लोग जानते हैं कि कुछ साल पहले एनएसएसओ ने एक सर्वे करवाया था जिसमें यह बात सामने आई थी कि टमाटर की प्रति व्यक्ति खपत छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा है। यहां बोरे-बासी के साथ लोग पताल की चटनी तो खाते ही हैं, ऐसी कोई सब्जी नहीं होगी जिसमें टमाटर नहीं डालते। टमाटर को लेकर छत्तीसगढ़ी में कई गाने भी हैं जैसे…..भाटा के भइरता, पताल के हे चटनी… आदि। लेकिन 2 सौ रुपए किलो के टमाटर ने छत्तीसगढ़ियों के होश उड़ा दिए हैं। बाजार जाते हैं तो कुछ लोग टमाटर के भाव पूछकर ही वापस आ जाते हैं। कुछ एक पाव तो कुछ आधा किलो ही खरीद कर ला पा रहे हैं। ऐसे में घर में टमाटर की चटनी बनना तो दूर, सब्जियों में भी एक या आधा टमाटर ही डाल पा रहे हैं। टमाटर की महंगाई से लोग ‘लाल’ हो रहे हैं, इस बात का अहसास केंद्र की भाजपा सरकार को भी है इसीलिए कुछ शहरों में उन्होंने 70-80 रुपए किलो में टमाटर बेचने का इंतजाम भी करवाया था, लेकिन इसमें छत्तीसगढ़ का एक भी शहर शामिल नहीं था। ऐसे में छत्तीसगढ़ियों का नाराज होना स्वाभाविक है। लेकिन इसका कोई असर आने वाले चुनावों पर भी पड़ेगा या नहीं यह आने वाले चुनावों में पता चलेगा।
नौकरशाही से नेतागिरी की ओर
जीवनभर नौकरशाही के मजे लेने के बाद आधा दर्जन से ज़्यादा मौजूदा व पूर्व अफ़सर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। इनमें सिर्फ़ ओपी चौधरी ही एकमात्र नेता हैं, जिन्होंने भारी जवानी में आईएएस से इस्तीफ़ा देकर भाजपा का दामन थामा है। आईएएस नीलकंठ नेताम भाजपा की टिकट के लिये इस्तीफ़ा दे चुके हैं, मगर सरकार उसे मँजूर नहीं कर रही है। नियमानुसार 90 दिन बाद इस्तीफ़ा स्वमेव स्वीकृत माना जाता है। ऐसे में टेकाम को नौ अगस्त तक इंतज़ार करना होगा। कमिश्नर स्तर के एक अफ़सर डोंडीलोहारा से चुनाव लड़ना चाहते हैं। उन्होंने अभी नौकरी नहीं छोड़ी है। वे 2018 में भी भाजपा की चौखट से लौटाए जा चुके हैं। पूर्व आईएएस गणेश शंकर मिश्रा की नज़र धरसींवा सीट पर है। वहीं पूर्व आईएफएस एससी बड़गैया को डॉ. रमन सिंह व धरमलाल कौशिक की मदद से बिलासपुर संभाग की किसी एक सीट से टिकट मिलने की उम्मीद है। पूर्व आरटीओ अफसर पीलाराम नेताम नगरी-सिहावा व पूर्व आबकारी अफसर आरएल भारद्वाज चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र से दावेदारी कर रहे हैं। देखें, किसे क्या मिलता है।