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तिरछी नजर 👀 : योगी की मांग…. ✒️✒️

कवर्धा में दो योगी की जबरदस्त मांग है। एक उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ, तो दूसरे पूर्व विधायक योगीराज सिंह। दोनों योगी ,कवर्धा की हवा बदलना चाहते हैं। छत्तीसगढ़ की करीब 15 सीटों पर कड़ा संघर्ष दिख रहा है। इसमें कुछ विधानसभा क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला है । इसमेें कवर्धा विधानसभा क्षेत्र में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति कवर्धा राजा खडक़राज सिंह के चुनाव लडऩे से बन रही है । कवर्धा के पूर्व विधायक और रमन सिंह को एक बार पराजित करने वाले योगेश्वर राज पिछले सप्ताह से अपने भाई का प्रचार कर रहे है । राहुल गांधी की आम सभा में नहीं बुलाए जाने के बाद नाराज योगी राज ने भाई के पक्ष में प्रचार करने का फैसला किया । दोनों भाई कवर्धा के आदिवासी इलाको ंमें पूरा जोर लगा रहे है ,जहां मोहम्मद अकबर को एक तरफा लीड़ मिलती है। कवर्धा के हर समीकरण पर दोनों पार्टी के दिग्गजों की नजर है।
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भाजपा के रेवड़ी से कांग्रेसी खुश

भाजपा हर चुनाव में मुफ्त जनता को देने की नीति की आलोचना करती है लेकिन छत्तीसगढ़ में उसकी नीति बदल गई कांग्रेस के 17 घोषणा के दबाव में भाजपा ने भी धान खरीदी सहित कई सब्सिडी देने को तैयार है .भाजपा के घोषणा पत्र लागू होने के बाद कांग्रेस ने राहत की सांस ली है । राजधानी रायपुर से लेकर नई दिल्ली तक के नेताओं को भाजपा के खिलाफ बोलने के लिए आगामी लोकसभा चुनाव तक कई मुद्दे मिल गए है । भूपेश सरकार के लगभग 23 योजनाओं छत्तीसगढिय़ा ओलंपिक ,रीपा, सी मार्ट, सस्ता दवाई दुकान, तुहरद्वार, धान खरीदी, को नाम बदल कर तथा योजना का थोड़ा विस्तार कर घोषणा पत्र में शामिल किया गया है, जिन योजनाओं को भाजपाई विरोध कर रहे थे वहीं योजना घोषणा पत्र में शामिल हो गए, भारी मशक्कत के साथ लम्बी चौड़ी टीम ने घोषणा पत्र बनाई है ,इसको जनता और कार्यकर्ताओ ने कितना पसंद किया है इसका विश्लेषण होने लगा है ।घोषणा पत्र बनाने वाले सांसद विजय बघेल के ही खुश नहीं होने की खबर आ रही है।

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घर से नहीं निकलने का फरमान

भाजपा में टिकट वितरण के बाद पार्टी संगठन के दबाव में बागी प्रत्याशी शांत हो गए लेकिन पार्टी के दिग्गज दावेदारों ने कार्यकर्ताओ को घर से नहीं निकलने का फरमान जारी कर दिये है । धरसीवां और केशकाल सहित कई विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशी जनता से सीधे मिलकर समर्थन मांग रहे है। छत्तीसगढ़ी फिल्म स्टार अनुज शर्मा का क्रेज ग्रामीण इलाको में अच्छा है ।गांव आने की सूचना मात्र से भीड जमा हो जाती है ।इसी तरह कोण्डागांव कलेक्टर रहे नीलकंठ टेकाम के लिए भी केशकाल विधानसभा क्षेत्र में भीड़ जमा हो रही है ।पर कार्यकर्ता नदारद है। देखते है कार्यकर्ताओं की जीत होती है या पार्टी हाईकमान के आदेश का ।

जोगी परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर…

पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद हो रहे पहला विधानसभा चुनाव में परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। विधानसभा चुनाव के अंतिम दिन जोगी परिवार की धमाकेदार एण्ट्री से प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर खलबली मचा दी है, अमित जोगी के पाटन से लडऩे के बाद किसको ज्यादा नुकसान होगा इसका आंकलन लगाया जा रहा है । क्षेत्र के लोगों को आशंका है कि भाजपा को यह गणित महंगा पड़ सकता है। रेणु जोगी ने कोटा से नांमाकन दाखिल कर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना दी है भाजपाई चाहते है । अस्वस्थ्य रेणु जोगी कोटा में धुंआदार दौरा कर माहौल तैयार करे,लेकिन रेणु जोगी की निष्क्रियता से चिंतित है। बहु रिचा जोगी का पिछले बार की तरह माहौल तैयार नहीं हो पा रहा है। जोगी कांग्रेस सहित तीसरे मोर्चे के दलों की स्थिति खराब होने की खबर से सीधा मुकाबला बढ़ सकता है।

शराब नीति या शराब बंदी…

भारतीय जनता पार्टी पांच साल से शराब बंदी को लेकर पूरे प्रदेश में धरना आंदोलन प्रदर्शन कर रही थी लेकिन उनके घोषणा पत्र में शराबबंदी को लेकर एक लाइन नहीं है।कल कांग्रेस का भी घोषणा पत्र आ रहा है , शराब नीति में फिर से परिवर्तन का संकेत अमित शाह ने जरूर दिया है। देखते हैं शराब लाबी और शराब प्रेमी किसका साथ देते हैं।

दुश्मन का दुश्मन दोस्त..

रायपुर के एक भाजपा प्रत्याशी को हराने के लिए पार्टी के पूर्व विधायक ने एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता से हाथ मिला लिया है। दोनों ने मिलकर एक निर्दलीय प्रत्याशी खड़ा कराया है। यद्यपि निर्दलीय के जीतने की दूर दूर तक उम्मीद नहीं है, लेकिन वोट कटवा की भूमिका में है और उन्हें उसी क्षेत्र में प्रचार के लिए कहा गया है जहां भाजपा का प्रत्याशी का प्रभाव है। निर्दलीय प्रत्याशी को संसाधन भी मुहैया कराए जा रहे हैं। आगे क्या होता है, यह देखना है।

प्रचार का मोहन मॉडल

चुनाव प्रचार का बृजमोहन मॉडल भाजपा के बाक़ी प्रत्याशियों को भी भा रहा है। कुछ ने उस पर अमल भी शुरू कर दिया है। असल में बृजमोहन अग्रवाल 35 साल से विधायक हैं और उनके ख़िलाफ़ एंटी इंकमबेंसी भी कम नहीं है। इसका उपचार उन्होंने किया ग़ैर-राजनीतिक मित्रों और रिश्तेदारों के ज़रिए। वे हर चुनाव में परंपरागत कार्यकर्ताओं की बजाय मतदाताओं के सामने मित्रों और रिश्तेदारों को कर देते हैं। नये और हंसते-मुस्कुराते चेहरों के सामने मतदाताओं का सारा ग़ुस्सा काफ़ूर हो जाता है और बृजमोहन कामयाब हो जाते हैं। यही टिप्स उन्होंने इस बार राजेश मूणत को दी है। मूणत ने इस पर अमल शुरू कर दिया है। उनके लिए ओबीसी व मिडिल क्लास कार्यकर्ता घर-घर जा रहे हैं। देखें, कामयाबी का मोहन मॉडल कितना असरकारी होता है।

साय का संकट

रायपुर उत्तर के प्रत्याशी कुलदीप जुनेजा के कार्यालय में उत्कल समाज की बैठक चल रही थी। बीच में नंदकुमार साय पहुँच गये। पार्टी नेताओं ने उन्हें ससम्मान मंच पर बिठाया। बैठक में तमाम नेता भाजपा पर बरस रहे थे। उन दिनों की बात भी कर रहे थे, जब साय भाजपा में हुआ करते थे। ऐसी स्थिति में साय असहज हो जाते थे। जब बोलना शुरू किए तो विनम्रतापूर्वक स्पष्ट कर दिया कि मैं पहले भाजपा में था। अटल-आडवाणी वाली भाजपा। मगर अब पार्टी वैसी नहीं रही। लगता है सरल स्वाभावी साय को कांग्रेसी रंग में रंगने में समय लगेगा।

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