
दीपावाली के समय सराफा और ऑटोमोबाइल से ज़्यादा टर्नओवर चंदे के धंधे में हैं। राजनीतिक दलों और नेताओं के इस धंधे में रोज़ करोड़ों के वारे-न्यारे हो रहे हैं। हर नेता ने अपनी वरिष्ठता, क़द और क्षेत्र के मुताबिक़ चंदे की न्यूनतम राशि तय कर रखी है। दशकों पुराने विधायक दस लाख से कम रक़म स्वीकार नहीं कर रहे हैं। उससे कम राशि लेकर पहुँचने वालों को बैरंग लौटाया जा रहा है। अरबों की मिल्कियत और लक्ज़री जीवन जीने वाले नेताजी व उनके करीबी लोग बाज़ार के सतत संपर्क में हैं। हर बड़े कारोबारी, बिल्डर और उद्योगपति तक उनकी डिमांड पहुँच चुकी है। चंदा देने वालों का सबसे बड़ा गढ़ रायपुर बन गया है। यहाँ के बाज़ार पर पूरे प्रदेश से दबाव है। व्यापारी और उद्योगपति अनचाहे मन से नेताओं की माँग पूरी कर रहे हैं। इनके अलावा व्यापारिक संगठन भी नेताओं के लिए चंदा इकट्ठा करने में जुटे हुए हैं। बताते हैं कि पहले चरण की एक वीआईपी सीट में दो प्रमुख प्रत्याशियों को पूरे प्रदेश से जमकर चंदा मिला। सरकारी अफ़सरों ने भी इसमें भरपूर योगदान दिया। ईडी और आईटी के ताबड़तोड़ छापों के बावजूद चंदे के धंधे में चार चाँद लगे हुए हैं।
भाजपा का प्लान बी
क्या भाजपा ने चुनाव मैदान में प्लान बी पर काम शुरू कर दिया है? रायपुर दक्षिण में विधायक बृजमोहन अग्रवाल के साथ हुई झूमाझटकी को हिंदू-मुस्लिम विवाद का रंग देने की कोशिश से तो यही लगता है। बृजमोहन भी अपने प्रतिद्वंद्वी को छोड़कर लगातार ढेबर बंधुओं पर निशाना साध रहे हैं। बावजूद इसके माहौल बदल नहीं पाया। बताते हैं कि हिंदुत्व जगाने की इस योजना को अमलीजामा पहनाने का जिम्मा विधायकजी को मिला है। वे दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में हैं। उन्हें उम्मीद है कि प्लान सफल रहा तो राजनीति ने लंबी छलांग लगाने का मौक़ा मिल सकता है। उम्मीद पर दुनिया क़ायम है।
ओपी को फायदा होगा या नुकसान
पूर्व आईएएस एवं रायगढ़ से भाजपा प्रत्याशी ओपी चौधरी के प्रचार के लिए रायगढ़ पहुंचे गृहमंत्री अमित शाह ने लोगों से यह कहते हुए ओपी को जिताने की अपील की कि वे उन्हें विधायक बनाएं उन्हें बड़ा आदमी बनाने की जिम्मेदारी उनकी है। अमित शाह की कही हुई यह बात अखबारों में भी प्रमुखता से छपी। इससे यह संदेश चला गया कि भाजपा नेतृत्व ओपी चौधरी को अगला मुख्यमंत्री बनाना चाह रहा है। भाजपा में पहले ही इस पद के कईं दावेदार हैं । श्री शाह के बयान के बाद राजनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि श्री शाह ने ऐसा बयान देकर उनका भला किया या नुकसान? ज्यादातर लोगों का मानना है कि इस बयान से ओपी को फायदा होने के बजाय नुकसान हो सकता है। भाजपा में सीएम पद के दावेदार और उनके समर्थक ही उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। सीएम बनने से पहले ही विधायक बनने में अड़चन न आ जाए। समय रहते स्पष्टीकरण आ जाए तो उनके लिए फायदेमंद रहेगा।
उपहार से परहेज़ नहीं
पूर्व सीएम डां रमन सिंह इस बार मुश्किल में घिर गए हैं। कांग्रेस प्रत्याशी गिरीश देवांगन से ऐसी टक्कर मिली है जिससे रमन सिंह की जीत पर संशय पैदा हो गया है।
बताते हैं कि सीएम भूपेश बघेल खुद गिरीश के प्रचार प्रसार की मानिटरिंग कर रहे थे और साधन-संसाधन के मामले में गिरीश, रमन सिंह के मुकाबले इक्कीस साबित हुए हैं।
चर्चा है कि हर मोहल्ले में कुछ न कुछ भेंट-उपहार दिया गया है। इसमें जरा भी भेदभाव नहीं किया गया है। यानी भाजपा के लोगों को भी सब कुछ मिला। यही नहीं, कांग्रेस के नेता,भाजपा के एक बड़े नेता के घर भी भेंट देने पहुंच गए।खास बात यह है कि भाजपा नेता की पत्नी ने भेंट स्वीकार कर लिया। अगर इसका असर हुआ, तो चौंकाने वाले नतीजे आ सकते हैं।
अफसरों पर नजर
चर्चा है कि केन्द्र सरकार चुनाव में अफसरों की भूमिका पर नजर रखे हुए है। बताते हैं कि आईबी के तीन डीआईजी स्तर के अफसर यहां आए थे और प्रथम चरण की उन सीटों पर निगाह रखे हुए थे जहां पुलिस -प्रशासन की भूमिका को संदेह की नजरों से देखा जा रहा था। इन जिलों में सरकारी अमला चाह कर भी सत्ताधारी दल के लोगों की मदद नहीं कर पाया।
कड़े मुकाबले में फंसे हैं सिंहदेव
डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव अंबिकापुर में कड़े मुकाबले में फंसे हुए हैं। यद्यपि भाजपा के कई स्थानीय पदाधिकारी उनके प्रति सहानुभूति रखे हुए हैं। इन सबके बीच एक नेता ने फेस बुक पर समाज विशेष के खिलाफ काफी कुछ लिख दिया। इसको लेकर टीएस के विरोधी आलोक दुबे सक्रिय हो गए।
उन्होंने जिला भाजपा अध्यक्ष को शिकायत करने कहा, लेकिन कांग्रेस के खिलाफ शिकायत नहीं करना चाहते थे फिर दबाव पड़ने पर कुरियर भेजकर स कलेक्टर से शिकायत की गई। इसके बाद आलोक दुबे ने सीधे दिल्ली में बड़े नेताओं के मार्फत चुनाव आयोग में शिकायत की। इसके बाद यहां प्रशासन में हड़कंप मचा है। अब शिकायत पर कार्रवाई हो रही है।