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तिरछी नजर : शोध पीठ के अध्यक्ष और अधिकारी पर चर्चा

 

आरक्षण संशोधन विधेयक के दौरान एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला व सेवानिवृत्त अधिकारी केपी खांडे छाये रहे। पांच घंटे की बहस के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह, पूर्व मंत्री व आधा दर्जन विधायकों ने दोनों सदस्यों को उपकृत करने की कहानी सुनाई। पद देने का जोरदार तरीके से विरोध किया। आरक्षण के नियम प्रावधान से ज्यादा कुणाल शुक्ला के कार्यों की बहस होती रही। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सदन में कुणाल की तारीफ करते हुए बताया कि उसकी कई योग्यता है। मंत्री के भाई ने जिस तरीके से सड़क की जमीन को कब्जा किया और उसका विरोध करने वाला शहर में वही अकेला शख्स था।
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आगे-आगे देखिए होता है क्या ?

फिल्मी गीत है.. आगे-आगे देखिए होता है क्या, यही गाना इन दिनों राज्य सरकार विरोधी लोग जोरदार तरीके से गा रहे हैं। अभी तो फिल्म का ट्रेलर देखा है पिक्चर अभी बाकी है। वॉट्सएप विशेषज्ञ विधानसभा चुनाव के पहले होने वाले उठा पटक किस मोड़ में कहां तक जाती है इसका कयास अलग-अलग तरीके से लगा रहे हैं। ईडी के छापों और अधिकारियों की गतिविधियों की खबर पहले ही लीक हो जा रही है या ईडी की योजनाओं को बड़े लोग साझा कर रहे हैं। शुक्रवार को हुई ईडी की कार्यवाही के दावे पहले ही कर दिए गए थे। अब यह दावा किया जा रहा है कि महीने डेढ़ महीने तक कई और बड़े चेहरे धरे जाएंगे। अगला निशाना एक चर्चित आईएएस अफसर है। तार कई बड़े लोंगों तक जुड़ेंगे। सरकार की परेशानी बढ़ेगी। ईडी की नजर में कांग्रेस के कई नेता और नौकरशाह है।
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किनारे बैठकर तमाशा देखते हैं

छत्तीसगढ़ भाजपा में हो रहे परिवर्तन के बाद कई पूर्व मंत्री और पूर्व पदाधिकारी घर बैठा दिए गए हैं। केन्द्र व राज्य इकाई द्वारा चलाए जा रहे अभियान संगठनात्मक हो या चुनावी गतिविधियों में भी पूछपरख नहीं हो रही है। वर्षों से राज्य में धाक जमा कर राजनीति करने वाले इन नेताओं के चेहरों में दर्द भी छलक रहा है। पार्टी के भीतर नई पीढ़ी व पुरानी पीढ़ी के बीच के चलते अंतरद्वंद दिख तो नहीं रही है पर खाई बढ़ती जा रही है। केन्द्रीय स्तर पर कई राज्यों में परिवर्तन के अलग-अलग मापदंडों के आधार पर किनारे बैठकर तमाशा देखना ही उचित मान रहे हैं। पार्टी के भीतर बढ़ती गुटबाजी और महत्वाकांक्षा को सम्भालने वाला सेतु का इंतजार है।
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कृषि में जीएसटी का खेल

राजनांदगांव में बनाए जा रहे कृषि कॉलेज भवन निर्माण को लेकर एक बड़ा खेल उजागर हुआ है। भाजपा शासनकाल से बन रहे इस कॉलेज में काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है। कागज में चलते करोड़ों के इस काम में जीएसटी लगाकर भारी राशि की हेराफेरी कर दी गई जबकि उस समय जीएसटी लागू ही नहीं हुआ था। ठेकेदार ने समय सीमा पर काम नहीं किया और उलटा तरह-तरह के बहाने बताकर पैसा निकाल रहे है। इसमें हैरतअंगेज बात यह है कि अधिकारी ही राशि निकालने के लिए नियम कानून बता रहे हैं। इस भाजपायी ठेकेदार का कांग्रेसियों से भी अच्छा संबंध होने के कारण कागज दौड़ रहे हैं।
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आईएएस अधिकारी का छलका दर्द

पिछले दिनों आईएएस अफसरों के हुए तबादले में कई विसंगति के चलते एक आईएएस अधिकारी भरी बैठक में आग बबूला हो गए। वर्षों तक उस विभाग में रहकर एकतरफा चलाने वाले इस आईएएस अधिकारी से मंत्री से लेकर कर्मचारी तक परेशान है। इस अधिकारी के पास अभी पूरे विभाग के सारे महत्वपूर्ण पद हैं। अधिकारी यह दावा करते हैं कि मेरे आने से विभाग में अमूल चूल परिवर्तन आया है और आयेगा। जनप्रतिनिधियों की नाराजगी के चलते पिछले दिनों हुए फेरबदल में इस अधिकारी का प्रभाव थोड़ा कम क्या कर दिया कि भी बैठक में मातहत अधिकारियों को ही अमानित करने लगे हैं। बंद कमरे में जो बात होनी चाहिए वह भरी बैठक में करने का मामला शीर्ष तक पहुंच गया है। देखना है क्या होता है। साहब की ऊपर पूछपरख अच्छी है इसलिए नीचे वाले हां में हां मिलाते काम करते हैं।
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ससुर-दामाद वकील

ईडी की गिरफ्त में आए कोयला कारोबारी ने अपना वकील बदल दिया है। बताते हैं कि कारोबारी की पैरवी के लिए वकील ससुर-दामाद दिल्ली से आए थे। ससुरजी का ईडी, सीबीआई, और आईटी के हाई प्रोफाइल केसेस पैरवी में महारत हासिल है। अरनब गोस्वामी, सुधीर चौधरी जैसे दिग्गजों की पैरवी भी ससुर-दामाद कर रहे हैं। दामाद तो रायपुर के रहने वाले हैं। इस वजह से कारोबारी को फीस को थोड़ी बहुत डिस्काउंट की उम्मीद थी। साथ ही उन्हें केस में राहत का भरोसा था। तीन बार ससुर-दामाद आ चुके हैं। एक सीआर से अधिक भुगतान करना पड़ा। केस का हाल यह रहा कि जिला अदालत से थोड़ी भी राहत नहीं मिल पाई। इसके बाद अब कारोबारी ने दिल्ली के एक अन्य वकील को पैरवी के लिए रखा है, जो संभवत: अगली पेशी में नजर आ सकते हैं।

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