अभिषेक सिंह का राजनीतिक कैरियर लडख़ड़ा रहा है। किसी पद में न होने के बावजूद अपने पिता के दबदबे के चलते जिस अंदाज में राजनांदगांव और कवर्धा के पार्टी संगठन में मन माफिक नियुक्तियां कराई, उससे पार्टी के स्थानीय नेता के आंखों की किरकिरी बन गए हैं।
नाराज नेताओं की नजर उस अदालती सुनवाई पर टिकी हुई है, जिसमें उन पर कथित तौर पर दो पेन कार्ड बनवाने और फिर तीन शैल कंपनियों के जरिए करोड़ों का काला-पीला करने का आरोप है। सारे दस्तावेज अदालत में जमा हो गए हैं। मगर आश्चर्यजनक तरीके से कांग्रेस नेताओं ने खामोशी ओढ़ ली है। मगर अभिषेक से नाराज नेताओं को आम आदमी पार्टी से बड़ी उम्मीदें हैं। जो कि समय आने पर अभिषेक का काला चिट्ठा खोल सकती है। अब अभिषेक चुनाव लड़े या न लड़े, वो विधानसभा चुनाव में एक मुद्दा जरूर होंगे।
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एस पी की डिमांड
तेज गर्मी के बीच वनों में काफी काम चल रहा है। तेंदूपत्ता का संग्रहण हो रहा है। लघु वनोपज की खरीदी हो रही है। कुल मिलाकर वनवासी-कारोबारी व्यस्त हैं। इन सबके बीच दो जिलों के एसपी ने ऐसी डिमांड कर दी है, जिसकी कारोबारियों के बीच काफी चर्चा हो रही है। अभी तक तो बात कारोबारियों तक ही सीमित है, लेकिन देर सबेर ये सारी बातें दाऊजी तक पहुंच जाएंगी। क्योंकि कुछ तो उनके आस-पास के लोगों के काफी करीबी हैं। बात सच निकली, तो दो विकेट गिरना तय है।
मंत्री के रिश्तेदार की शिकायत
निर्माण सामाग्रियों के दामों में बेतहाशा वृद्बि व प्रतिस्पर्धा के चलते बिलों रेट में ठेका लेने वाले नेतानुमा ठेकेदार ज्यादा परेशान हैं। इन नेताओं ने ठेका तो हथिया लिया है पर काम नहीं कर पा रहे हैं, इससे सरकार की छवि भी खराब हो रही है और ठेकेदारों का सरकार पर दबाव बना हुआ है। कई सौ करोड़ का ठेका लेने वाले एक मंत्री के रिश्तेदार ने कई बड़े-बड़े महत्वपूर्ण योजनाओं का ठेका तो ले लिया है पर काम नहीं कर रहे हैं। साहसकर कुछ लोगों ने मुख्यमंत्री तक शिकायत की है तो कुछ काम चालू किये हैं। इससे अधिकारी ज्यादा परेशान है। उनकी ऊपरी कमाई का मैनेजमेंट गड़बड़ा गया है।
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कवासी पर कयास….
उद्योग एवं आबकारी मंत्री कवासी लखमा के मंत्री बनने के बाद कुछ लोगों का आंकलन था … थोड़े दिनों के बाद बाहर हो जायेंगे ! परंतु सियासत की गहरी समझ रखने वाले कवासी का कद दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। लगभग पूरे बस्तर संभाग का प्रभारी मंत्री लखमा को बस्तर के अंदरूनी राजनीति समीकरणों को ठीक करने की जिम्मेदारी भी मिल सकती है। मंत्री बंगलों व आफिसों की काना फूसी से दूर उद्योग व आबकारी जैसे महत्वपूर्ण विभाग को कम पढ़े लिखे कवासी सफलता पूर्ण चलाने में सफल हुए तो पिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पीठ थपथपाते हुए उनके पूरे टीम की सराहना कर हौसला बढ़ा दिया।
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कर्मचारियों ने मोर्चा खोला…
राज्य सरकार ने पुरानी पेंशन योजना बहाली व 5 दिनों का दफ्तर करने का निर्णय लेकर यह समझ लिया था कि सरकारी कर्मचारी व अधिकारी चुनाव तक काबू में रहेंगे! पेंशन योजना की राशि को लेकर केन्द्र व राज्य सरकार की टकराहट बढ़ती जा रही है। कर्मचारियों का जमा पैसा अभी मिलना मुश्किल है। सरकारी कर्मचारियों की मिटिंग में आंकड़ों के साथ रणनीति व जबरदस्त आंदोलन पर कर्मचारी नेताओं के बीच तीखी बहस हुई। बड़े अधिकारियों ने किस तरह सरकार के प्रमुख लोगों के साथ मिलकर सुविधा व वेतन बढ़ाया है इसका आंकड़ा भरी बैठक में बताया गया। सरकार के खिलाफ सोशल मिडिया के जरिये मोर्चा खोलने की तैयारी की जा रही है।
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