नीतीश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका, नगर निकायों के प्रशासनिक अधिकार में हस्तक्षेप पर रोक बरकरार

पटना। सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय निकायों के दैनिक कार्यों में राज्य सरकार (Bihar Government) के हस्तक्षेप नहीं करने के संबंध में पटना हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध राज्य सरकार की अपील पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।यह मामला डॉ. आशीष कुमार सिन्हा बनाम बिहार सरकार से जुड़ा है, जिसमें पटना हाई कोर्ट की खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि कैडर की स्वायत्तता किसी भी संगठन की स्वायत्तता के लिए अनिवार्य है और राज्य सरकार को नगर निकायों के प्रशासनिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
तुषार मेहता ने की बिहार सरकार की पैरवी
सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की। डॉ. आशीष की ओर से वरीय अधिवक्ता दामा शेषाद्रि नायडू, अधिवक्ता नितीश रंजन (एओआर) और अधिवक्ता मयूरी ने पक्ष रखा।
राज्य सरकार ने दलील दी कि नगर निकायों में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की भारी संख्या में रिक्तियां हैं, जिससे उनके कामकाज पर असर पड़ रहा है। सरकार ने हाई कोर्ट के निर्णय पर स्थगनादेश देने की मांग की थी।
‘राज्य सरकार केवल नियुक्तियों तक सीमित नहीं रहना चाहती…’
डॉ. आशीष की ओर से दाखिल हलफनामे में यह बताया गया कि राज्य सरकार केवल नियुक्तियों तक सीमित नहीं रहना चाहती, बल्कि वह नगर निकायों के कर्मचारियों के तबादले, पदस्थापन और अनुशासनात्मक कार्रवाई का अधिकार भी अपने हाथ में लेना चाहती है। यह संविधान और संबंधित अधिनियम की भावना के विरुद्ध है।
पटना HC के अंतिरम निर्णय पर रोक लगाने से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च, 2025 को दिए गए आदेश में राज्य सरकार की याचिका को निरस्त कर दिया और हाई कोर्ट के निर्णय पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया ।
न्यायालय को यह भी बताया गया कि पटना नगर निगम के उप महापौर के लिपिक का स्थानांतरण कमिश्नर द्वारा कर दिया गया, जो इस बात का संकेत है कि अगर निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधीनस्थ कर्मचारी उनके प्रशासनिक नियंत्रण में नहीं होंगे, तो वे निगम के कार्यों को प्रभावी ढंग से कैसे संचालित कर पाएंगे?