संपादक :- दीपक तिवारी(कवर्धा)
कवर्धा। नगर पालिका कवर्धा एक बार फिर भ्रष्टाचार की कालिख से घिर गया है। जनप्रतिनिधियों और पार्षदों की निगरानी में चल रहा पूरा सिस्टम अब खुलेआम दलाली और कमीशनखोरी पर उतारू दिखाई दे रहा है। हालात ऐसे कि मंत्री के करीबियों तक को टेंडर फॉर्म देने से पहले 18,000 रुपये की मांग की गई। सूत्रों के मुताबिक साफ कह दिया गया— “पहले 18 हजार रखो, तभी फॉर्म मिलेगा।”
सिर्फ यहीं नहीं, फॉर्म लेने वाले ठेकेदारों को 10 दफ्तरों और बाबुओं के बीच ऐसे घुमाया गया जैसे कोई अपराध जांच में आरोपी घूमता है। नगर पालिका की भाषा साफ–साफ है— “बिना कमीशन, किसी को टेंडर नहीं।”
4 करोड़ का टेंडर – 20 लाख की एडवांस दलाली!
नगर पालिका में जारी 4 करोड़ के टेंडर में 20 लाख रुपये की कमीशन की मांग ने पूरे सिस्टम को शर्मसार कर दिया है। शहर के ठेकेदारों का आरोप है कि नगर पालिका में रकम दिखती है, लेकिन विकास नहीं। कागज़ों में लाखों-करोड़ों खर्च, लेकिन मैदान में ना सड़क ठीक, ना नाली, ना सफाई।
नगर पालिका बना सिर्फ ‘गार्डन पालिका’
शहर में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि यहां सफाई, सड़क, नाली, जल निकासी सब गौण, लेकिन गार्डन, सौंदर्यीकरण और चमचमाती झाड़ियाँ ही प्राथमिकता बन गई हैं।
लोगों का तंज— “नगर पालिका नहीं, गार्डन पालिका है!”
सफाई ठप, कचरा ढेर, मगर बिल पास फटाफट
शहर में हर चौक–चौराहे पर कचरे के ढेर, नालियां बजबजाती, मच्छरों का आतंक, और डेंगू का खतरा, लेकिन बिल पास करने में नगर पालिका की फुर्ती देखते ही बनती है।
जनता सवाल कर रही है— “जब पैसा है तो विकास कहां है?”
कलेक्टर–एसडीएम भी मौन!
शिकायतें जांच के लिए पहुंचती हैं, लेकिन फाइलों का अंबार और कार्रवाई शून्य।
शहर के व्यापारियों और ठेकेदारों का आरोप है कि नगर पालिका में बैठे दलालों और ठेकेदारों की लॉबी इतने मजबूत हैं कि प्रशासन भी कदम पीछे खींच लेता है।
नतीजा…
- नगर पालिका कवर्धा आज विकास का केंद्र नहीं, कमीशनखोरी का एपिसेंटर बन गया है।
- रोज़ाना के काम से लेकर करोड़ों के टेंडर तक बिना चढ़ावा सब ‘अटक’ जाता है।
- जनता का सवाल बिल्कुल सीधा है नगर के बजट में करोड़ों का पैसा कहां जा रहा है?
- क्यों विकास नहीं, सिर्फ भ्रष्टाचार दिखाई देता है?
- क्यों मंत्री तक के आदमी को फॉर्म के लिए कमीशन देना पड़ता है?
- कवर्धा अब साफ-सुथरे प्रशासन की मांग कर रहा है…
- “नगर पालिका में सफाई सिर्फ शहर की नहीं, सिस्टम की भी
