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जानिए क्या है मुरिया दरबार की रस्म, CM की इसमें क्या हैं भूमिका

रायपुर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा समाप्ति की ओर है. बस्तर दशहरे की मुरिया दरबार की रस्म आज पूरी की जाएगी. जिसमे CM भूपेश बघेल भी शामिल हो रहे हैं. मुरिया दरबार में सीएम बस्तर और वहां के लोगों की समस्याएं सुनेंगे और उनका निदान करेंगे. दो दिनों के बस्तर दौरे के दौरान सीएम भूपेश बघेल बस्तर में करोड़ों की योजनाओं का भी लोकार्पण करेंगे.क्या

होता है मुरिया दरबार ?

मुरिया दरबार की रस्म 700 साल पुरानी है. रियासत काल में बस्तर दशहरे (Bastar Dussehra) के समापन के अवसर पर मुरिया दरबार (Muriya Darbar ) का आयोजन राजमहल में ही होता था. इसमें गांव गांव से आए मांझी, चालकी आदि राजा के समक्ष अपनी समस्याओं को रखा करते थे. राजा उन समस्याओं का निदान किया करते थे.

वर्तमान समय में भी मुरिया दरबार की यह परंपरा कायम है. बदलाव इतना है की यह कार्यक्रम अब लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप होता है. जिसमें शासन-प्रशासन के नुमाइंदे मौजूद होते हैं. ग्रामीण उन्हें अपनी समस्याएं बताते हैं और उनका निदान करने की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन पर होती है. परम्परागत रूप से राजपरिवार के सदस्य भी यहां मौजूद होते हैं. पर्व के अंत में संपन्न होने वाला मुरिया दरबार इसे लोकतांत्रिक पर्व के तौर पर स्थापित करता है. पर्व के सुचारु संचालन के लिए दशहरा समिति गठित की जाती है, जिसके माध्यम से बस्तर के समस्त देवी-देवताओं, चालकी, मांझी, सरपंच, कोटवार, पुजारी समेत ग्रामीणों को दशहरा में सम्मिलित होने का आमंत्रण दिया जाता है.

इससे पहले शनिवार को बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) की प्रसिद्ध रस्म रथ परिक्रमा का देर रात समापन हुआ. रथ परिक्रमा की आखिरी रस्म बाहर रैनी के तहत माड़िया जाति के ग्रामीणों की ओर से परंपरा अनुसार 8 पहियों वाले रथ को चुराकर कुम्हड़ाकोट ले जाया गया. जिसके बाद राज परिवार की तरफ से रूठे ग्रामीणों को मनाकर और उनके साथ नवाखानी ‘खीर’ खाकर वापस राज महल परिसर में लाया गया.इस बार इस रस्म में महामहिम राज्यपाल अनुसुइया उइके भी शामिल हुई थी. उन्होंने बस्तर राजकुमार और आदिवासियों के साथ नवाखानी खीर खाकर बस्तरवासियों को पर्व की बधाई दी.

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