JIHAD MEANING : Dispute over Jihad, Madani vs Arif Mohammad Khan …
नई दिल्ली। जिहाद शब्द एक बार फिर राष्ट्रीय बहस के केंद्र में है। मुस्लिम समाज के दो प्रमुख चेहरे जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी और बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान इसके अर्थ और उपयोग को लेकर आमने-सामने आ गए हैं। दोनों ही जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने को जिहाद बताते हैं, लेकिन परिभाषा और उसकी शिक्षा को लेकर उन दोनों में गहरा मतभेद दिख रहा है।
मदनी बोले –
भोपाल में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के कार्यक्रम में मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि इस्लाम विरोधियों ने जिहाद जैसे पवित्र विचार को हिंसा और गलत अर्थों से जोड़ दिया है। उनका कहना है कि जिहाद का प्रयोग जंग के लिए भी सिर्फ जुल्म को खत्म करने के लिए हुआ है। इसलिए “जब-जब जुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा।”
आरिफ मोहम्मद खान का जवाब –
आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि जुल्म के खिलाफ आवाज उठाना निश्चित रूप से जिहाद है, लेकिन देवबंद में पढ़ाई जाने वाली कुछ पुस्तकों में जिहाद की परिभाषा गलत तरीके से बताई जा रही है। उन्होंने कहा कि “कुरान जबरन धर्म परिवर्तन की बात नहीं करता। जिहाद का मतलब इंसानियत की रक्षा है, न कि किसी को इस्लाम न मानने पर लड़ाई करना।”
जिहाद का मूल अर्थ –
अरबी भाषा में जिहाद का अर्थ है ‘संघर्ष करना’। इस्लामी परंपराओं में जिहाद के चार रूप बताए गए—दिल से, जबान से, हाथ से और तलवार से। दिल से जिहाद अपने भीतर की बुराइयों से लड़ने का संघर्ष है, जबकि जुबानी जिहाद सच कहना है। हाथ से जिहाद में शारीरिक प्रयास शामिल है, लेकिन इसमें हथियार का उपयोग नहीं होता। तलवार वाला जिहाद अंतिम चरण और अत्यंत सीमित परिस्थितियों के लिए माना गया है।
इस्लामी स्कॉलर्स का मत –
स्कॉलर मुफ्ती ओसामा नदवी कहते हैं कि जिहाद को केवल युद्ध से जोड़ना गलत है। युद्ध के लिए अरबी में ‘गजवा’ या ‘मगाजी’ शब्द हैं। उनका कहना है कि आधुनिक समय में कट्टरपंथियों ने हिंसा को जिहाद के रूप में पेश कर दिया, जबकि कुरान और हदीस दोनों ही इस व्याख्या को खारिज करते हैं।
जिहाद अल-अकबर और जिहाद अल-असगर –
कुरान के अनुसार जिहाद अल-अकबर सबसे बड़ा जिहाद है, अपने अंदर की बुराइयों से लड़ना। जिहाद अल-असगर छोटा जिहाद है, जिसमें अन्याय रोकने का प्रयास और समाज में अच्छाई की रक्षा शामिल है। किताली जिहाद (सशस्त्र संघर्ष) को पैगम्बर मोहम्मद ने केवल आत्मरक्षा के लिए ही मान्यता दी है, वह भी अंतिम उपाय के रूप में।
क्यों बढ़ रही है जिहाद पर गलतफहमी? –
इतिहास के कई कालखण्डों में जिहाद को सशस्त्र युद्ध के रूप में परिभाषित किया गया। आज दुनिया में कट्टरपंथी समूह उसी की आड़ में हिंसा को बढ़ावा देते हैं। यही वजह है कि जिहाद की मूल, आध्यात्मिक अवधारणा कम और उसका युद्ध वाला रूप ज्यादा चर्चा में रहता है।
मौलाना मदनी और आरिफ मोहम्मद खान दोनों इस बात पर सहमत हैं कि जिहाद का अर्थ अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना है। विवाद असल में इस बात पर है कि जिहाद की शिक्षा बच्चों और समाज को कैसे दी जा रही है और यहीं से यह मुद्दा फिर सुर्खियों में आ गया है।
