MODI TRUMP FTA TALKS : ट्रंप का यू-टर्न! अब भारत से दोस्ती, मोदी संग बड़ा समझौता करेंगे तय?

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MODI TRUMP FTA TALKS : Trump’s U-turn! Now friendship with India, will he finalise a big deal with Modi?

वॉशिंगटन/नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच व्यापक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत एक बार फिर शुरू हो गई है। यह वार्ता उस समय हो रही है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत पर 50% तक टैरिफ और रूसी तेल खरीदने पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाया है। अब ट्रंप इस समझौते को अपने दूसरे कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में बदलना चाहते हैं।

ट्रंप का टैरिफ वार

ट्रंप ने व्यापार को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना जारी रखा है। उन्होंने पहले कनाडा और मेक्सिको, फिर चीन पर टैरिफ लगाए। चीन के पलटवार से झुकने के बाद अब भारत पर उनका फोकस बढ़ा है। हाल ही में ट्रंप ने सोशल मीडिया पोस्ट में पीएम मोदी को “बहुत अच्छे दोस्त” बताते हुए भरोसा जताया कि भारत-अमेरिका बातचीत एक सफल नतीजे तक जरूर पहुंचेगी।

मोदी का सकारात्मक जवाब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप के संदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भारत और अमेरिका स्वाभाविक साझेदार हैं और यह बातचीत दोनों देशों की साझेदारी की असीम संभावनाओं को उजागर करेगी।

“अर्ली हार्वेस्ट” या व्यापक समझौता?

भारत “अर्ली हार्वेस्ट” मॉडल (जैसा ऑस्ट्रेलिया के साथ किया गया) पर विचार कर रहा है—जहां पहले सीमित दायरे का समझौता हो और बाद में बड़ा FTA किया जाए। लेकिन अमेरिका इस विकल्प से सहमत नहीं है और चाहता है कि एक ही बार में बड़ा समझौता हो।

यूरोप पर दबाव और रणनीति

अमेरिका इस समय जी-7 और यूरोपीय संघ देशों पर भी दबाव डाल रहा है कि वे भारत और चीन पर रूसी तेल खरीद को लेकर अतिरिक्त टैरिफ लगाएं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-अमेरिका वार्ता को अंतिम रूप देने में अभी महीनों का समय लग सकता है।

किन मुद्दों पर फंसेगी बातचीत?

सबसे बड़ी अड़चन कृषि और डेयरी सेक्टर मानी जा रही है। भारत अपने किसानों के हितों को देखते हुए अमेरिकी उत्पादों को मार्केट एक्सेस देने के लिए तैयार नहीं है। अगर अमेरिकी उत्पाद भारतीय बाजार में घुसते हैं तो किसानों को सीधा नुकसान होगा।

2026 की राजनीति और ट्रंप की जल्दबाजी

विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप इस समझौते को 2025 से पहले पूरा करना चाहते हैं, ताकि 2026 के अमेरिकी मिड-टर्म चुनावों में इसे अपनी उपलब्धि के रूप में पेश कर सकें। अगर बातचीत अटक गई तो इसका राजनीतिक नुकसान ट्रंप को उठाना पड़ सकता है।

 

 

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