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छत्तीसगढ़ में 25 हजार आदिवासी बच्चो और महिलाओ की मौत का मामला गरमाया

छत्तीसगढ़ जनजातियों से भरा प्रदेश है. राज्य में 78 लाख से अधिक आदिवासी रहते हैं. इसमें से 7 पीवीटीजी में आते हैं. जिनके संरक्षण का जिम्मा केंद्र और राज्य सरकार द्वारा उठाया जाता है. लेकिन राज्य सभा में केंद्रीय राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री द्वारा जारी एक आंकड़े ने राज्य में बवाल मचा दिया है. जिसके अनुसार छत्तीसगढ़ में बीते 3 वर्ष में 25 हजार 164 आदिवासी बच्चों की मौत और 955 आदिवासी गर्भवती महिलाओं की मौत हुई है.

राज्य सभा में उठा सवाल

दरअसल आदिवासी महिलाओं, नवजातों, शिशुओं और बच्चों की मौत का यह मामला 8 फरवरी को राज्य सभा में उठा था. बीजेपी के आदिवासी नेता और छत्तीसगढ़ राज्य सभा सांसद रामविचार नेताम ने सवाल किया था. जिसमें छत्तीसगढ़ की जनजातीय महिलाओं और बच्चों की कुपोषण और अन्य बीमारियों के कारण हुई मृत्यु के अनेक मामलों की जानकारी मांगी गई थी. इस सवाल के जबाव में बताया गया कि छत्तीसगढ़ में बीते 3 साल में आदिवासी महिलाओं और बच्चों की मृत्यु दर में वृद्धि हुई है. आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य और आंशिक रूप से आदिवासी बाहुल्य जिलों में 25 हजार 164 बच्चों की मौत हुई है. वहीं 955 गर्भवती महिलाओं की भी मौत हुई है.

जिलेवार आंकड़ों के मुताबिक साल 2020-21 में शून्य से 28 दिन तक के नवजातों की मौत सर्वाधिक सरगुजा में 1085 और बस्तर में 752 हुई. मौत के पीछे का कारण सेपसिस, एसफिक्सिया और अन्य कारण बताये गए. वहीं 29 से 12 महीने तक के शिशुओं की मौत सर्वाधिक सूरजपुर में 361 और सरगुजा में 354 हुई. मौत के पीछे का कारण निमोनिया, बुखार, खसरा और अन्य कारण बताये गए. जबकि 1 से 5 वर्ष तक के बच्चों की मौत सर्वाधिक सरगुजा में 168 और बस्तर में 120 हुई. मौत के पीछे कारण निमोनिया, बुखार, खसरा और अन्य बताए गए. इसी तरह साल 2020-21 में गर्भवती महिलाओं की मौत सर्वाधिक बस्तर और बलरामपुर में हुई. यहां 27-27 मौतें हुई. मौत के पीछे का कारण ज्यादातर अन्य ही रहे. कुछ एक मौत प्रसव में रुकावट और हेमरेज के कारण भी हुई.

बीजेपी ने राज्य सरकार पर साधा निशाना

इन आंकड़ों को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि प्रदेश में छोटी बामारियों का भी इलाज नहीं होने के कारण राष्ट्रपति के द्वारा संरक्षित दत्तक पुत्रों की मौत होने पर इस सरकार को डूब कर मर जाना चाहिए. ये सरकार आदिवासियों के बारे में बड़ी-बड़ी बात करती है. सरकार जवाब दे कि 25 हजार बच्चों की मौत कैसे हुई, प्रिमीटिव ट्राइबल बच्चों की मौत कैसे हुई. इस घटनाक्रम के लिए दोषी कौन हैं. उन पर क्या कार्रवाई की गई है.

कैबिनेट मंत्री ने आंकड़े की विश्वसनीयता पर उठाया

सवाल इधर, कैबिनेट मंत्री रविंद्र चौबे ने आंकड़े की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है. मंत्री रविंद्र चौबे ने मीडिया से बातचीत में बताया कि बहुत ज्यादा उस आंकड़े पर विश्वास नहीं किया जा सकता. छत्तीसगढ़ की वर्तमान हालात जो प्रश्न में उत्तर आया है उससे काफी कुछ बदल चुका है. मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान जब से शुरू हुआ है तबसे कुपोषण से लड़ाई हमारी प्राथमिकता है. हम उससे निश्चित रूप से निजात पा रहे है.

 

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