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तिरछी नजर 👀 : छापे का खौफ… ✒️✒️

छत्तीसगढ़ में लगातार ईडी के छापों के बाद प्रदेश के अधिकारियों व कर्मचारियों और उद्योगपतियों में खौफ तो बन गया है। अब ईडी को समंस देकर बुलाने की जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती। एक फोन से ही अधिकारी या उद्योगपति उल्टे पांव दौड़ आते हैं और चुपचाप बयान देकर वापस लौट जाते हैं। किसी को पता नहीं चलता और हो-हल्ला व हंगामा भी नहीं हो रहा है। दो विभागों में तो कामकाज ठप्प है। मंत्रालय में पदस्थ अधिकारियों से लेकर जिला स्तर के लोग भी अब ईडी को जांच पड़ताल में मदद करने लगे हैं। आगे चुनाव के करीब आते-आते कागज के ज्यादा दौडऩे की संभावना है।

थप्पड़ की गूंज ..

उत्तरप्रदेश व झारखंड से लगे सरगुजा का मौसम तो वैसे खुशनुमा रहता है पर नेताओं के खून में हर समय गर्मी रहती है। बस्तर और अन्य क्षेत्र के आदिवासी नेताओं को सरल, सौम्य माना जाता है लेकिन सरगुजा के आदिवासी नेता जरा हटके हैं। रामविचार नेताम के मंत्री रहते एसडीएम की सरेआम पिटाई की गूंज अब तक राजनीतिक गलियारे में सुनाई देती है। केन्द्रीय मंत्री व भाजपा सांसद रेणुका सिंह भी नाराज लोगों पर बरसने में देर नहीं करती। बलरामपुर के विधायक बृहस्पति सिंह के थप्पड़ कांड से इस समय बलरामपुर जिला उद्वलित है। बृहस्पति सिंह अपनी तेज तर्रार छवि के कारण इस समय अपनी ही पार्टी और विधानसभा क्षेत्र में घिरते जा रहें है।

बिलासपुर संभाग में ऊहा-पोह

गत विधानसभा चुनाव में भाजपा को बिलासपुर में अच्छी सफलता मिली थी। इस बार भाजपा के सारे दिग्गज नेता अरुण साव, धरम कौशिक, नारायण चंदेल , अमर अग्रवाल बिलासपुर से हैं फिर भी भाजपा को बिलासपुर संभाग की चिंता सताने लगी है। लोरमी विधानसभा सीट पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और आप के सांसद व संगठन महामंत्री संदीप पाठक की सक्रियता के साथ ही धरमजीत सिंह के पलायन की चर्चा ज्यादा है। ऊहा-पोह में फंसे पार्टी कार्यकर्ताओं की जोगी कांग्रेस के कदमों पर निगाहें टिकी हैं । संघ परिवार की सक्रियता से भाजपाई उम्मीद से हैं।

जेएनयू की राह में केटीयू…..

कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि के विद्यार्थी पत्रकारिता सीख पा रहे हैं या नहीं, पता नहीं, लेकिन राजनीति में जरूर पारंगत हो रहे हैं। जब से इस विवि की स्थापना हुई है तब से यह राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। विद्यार्थियों से लेकर कर्मचारी और सहायक प्राध्यापकों से लेकर कुलपति और कार्यपरिषद के सदस्यों तक सब एक दूसरे के खिलाफ ठीक वैसा ही मोर्चा खोले दिखते हैं,जैसे राजनीतिक दल एक-दूसरे के खिलाफ खोलते हैं। आए दिन विवि को लेकर कोई न कोई विवाद पढऩे और सुनने को मिलता है। ऐसे में लोग सवाल पूछते हैं कि वहां पढ़ाई भी होती है या सब एक-दूसरे के खिलाफ गणित बाजी में ही लगे रहते हैं। पहले रविवि की राजनीति चर्चा में रहती थी, लेकिन अब केटीयू ने रेंकिग में उसे काफी पीछे छोड़ दिया है।

प्रतिपक्ष का पचड़ा

छत्तीसगढ़ में नेता प्रतिपक्ष पद का मतलब खतरे की घंटी है। अबतक जितने भी नेता प्रतिपक्ष बने हैं, उनके चुनाव हारने से लेकर मुख्यमंत्री न बन पाने और राजनीति के हाशिए में जाने तक के कई किस्से प्रचलित हैं। ताजा खुलासा यह है कि अफसर के साथ व्हाट्सएप चैट को एक केंद्रीय एजेंसी ने जांच के दौरान पकड़ लिया। उसके बाद नेताजी को अपना पद गंवाना पड़ा। उनकी जगह बनाए गए दूसरे नेता अपने बेटे की करतूत के कारण मुश्किल में फंस गए हैं। मानना पड़ेगा कि पद अभिशप्त है।

सबसे बड़ा रुपैया

ईडी ने कांग्रेस के इस आरोप को गलत साबित कर दिया है कि छापे सिर्फ विपक्षी नेताओं पर पड़ रहे हैं। हाल ही भाजपा के दिग्गज नेता के बेटे पर ईडी ने शिकंजा कस दिया। उन्हें ईडी दफ्तर भी तलब किया गया और जमकर पूछताछ भी हुई। असल में मामला धन-धरती से जुड़ा हुआ है। नेता-पुत्र कांग्रेसियों के दमाद हैं और स्वाभाविक तौर पर व्यावसायिक सहभागिता भी है। जब सबसे बड़ा रुपैया है तो राजनीतिक मतभेदों की दीवारें कितने दिनों तक टिकी रहेंगी।

केन्द्रीय मंत्री के तेवर

प्रदेश के जिन नामी उद्योगपतियों और कारोबारियों के यहां ईडी के छापे डले हैं, उन्हें केन्द्र के ताकतवर लोगों से कोई मदद नहीं मिल पा रही । ऐसे ही एक बड़े उद्योगपति को पड़ोसी राज्य के रहवासी केन्द्रीय मंत्री से मदद की दरकार थी । उद्योगपति समय- समय पर मंत्रीजी की सेवा में तत्पर रहे हैं और वो भी मूलतः पड़ोसी राज्य के रहने वाले हैं। ऐसे में ईडी के छापे की कार्रवाई पूरी होने के बाद फूर्सत में केन्द्रीय मंत्री को फोन लगाया और अपनी व्यथा सुनाने लगे लेकिन जैसे ही अपनी बात पूरी कर पाते, मंत्रीजी ने आवाज ठीक से सुनाई नहीं दे रहा है, कहकर फोन रख दिया। मंत्री के बदले रूख से उद्योगपति हैरान हैं। कहावत है कि बुरा समय आता है, तो साया भी साथ छोड़ देता है।

सीएम सर कौन?

नान घोटाले के आरोप- प्रत्यारोप में रमन सिंह अक्सर उलझ जाते हैं । सीएम भूपेश बघेल ने जब नान डायरी में उल्लेखित सीएम सर और सीएम मैडम को लेकर सवाल पूछा, तो रमन सिंह अगले दिन मीडिया से कह गए कि सीएम सर का मतलब चिंतामणि है।
रमन सिंह ने इस सिलसिले में ईओडब्लयू की जांच रिपोर्ट का हवाला दिया, जो कि उनके कार्यकाल में तैयार हुई थी। मगर चिंतामणि कह चुके हैं कि सीएम सर का मतलब चेयरमैन सर भी होता है। इसके अलावा 2011 से 15 तक की जांच रिपोर्ट तैयार हुआ है, जिसकी जांच रमन सरकार ने नहीं करवाई थी, उसमें भी इसी तरह के नामों से लेन-देन की चर्चा है। यह रिपोर्ट बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई है। ऐसे में सीएम सर कौन है, इसका जवाब जल्द मिलना मुश्किल है।

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