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दान-धर्म सामर्थ्य के अनुसार करें, दुनिया को दिखाकर सहायता न करें: विराग मुनि

रायपुर। दान-धर्म सामर्थ्य अनुसार करें। जहां तक साधर्मिक भक्ति की बात है तो यह गुप्त ही होनी चाहिए। समाज में किसी जरूरतमंद की मदद करें तो दूसरों को इस बारे में बताने की जरूरत नहीं है। एमजी रोड स्थित श्री जैन दादाबाड़ी में विनय कुशल मुनि म.सा. के सानिध्य में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में विराग मुनि ने ये बातें कही।

उन्होंने कहा, दिखावा मात्र के लिए दूसरों से ज्यादा बोली लगाकर बाद में पछताने का क्या फायदा? धर्म के काम में बोली भिखारी की तरह नहीं, दिल खोलकर लगानी चाहिए। धन जाने के पछतावे की जगह पुण्य कमाने की खुशी होनी चाहिए। धर्म के काम में पैसा लगाने आएं तो सोच-समझकर ही आएं। मन में भाव होने चाहिए कि मैं अच्छे काम के लिए पैसे दे रहा हूं। बोली का पैसा समय पर नहीं देने से भी दोष लगता है। हमें तो यह सोचकर ही दान-धर्म में आगे आना चाहिए कि कितने सौभाग्य से जिन शासन की छांव मिली है। व्यक्ति मैं, मेरा की भावना से नहीं उबर पा रहा है, तो इसके पीछे वजह यही है कि अब तक उनके भीतर जिन शासन के प्रति अहोभाव ही जागृत नहीं हुए हैं। ध्यान रखें कि आज अगर आपका अच्छा समय चल रहा है तो यह पुण्य का प्रभाव है। जब पुण्य खत्म होगा और पापोदय होगा, तब क्या करेंगे? मानव जीवन को सफल बनाते हुए आत्मा की गति सुधारनी है तो भगवान महावीर के बताए पंचशील सिद्धांतों को अपनाते हुए नेकी के रास्ते पर चलें।

छोड़ना हो तो लोग धर्म छोड़ना
पसंद करेंगे, लेकिन पाप नहीं

मुनिश्री ने कहा, इस दुनिया में अगर छोड़ने की बात आए तो लोग सबसे पहले धर्म छोडऩा पसंद करेंगे। अपनी बुराई कोई नहीं छोड़ना चाहता। किसी काम को आप किस भाव से कर रहे हैं, ये भी बहुत मायने रखता है। किसी को बुरा कहने या उसका बुरा करके ही हम पाप न5हीं बांधते, किसी के प्रति बुरा सोचकर भी हम पाप कर्मों का बंधन कर लेते हैं।

प्रलोभन देकर धर्म नहीं होता
हिंसा के साथ पुण्य नहीं होता

मुनिश्री ने कहा, धर्म का काम प्रलोभन देकर या दिलवाकर नहीं करवाया जा सकता। हिंसा के साथ कोई पुण्य नहीं कमा सकता। किसी भी काम को करते वक्त या अपनी बात रखते वक्त भी इस बात का ध्यान रखें कि मन में किसी भी तरह से हिंसा के भाव नहीं आने चाहिए। युवा पीढ़ी के धर्म विमुख होने पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा, ज्ञान-वान व्यक्ति ही धर्म-कर्म करते हैं। किसी के प्रति राग-द्वेष नहीं रखते।

तप-त्याग, साधना-आराधना का सिलसिला जारी

आत्मस्पर्शीय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष पारस पारख, महासचिव नरेश बुरड़ और कोषाध्यक्ष अनिल दुग्गड़ ने बताया कि चातुर्मास के अंतर्गत श्री जैन दादाबाड़ी में जप-तप की झड़ी लगी है। बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं छोटी-बड़ी तपस्याओं में हिस्सा ले रहे हैं। बच्चों और युवाओं के लिए भी समय-समय पर शिविर आयोजित किए जा रहे हैं। इसके जरिए उन्हें धर्म और अपनी परंपराओं से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

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