CHHATTISGARH : मुहूर्त पर नहीं भगवान पर भरोसा करिए, तिथियों पर नहीं खुद पर विश्वास रखिए
CHHATTISGARH: Trust in God not on Muhurta, believe in yourself not on dates
रायपुर। ”काम बिगड़ जाए तो लोग ग्रहों को दोष देने लगते हैं। यह ग्रह नहीं, विचारों का दोष है। जरा सोचिए कि तनाव आपके घर में है तो ग्रह इसमें क्या कर सकते हैं। शनि की साढ़े साती के चक्कर में पड़ेंगे तो जीवन के साढ़े सात साल बर्बाद हो जाएंगे। अपने कर्मों और व्यवहार को ठीक करेंगे तो जीवन सात दिन में सुधर सकता है। आमतौर पर होता यह है कि जीवन में कोई परेशानी आए तो हम खुद की गलती देखने के बजाय भाग्य को कोसने लगते हैं।” उपरोक्त बातें राष्ट्रसंत ललितप्रभ सागर ने सोमवार को विवेकानंद नगर में तीन दिवसीय प्रवचन माला की शुरुआत में कही।
इससे पहले समाजजनों ने बैरनबाजार स्थित आशीर्वाद भवन से राष्ट्रसंत ललितप्रभ सागर और डाॅ. मुनि शांतिप्रिय सागर की शाही ठाठ के साथ मंगल प्रवेश यात्रा निकाली, जो विवेकानंद नगर पहुंचकर धर्मसभा में तब्दील हो गई।
उन्होंने कहा- यही हमारे जीवन की पहली और सबसे बड़ी गलती है कि अपने कर्म की जगह ग्रहों को दोष देते हैं। असल में आपको यह समझने की जरूरत है कि सातों दिन भगवान के हैं। कोई ग्रह या नक्षत्र भगवान से बढ़कर नहीं। जीवन आपका है। नजरिया भी आपका है। अब तय भी आप ही को करना है कि जीवन कैसे जीना चाहिए।
मंदिर की दिशा नहीं, मन की दशा सुधारिए /
संतश्री ने कहा कि वास्तुदोष को लेकर भी लोग बहुत ज्यादा परेशान दिखाई पड़ते हैं। दरवाजा कौन सी दिशा में होना चाहिए, घर का मंदिर कौन सी दिशा में हो वगैरह। असल में यह वास्तु नहीं, विचारों का दोष है। उन्होंने बताया कि एक बार एक व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ मेरे पास आया। उसने बताया कि परिवार में बहुत तनाव चल रहा है। क्या करूं गुरुदेव! अभी-अभी बहुत मुश्किल से घर बनाया है। पत्नी कहती है कि घर का वास्तु खराब है। घर बेचकर नया घर खरीदो। मैंने उसे सलाह दी कि कुछ दिन किराए के मकान में रहकर देखो। तीन माह बाद वह आदमी दोबारा मेरे पास आया। मैंने पूछा कि अब सब ठीक है? उसने बताया कि कहां गुरुदेव, आज भी वही स्थिति है। अब आप ही सोचिए कि कड़वाहट यदि रिश्तों में है तो उसमें वास्तु का क्या दोष
संतश्री ने कहा कि मैं चातुर्मास के लिए मंगल प्रवेश करते वक्त या कहीं के लिए विहार करते वक्त मुहूर्त नहीं देखता। मुझे भगवान पर भरोसा है। जब भगवान मेरे साथ हैं तो मुझे फर्क नहीं पड़ता कि कौन मेरे खिलाफ है। आप भी तिथियों पर नहीं, खुद पर विश्वास रखना सीखिए। भगवान संभवनाथ के नाम का पहला शब्द स कहता है सोच। यदि आपकी सोच अच्छी है तो सब अच्छा है। कई बार आप देखेंगे कि सर्वसुविधा संपन्न व्यक्ति भी हताश और निराश नजर आता है। उसके पास दुखी होने की कोई वजह नहीं है फिर भी वह दुखी है क्योंकि उसकी सोच नकारात्मक है। एक बार मैं जयपूर में एक घर गया। वहां एक बहन मेरे पास शहद की शीशी लेकर आई। उस शीशी के अंदर एक कागज था जिस पर कोई मंत्र लिखा था। उस महिला ने बताया कि किसी पंडित ने उसे यह शीशी देकर कहा था कि इसे 27 दिन तक रोज देखना। तुम्हारा पति तुम्हारी मुट्ठी में आ जाएगा। महिला ने बताया कि 27 के 57 दिन हो गए। अभी तक कुछ नहीं हुआ। मैंने उसे कहा कि शहद की शीशी को देखने से कुछ नहीं होगा। अपनी जुबान और व्यवहार को शहद की तरह बनाओ, फिर देखो कि जीवन में कैसी मधुरता आती है। इस बात पर सभी को गंभीरता से विचार करना चाहिए।
आज सुबह 9.30 बजे से धर्मसभा
श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक समाज के अध्यक्ष श्याम सुंदर बैदमुथा एवं चातुर्मास समिति के अध्यक्ष पुखराज मुणोत ने बताया कि राष्ट्रसंत ललितप्रभ सागर और डाॅ. मुनि शांतिप्रिय सागर मंगलवार को सुबह 9 से 10.30 बजे तक प्रवचन के जरिए समाजजनों को जीने की कला सिखाएंगे। तीन दिवसीय प्रवचन माला का समापन बुधवार को होगा। उन्होंने सकल श्रीसंघ से उपस्थित रहने का आग्रह किया है।