चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला प्रारंभ : ज्ञान जब तक भाव में नहीं बदलेगा, हमारे लिए वह सिर्फ जानकारी – मनीष सागरजी

रायपुर। परमात्मा का ज्ञान हमारी जिंदगी बदल सकता है। लाखों-करोड़ों लोगों का जीवन बदल चुका है। हमारा नहीं बदला क्योंकि हमारे भीतर कषाय ज्यादा हैं। अगर हमने ज्ञान लिया भी, तो उसे आत्मसात नहीं कर पाए। याद रखिए कि ज्ञान जब तक भाव में नहीं बदलेगा, वह हमारे लिए जानकारी मात्र है। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में शनिवार को चातुर्मासिक प्रवचन प्रारंभ करते हुए उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागरजी महाराज साहब ने यह बातें कही।
उन्होंने कहा कि ज्ञान के बाद दूसरी जरूरी चीज क्रिया है। क्रिया हमारी जिंदगी का कल्याण कर सकती है। यह सीढ़ी की तरह है। संस्कार, धर्म के जिस स्तर पर हम खड़े हैं, यह उससे ऊपर उठाती है। अगर नीचे गिरो, तो थामने के लिए भी यही क्रियाएं जरूरी हैं। जितने समय तक धार्मिक क्रियाओं में लगे रहेंगे, तब तक न केवल पाप करने से बचेंगे, बल्कि धार्मिक स्तर पर और ऊपर पहुंचेंगे। इसके लिए आपके मन में पहले यह भाव आना जरूरी है कि मनुष्य जीवन मिला ही दुर्गति के लिए है। तीसरी जरूरी चीज साधना है और इसके लिए आपको कहीं हिमालय में जाने की जरूरत नहीं है। साधना का सीधा सा अर्थ है प्रैक्टिस। अभ्यास। कभी-कभी हम माला जपने या मेडिटेशन को साधना मान लेते हैं।
ऐसा नहीं है। ज्ञान और क्रिया के जरिए जो आपने हासिल किया है, उस बारे में लगातार चिंतन-मनन करिए। खुद को फील कराएं कि यही सत्य है। लगातार ऐसा करते हुए आप जब अपने भीतर के कषायों को तोड़ेंगे, वह साधना है। समस्या यह है कि दिनभर में हम दुनियाभर के लोगों से बात कर लेते हैं। केवल खुद से बात करने के लिए समय नहीं है। स्वयं से बात करनी है। स्वयं को समझाना है। स्वयं से स्वयं की अटकलों को भी दूर करना है। धर्म में चौथी जरूरी चीज व्यवहार है। व्यवहार भी ऐसा होना चाहिए जो हमारा कल्याण करे। पतन का कारण न बने। बाहर अच्छा बनने की कोशिश और भीतर ईर्ष्या से भरा होना भी ठीक नहीं है। इन चारों जरूरी बातों को अमल में लाकर इस चातुर्मास को सफल बनाएं।
परमात्मा होते होंगे नहीं, परमात्मा हैं, यह विश्वास ज्ञान से ही आएगा
परमात्मा के तत्व ज्ञान को केवल दिमागी जानकारी तक सीमित न रखें। रोजमर्रा की जिंदगी में उसे प्रयोग में भी लाएं। अभी आपको लग सकता है कि परमात्मा होते होंगे। ज्ञान जब क्रिस्टल क्लियर होगा, तब आपको दृढ़ विश्वास हो जाएगा कि परमात्मा होते ही हैं। छोटी-छोटी बातों में न उलझें। मसलन धर्म के क्षेत्र में इतने इतने आडंबर क्यों होते हैं वगैरह। अगर इन्हीं बातों में उलझे रह जाएंगे तो धर्म के सार तत्व को कभी ग्रहण नहीं कर पाएंगे। आप यह सोचिए कि परमात्मा ने साढ़े 12 वर्षों तक बिना शास्त्रों के कैसे साधना की होगी। उनके मस्तिष्क में क्या विचार चलते होंगे। कर्मों की निर्जरा कैसे होती होगी। इन सभी बातों को हम लॉजिकली सोच सकते हैं।
गोल्डन वर्ड्स आर नेवर रिपीटेड
ज्ञान की बातों को ध्यान से सुनने की सलाह देते हुए युवा मनीषी मनीष सागरजी ने अपने बचपन का एक किस्सा सुनाया। उन्होंने बताया कि जब हम 9वीं-10वीं कक्षा में थे, तब हमारे गुरुजी पढ़ाते हुए कुछ एडिशनल बातें भी बता देते थे। हम उन बातों को सुन या समझ नहीं पाते तो दोबारा उनसे बताने के लिए कहते थे। तब वे एक ही बात कहते कि गोल्डन वर्ड्स आर नेवर रिपीटेड। तुमको सुनना चाहिए। मै दोबारा क्यों बोलूं। इसमें उनका ईगो नहीं था। उनकी दया थी। वे चाहते थे कि हम अनुशासित बनें। एक-एक शब्द की कीमत समझें। आप भी अपने भीतर उस भाव को ले आएं तो जिंदगी आज से बेहतर बन सकती है।
प्रतिदिन स्वाध्याय व धार्मिक प्रशिक्षण 11 से
चातुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार सचिव चंद्रप्रकाश ललवानी व मनोज लोढ़ा ने बताया कि टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में उपाध्याय भगवंत महेंद्र सागरजी म.सा. और उपाध्याय प्रवर मनीष सागरजी म. सा. के संयुक्त प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक होंगे। 11 जुलाई से प्रतिदिन सुबह 5 से 6 बजे तक राई प्रतिक्रमण और 6 से 7 बजे तक धार्मिक क्रियाओं का प्रायोगिक प्रशिक्षण विवेकानंद नगर स्थित श्री ज्ञान वल्लभ उपाश्रय में होगा । फिर टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में सुबह 8 से 9 बजे तक धार्मिक जीवन पर आधारित स्वाध्याय और 9 से 10 बजे तक प्रवचन होंगे। इसके बाद दोबारा श्री ज्ञान वल्लभ उपाश्रय में दोपहर 3 बजे से 4 बजे तक स्वाध्याय और शाम 6.45 से 8 बजे तक देवसी प्रतिक्रमण किया जाएगा।