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CG INDUSTRIAL POLICY : नई औद्योगिक नीति बनी जाल, उलझे उद्योग – छत्तीसगढ़ का ‘गेम चेंजर’ फेल!

CG INDUSTRIAL POLICY : New industrial policy becomes a trap, industries entangled – Chhattisgarh’s ‘game changer’ fails!

रायपुर। छत्तीसगढ़ की नई औद्योगिक नीति 2024-30 को सरकार ने “गेम चेंजर” बताया था, लेकिन ताज़ा अधिसूचना के बाद उद्योग जगत में निराशा की लहर है। भारी प्रचार, बड़े वादे और ग्लोबल निवेश आकर्षण के दावों के बीच यह नीति अब अपने व्यावहारिक पहलुओं को लेकर सवालों के घेरे में है।

कागज़ पर क्रांति, ज़मीन पर जाल

नीति के तहत सरकार ने वादा किया था कि MSME सेवा इकाइयों को उनके स्थायी पूंजी निवेश का 150% तक SGST प्रतिपूर्ति दी जाएगी। यह घोषणा निवेश बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही थी।

लेकिन 25 सितंबर 2025 को जारी अधिसूचना ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अधिसूचना के मुताबिक, प्रतिपूर्ति पाने के लिए इकाई को अलग GST पंजीयन कराना होगा और उस नंबर से केवल राज्य में अंतिम उपभोग (B2C) बिक्री ही करनी होगी।

B2C शर्त ने बढ़ाई मुश्किलें –

यह शर्त व्यवहारिक नहीं मानी जा रही।

इसका मतलब यह हुआ कि –

स्टील फैक्ट्री को अब सरिया सीधे ग्राहकों को बेचना होगा,

सीमेंट कंपनी को 50-60 बोरी सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचानी होगी,

FMCG कंपनियों को दुकानों या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के बजाय घर-घर बिक्री करनी होगी।

उद्योग जगत का कहना है कि यह व्यवस्था सप्लाई चेन को तोड़ने जैसी है, जिससे कोई भी कंपनी व्यावहारिक रूप से लाभ नहीं ले सकेगी।

पुराने वादों की पुनरावृत्ति –

2019-24 की औद्योगिक नीति में भी यही शर्तें थीं, और उस दौरान एक भी उद्योग को SGST प्रतिपूर्ति नहीं मिली। अब वही नीति नए नाम से फिर दोहराई जा रही है – वादे बड़े, लेकिन लाभ शून्य।

प्रचार पर खर्च, राहत में सन्नाटा –

नीति की घोषणा के बाद प्रचार-प्रसार पर जमकर खर्च हुआ। नेताओं और अधिकारियों के “ग्लोबल निवेश आकर्षण” दौरों की खबरें भी आईं, लेकिन ज़मीन पर निवेशकों को राहत नहीं मिली।
उद्योग जगत सवाल उठा रहा है “जब प्रतिपूर्ति का लाभ ही नहीं मिलना, तो ये विदेश यात्राएँ किसलिए?”

भरोसे का संकट –

नीति के वादों और नियमों के बीच इतना फासला है कि उद्योग जगत में भरोसा खत्म होता जा रहा है। उद्योगपति करोड़ों का निवेश करते हैं, लेकिन जब लाभ के नाम पर उन्हें कागज़ी पेचों में उलझा दिया जाता है, तो वे राज्य से दूरी बना लेते हैं। यह स्थिति न केवल निवेश, बल्कि रोजगार सृजन के लिए भी खतरा है।

नीति निर्माण में अनुभव की कमी –

नीति तैयार करने में बड़े कॉर्पोरेट कंसल्टेंट्स और अधिकारियों की भूमिका रही, फिर भी इसकी रूपरेखा व्यावहारिक नहीं बन सकी। विश्लेषकों का कहना है कि “एक ऐसी नीति जो लागू ही न हो सके, वह विकास का साधन नहीं, भ्रम का उपकरण बन जाती है।”

क्या यही है ‘उद्योग प्रोत्साहन’?

नीति का उद्देश्य विकास और विश्वास होना चाहिए, लेकिन छत्तीसगढ़ की नई औद्योगिक नीति को लेकर अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार वास्तव में निवेश लाना चाहती है या सिर्फ सुर्खियाँ बटोरना?

आगे का रास्ता –

अगर छत्तीसगढ़ को सचमुच निवेश और रोजगार में प्रगति चाहिए, तो उसे यह कदम उठाने होंगे। अधिसूचना की शर्तों को व्यावहारिक बनाया जाए, B2B बिक्री को भी पात्र माना जाए। नीति और नियमों में सामंजस्य लाया जाए। प्रचार पर हुए खर्चों की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए। नीति के प्रभाव का स्वतंत्र मूल्यांकन कराया जाए।

वरना, यह नीति भी सिर्फ़ एक और नारा बनकर रह जाएगी “घोषणा बड़ी, लेकिन असर शून्य।

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