BIG DECISION OF SC : पहले पति से तलाक लिए बिना दूसरी शादी करने वाली महिला भी पा सकेगी गुजारा भत्ता
BIG DECISION OF SC: A woman who marries a second time without divorcing her first husband will also be able to get maintenance allowance.
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि कोई महिला अपने पहले पति से कानूनी रूप से तलाक लिए बिना दूसरी शादी करती है और बाद में अलग हो जाती है, तो उसे अपने दूसरे पति से गुजारा भत्ता (Maintenance) लेने का अधिकार होगा।
यह ऐतिहासिक निर्णय जस्टिस बी.वी. नागरथना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सुनाया, जिसने तेलंगाना हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए महिला को भरण-पोषण का हकदार माना।
क्या है मामला? –
एक महिला ने पहले पति से कानूनी रूप से तलाक लिए बिना दूसरी शादी कर ली थी।
शादी के बाद दोनों कुछ समय तक साथ रहे और उनका एक बच्चा भी हुआ, लेकिन बाद में वे अलग हो गए।
महिला ने Cr.P.C. की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता की मांग की।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि दूसरी शादी अमान्य (Void) होने के कारण महिला को भरण-पोषण का अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए महिला के पक्ष में फैसला दिया।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क –
कोर्ट ने कहा कि Cr.P.C. की धारा 125 का उद्देश्य महिलाओं और बच्चों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
यदि दूसरा पति यह जानते हुए शादी करता है कि महिला पहले से विवाहित थी, तो वह भरण-पोषण से मुकर नहीं सकता।
यदि महिला और उसका पहला पति अलग-अलग रह रहे थे और पहले पति से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिल रही थी, तो दूसरा पति गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य रहेगा।
महिलाओं की वित्तीय सुरक्षा और सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया गया।
कोर्ट ने क्या कहा? –
सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि “गुजारा भत्ता कोई अनुकंपा या उपहार नहीं है, बल्कि यह पति का कानूनी और नैतिक दायित्व है।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि दूसरा पति महिला की पहली शादी के बारे में पहले से जानता था, तो वह इस आधार पर जिम्मेदारी से बच नहीं सकता कि पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त नहीं हुई थी।
क्या कहती है Cr.P.C. की धारा 125? –
इस धारा के तहत कोई भी पत्नी, भले ही विवाह कानूनी रूप से वैध हो या न हो, यदि वह अपने पति से अलग रह रही है और उसे आर्थिक सहायता की जरूरत है, तो वह गुजारा भत्ता मांग सकती है।
यदि पति सक्षम होते हुए भी पत्नी को आर्थिक सहायता देने से इनकार करता है, तो कोर्ट उसे भरण-पोषण देने के लिए बाध्य कर सकता है।
पहले भी हो चुके हैं ऐसे फैसले –
मोहम्मद अब्दुल समद बनाम तेलंगाना राज्य: कोर्ट ने कहा कि महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना पति की जिम्मेदारी है।
धर्मेंद्र कुमार बनाम उर्मिला देवी: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भले ही विवाह अमान्य हो, लेकिन पत्नी के भरण-पोषण का अधिकार बना रहेगा।
फैसले के दूरगामी प्रभाव –
इस फैसले से उन महिलाओं को राहत मिलेगी जो कानूनी अड़चनों के कारण गुजारा भत्ता नहीं मांग पाती थीं।
यह महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करेगा।
यदि पति पत्नी की वित्तीय जरूरतों से मुंह मोड़ता है, तो यह कानून उसे जिम्मेदार ठहराएगा।