
गरियाबंद: गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा में एक और किडनी के मरीज की मौत हो गई है। बुधवार को 62 साल के कांशी राम की इलाज के दौरान मौत हो गई। इन 14 सालों के दौरान सरकार बदली, लेकिन हालात नहीं बदले। यहां 7 बार मंत्रियों का दौरा भी हुआ और कई शोध भी हुए, लेकिन लोग किडनी की बीमारी से क्यों पीड़ित हो रहे हैं, इसकी वजह ढूंढने में सिस्टम नाकाम रहा। 2009 के बाद जिसे भी किडनी की बीमारी हुई, वो 2-4 साल से ज्यादा नहीं जी सका। 2015 से लेकर अब तक करीब 30 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, साथ ही 12 करोड़ की नई वॉटर सप्लाई स्कीम को भी मंजूरी मिल चुकी है, जिसकी राशि भी कुल लागत में जुड़ जाएगी।
राज्य सरकार के निर्देश पर संचालक स्वास्थ्य सेवाएं ने वर्ष 2015 से 2018 तक रायपुर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अलावा नागपुर, दिल्ली, बैंगलुरू, विशाखापट्टनम की विभिन्न संस्थाओं से शोध कराया। रिसर्चरों ने सुपेबेडा के विभिन्न स्रोतों से पानी के अलावा, दूध, अनाज, मिट्टी तक के सैंपल लिए गए। इंडियन मेडिकल काउंसिल ऑफ रिपोर्ट जबलपुर की टीम ने भी जांच की। इन्हीं जांच के हवाले से सीएमएचओ एन आर नवरत्न ने कहा कि वहां के जल स्रोतों में कैडमियम, क्रोमियम जैसे हेवी मैटल्स पाए जाने की पुष्टि की गई है। पिछले 4 सालों से वो किडनी के रोग से पीड़ित था। BMO अंजू सोनवानी ने कहा कि सुपेबेड़ा में लगने वाले साप्ताहिक शिविरों में उसका इलाज किया जा रहा था।
मंगलवार को भी CHC की टीम ने घर पहुंचकर कांशी राम की जांच की थी और उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती होने को कहा था, लेकिन एडमिट होने से पहले ही आज उसकी मौत हो गई। BMO अंजू सोनवानी ने बताया कि उसका क्रिएटिनिन लेवल 3.5 था। किडनी की बीमारी के चलते उसे शुगर, खांसी, एनीमिया जैसी गंभीर बीमारी भी हो गई थी। देवभोग के सुपेबेड़ा में 14 साल में किडनी की बीमारी से 102 मरीजों की मौत हो गई है, जिसमें आज बुधवार को हुई कांशी राम की मौत भी शामिल है।