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छत्तीसगढ का एक ऐसा गांव, जहां मछली पकड़ने लगता है मेला, 14 साल बाद फिर शुरू हुई परंपरा

कोंडागांव। जिले के माकड़ी ब्लाक अंतर्गत ग्राम बरकई में वर्षों पुराने मालगुजार के जमाने से चली आ रही अनोखी परंपरा बंधा (तालाब) मतऊर मेला का आयोजन को 14 सालों के बाद इस साल 3 जून शनिवार को बड़े ही धूमधाम के साथ किया गया। जिसमें ग्राम बरकई सहित लगभग 50 से 60 गांव से आए हुए लगभग ढाई हजार से अधिक ग्रामीण शामिल हुए। इस परंपरा में ग्रामीण बड़ी संख्या में एकत्रित हुए और सभी लोगों ने तालाब में मछली पकड़कर इस पुरानी परंपरा को कायम रखा हैं। ग्राम बरकई के ग्राम पटेल जीवन लाल पांडे ने जानकारी देते हुए बताया कि, इस परंपरा में सर्वप्रथम गाजा बाजा के साथ पूजा कर ग्राम प्रमुख मालगुजार रामप्रसाद पांडे को सभी ग्रामीणों द्वारा ससम्मान तालाब स्थल में ले जाया जाता हैं।

मालगुजार के आदेश के बाद पकड़ते हैं मछली

मालगुजार रामप्रसाद के द्वारा विधिवत पूजा करने के बाद सभी लोगों को तालाब में मछली पकड़ने की अनुमति दी जाती हैं, जब तक मालगुजार रामप्रसाद पांडे के द्वारा आदेश नहीं दिया जाता तब तक कोई भी व्यक्ति तालाब में मछली नहीं पकड़ता। लगभग 1 से डेढ़ घंटे तक माता को प्रसन्न करने बाजा बजाया जाता हैं। सभी लोग तालाब में मछली पकड़ने के लिए कई प्रकार के जाली का उपयोग करते हैं। लगभग डेढ़ घंटे तक मछली पकड़ा जाता हैं, जिसके बाद पुनः मालगुजार के आदेश पर मछली पकड़ना बंद कर किया जाता हैं।

50 रूपए में मिला 5-10 किलो मछली

ग्रामीणों का मानना हैं कि, इस पर्व में सीमित समय तक लोगों को तालाब में बड़ी संख्या में छोटी बड़ी मछली मिलती हैं, मालगुजार के मना करने के बाद अगर कोई व्यक्ति तालाब में मछली पकड़ने जाता हैं तो वह मछली नहीं पकड़ पाता। इस वर्ष लगभग 2500 जाल लेकर 50 से 60 गांव के ग्रामीण बड़ी संख्या में एकत्रित हुए थे और सभी लोगों ने अपने अपने जाल से तालाब में मछली पकड़ा जाता हैं। इस डेढ़ घण्टे में एक जाल से कम से कम 4 से 5 किलो और अधिक से अधिक 10 किलो तक मछली पकड़ा गया।

14 साल बाद हुआ आयोजन

यह बंधा मतऊर मेला का आयोजन अंतिम बार 2008 में किया गया था, शासन की विसंगति के कारण तालाब को लीज में दे दिया गया था, जिसके चलते 14 सालों तक यह परंपरा का निर्वहन नहीं हो पाया था। लेकिन इस वर्ष ग्राम बरकई में बैठक कर शीतला मंदिर में माता शीतला के आदेश पर फिर इस परंपरा को 14 साल बाद प्रारंभ किया गया। यह अनोखी परंपरा बस्तर से लेकर छत्तीसगढ़ तक कहीं भी नहीं मनाया जाता हैं। यह परंपरा गांव में मालगुजार के जमाने से चली आ रही हैं। इस तालाब की लीज की राशि बकाया होने के चलते मेटेंस के रूप में इस वर्ष मछली पकड़ने आए ग्रामीणों से प्रति जाल पर 30 से लेकर 50 रुपया सहयोग राशि लिया गया हैं।

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