छत्तीसगढ़ में आठ द्वारों वाला अनोखा गांव, यहां दक्षिणमुखी होकर विराजी हैं मां अष्टभुजी..
माता के दर्शन करने चैत्र नवरात्रि में भक्तों की लगती है लंबी कतार
रायगढ़ । अड़भार में मां अष्टभुजी मंदिर में दक्षिणमुखी प्रतिमा विराजमान है। मंदिर को पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है। पांचवी-छठवीं शताब्दी के अवशेष इस स्थान पर मिलते हैं।
इतिहास में अड़भार का उल्लेख अष्ट द्वार के रूप में मिलता है। मां अष्टभुजी आठ भुजाओं वाली हैं, यह बात तो अधिकांश लोग जानते हैं, लेकिन देवी के दक्षिण मुखी होने की जानकारी कम लोगों को ही है।
जांजगीर-चांपा में मुंबई हावड़ा रेल मार्ग पर सक्ती से दक्षिण पूर्व की ओर 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अड़भार में अष्टभुजी माता का मंदिर प्रसिद्ध है। लगभग 5 किलोमीटर की परिधि में बसा अड़भार कई मायने में अजीब है. यहां हर 100 से 200 मीटर की खुदाई करने पर किसी न किसी देवी-देवता की मूर्तियां मिल जाती हैं, आज भी यहां के लोगों को भवन बनाते समय प्राचीन टूटी-फूटी मूर्तियां या पुराने समय के सोने-चांदी के सिक्के, प्राचीन धातु की कुछ न कुछ सामग्री के अवशेष अवश्य मिलते हैं।
आठ द्वारों के कारण गांव का नाम है अड़भार
मां अष्टभुजी की प्रतिमा ग्रेनाइट पत्थर से बनी है। आठ भुजाओं वाली मां की प्रतिमा दक्षिणमुखी भी है। नगर के लोगों ने बताया कि पूरे भारत में कोलकाता की दक्षिण मुखी काली माता और छत्तीसगढ़ में जांजगीर-चांपा से अलग हुए नवीन सक्ती जिले के मालखरौदा ब्लॉक अंतर्गत नगर पंचायत अड़भार की दक्षिणमुखी अष्टभुजी देवी के अलावा और कहीं भी देवी की प्रतिमा दक्षिणामुखी नहीं है। सिद्ध जगत जननी माता अष्टभुजी का मंदिर दो विशाल इमली पेड़ों के नीचे स्थित है।
मंदिर में देगुन गुरु की प्रतिमा भी दक्षिणमुखी
मूर्ति के ठीक दाहिने और डेढ़ फीट की दूरी में देगुन गुरु की प्रतिमा योग मुद्रा में विराजजी है। प्राचीन इतिहास में 8 द्वार का उल्लेख अष्ट द्वार के नाम से मिलता है।
अष्टभुजी माता का मंदिर और इस नगर के चारों ओर बने 8 विशाल दरवाजों की वजह से इसका प्राचीन नाम अष्ट द्वार रखा गया होगा और धीरे-धीरे अपभ्रंश होकर इसका नाम अड़भार हो गया।
मां अष्टभुजी मंदिर में दक्षिणमुखी प्रतिमा विराजमान है। मंदिर को पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है। पांचवी-छठवीं शताब्दी के अवशेष इस स्थान पर आज भी मिलते हैं।