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भाटापारा विधानसभा को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। इस गढ़ में फतह हासिल करने के लिए कई दिग्गज कांग्रेसी सक्रिय हो गए हैं। सरकार के एक मंत्री, दो निगम-मंडल के अध्यक्ष सहित कई नेताओं ने यहां अपना ध्यान केंद्रित किया है। वैसे भी रायपुर शहर के नेताओं की नजर भाटापारा पर लगी रही है। दिवंगत श्यामाचरण शुक्ला और राधेश्याम शर्मा यहां से चुनाव जीत चुके हैं। इस बार भी बाहरी नेता भटापारा में टकटकी लगाए हुए हैं।
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बस्तर से कुलपति क्यों नहीं
छत्तीसगढ़ सरकार और राजभवन के बीच कई मुद्दों को लेकर टकराहट रहती है, उसमें एक कुलपति पद पर नियुक्ति को लेकर इस बार कुछ मंत्रियों व सामाजिक लोगों ने भी मोर्चा खोल दिया है। आदिवासी समाज के मंत्रियों ने अपने समाज के दिग्गजों को फटकार लगाते हुए कहा कि बार-बार राजभवन जाकर ज्ञापन देते हो कभी बस्तर से कुलपति बनाने की मांग क्यों नहीं करते। क्या कुलपति पद के लिये कोई छत्तीसगढिय़ा नहीं मिल रहा है। राजभवन में आदिवासी समाज की विभिन्न समस्याओं को लेकर गहन मंथन हो रहा है।
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वामपंथियों का दबदबा
कांग्रेस की विचाराधारा से जुड़े लोगों में अचानक छटपटाहट देखने को मिल रही है। इन लोगों का मानना है कि धीरे-धीरे कांग्रेस में वामपंथ विचारधारा के लोगों का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने अपने बौद्धिक प्रकोष्ठ को वामपंथियों के हवाले कर दिया है। हाल में छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक परिषद का गठन हुआ है, उसमें भी अधिकांश गैर कांग्रेसी विचारधारा के लोगों को जगह मिल गई। परंपरागत कांग्रेसी दरकिनार कर दिए गए। ऐसे में उनका नाराज होना तो स्वाभाविक है।
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मंत्री तक उपेक्षा कर रहे
क्या विधानसभा अध्यक्ष डॉ.चरणदास महंत नाखुश हैं? हालांकि उन्होंने अपनी नाखुशी का इजहार कभी नहीं किया, लेकिन चर्चा है कि सरकार के स्तर पर उनकी सिफारिशों को पर्याप्त महत्व नहीं मिल रहा है। यद्यपि उनकी सिफारिश पर दो जिलों का गठन भी हुआ है। मगर उनसे जुड़े लोग मानते हैं कि कुछ सीनियर मंत्री तक उनके पत्र को अनदेखा कर रहे हैं। इसमें सच्चाई कितनी है, यह तो पता नहीं, लेकिन कुछ अंदाजा सदन की कार्रवाई से लग सकता है। फिलहाल तो जानकारों की नजर सोमवार से शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र पर है।
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मीडिया विभाग में घोटाला
एक राजनीतिक दल के मीडिया विभाग में बड़े घोटाले की जमकर चर्चा हो रही है। बताते हैं कि मीडिया प्रमुख ने दीवाली के ठीक पहले मीडिया कर्मियों को देने के लिए 10 लाख जुटाए थे। सीनियर विधायकों ने भी इसमें सहयोग किया था, लेकिन अब जब विधायकों ने अपने संपर्कों को टटोला तो ज्यादातर मीडिया कर्मियों ने किसी तरह का लिफाफा मिलने से इंकार कर दिया। मीडिया प्रमुख ने तो ज्यादातर को शंकर नगर बंगले भेज दिया था। अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर 10 लाख कहां गए। दल के प्रमुख लोग अब मीडिया प्रमुख पर भी शक करने लग गए हैं। अब इस गड़बड़ी के बाद मीडिया प्रमुख को हटाने की कोशिश भी शुरू हो गई है, लेकिन एक बड़े नेता का वरदहस्त होने के कारण बदलना आसान नहीं है।