
भोपाल।कोई भी उपभोक्ता बीमा कंपनी से बीमा इसलिए लेता है कि मुश्किल समय में उसके काम आए, लेकिन जब बीमा कंपनी क्लैम देने से इन्कार कर दे तो फिर लोगों का भरोसा खत्म हो जाता है। हाल में ऐसे ही एक मामले में समझौता हुआ, जिसमें एक उपभोक्ता ने भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) से बीमा कराया, लेकिन उसकी मौत के बाद पत्नी को क्लेम की राशि नहीं मिली। पत्नी ने 18 साल तक मामले में लड़ाई लड़ी, तब जाकर उसे न्याय मिला। राज्य उपभोक्ता आयोग ने फैसला सुनाया है कि बीमा कंपनी उपभोक्ता को एक लाख 25 हजार बीमा राशि वर्ष 2003 से दस फीसद ब्याज के साथ लौटाएगी। साथ ही बीमा कंपनी को सभी प्रकार के लाभ और मानसिक क्षतिपूर्ति राशि पांच हजार रुपये व एक हजार वाद व्यय भी देना होगा।राज्य उपभोक्ता आयोग में बीमा धारक की पत्नी ने एलआइसी के खिलाफ वर्ष 2003 में प्रकरण्ा लगाया था। इससे पहले उन्होंने जिला उपभोक्ता आयोग में केस लगाया था, जहां से हारने के बाद उन्होंने राज्य उपभोक्ता आयोग से गुहार लगाकर लंबी लड़ाई लड़ी। आयोग के अध्यक्ष शांतनु एस केमकर, सदस्य एसएस बसंल की बेंच ने 18 साल बाद इस मामले में फैसला सुनाया। दरअसल, बैतूल जिले के सारनी की रहने वाली गीता जोजे ने एलआइसी के खिलाफ याचिका लगाई थी। गीता के पति ने एलआइसी से 31 जनवरी 1998 में बीमा लिया था। उनकी मौत वर्ष 2000 में दिल का दौरा पड़ने से हो गई थी। पत्नी ने जब क्लैम किया बीमा कंपनी ने राशि देने से इन्कार कर दिया। मामले में कंपनी ने तर्क रखा कि उपभोक्ता ने बीमा लेने से पहले 10 से 12 वर्ष पुरानी बीमारी के बारे में छुपाया था। हालांकि इस संबंध में बीमा कंपनी कोई भी प्रामाणिक दस्तावेज भी प्रस्तुत नहीं कर पाई। आयोग ने कहा कि जब कोई भी मरीज अस्पताल में भर्ती होता है और डिस्चार्ज होता है तो मरीज के पूरे तथ्य उल्लेखित रहते हैं। उपभोक्ता पहले से किसी बीमारी से पीड़ित था। इस संबंध में बीमा कंपनी सिद्ध नहीं कर पाई। आयोग ने आदेश में यह भी कहा कि पहले ही बीमा कंपनी राशि देने में देर कर चुकी है। अब अगर आदेश के बाद दो माह के अंदर पालन नहीं होगा तो बीमा कंपनी को 12 फीसद ब्याज के साथ राशि लौटानी होगी।