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भाजपा के पिच पर क्या कांग्रेसी खेल रहे!संदर्भ ढाई-ढाई साल फार्मूला

संदर्भ- ढाई-ढाई साल फार्मूला

रायपुर।भाजपा को फायदा कांग्रेसी क्षत्रपों के वर्चस्व की लड़ाई को हवा देने में होती है। छत्तीसगढ़ में इसी रणनीति पर काम कर रही है, वहीं कांग्रेस हाईकमान की यह परंपरा भी कर रही है कि क्षत्रपों को आपस झगड़ा कराओं और मजा लों। इस झगड़े को निपटाने में कांग्रेस हाईकमान के विलंब होने से कई राज्यों में नुकसान भी उठाना पड़ता है। ढाई साल के फार्मूले ओर उसके अंदरूनी राजनीति पर वरिष्ठ पत्रकार हरीश तिवारी की विशेष रिपोर्ट पढ़ियें। किस तरह टीएस की नाराजगी को भाजपा भूनाने लगी है और भूपेश के सामने क्या मजबूरी है? क्या कमजोरी है।
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ये अच्छी तरह से जान गया है कि यदि 2023 का विधानसभा चुनाव भूपेश बघेल के नेतृत्व में हुआ तो भाजपा के लिये जीतना कठिन हो जायेगा क्योंकि छत्तीसगढ़ की जनता से भूपेश बघेल जैसे कनेक्ट हो पाते हैं जैसा छत्तीसगढ़िया ब्रांड उन्होंने बनाया है हर तरीके से बीस साबित होते भूपेश बघेल की पैठ ग्रामीण इलाकों खासकर किसानों में तेजी से बढ़ा रहा है। इसको भाजपाई खुले जुबान से स्वीकार करने लगे है। वैसा किसी और दावेदारों के लिये कर पाना संभव नहीं है। यही कारण है कि भाजपा चाहती है कांग्रेस के गुटीय झगड़े बढ़े और भाजपा की जीत आसान हो पाये।
सत्तारूढ़ दल अपने ही मुख्यमंत्री को बदल देता है तो इससे पार्टी और सरकार के अंदर की अस्थिरता का साफ संदेश जनता में जायेगा इसे दुष्प्रचारित करके भी भाजपा राजनीतिक लाभ कमाना चाहती है। यही वजह है कि कुछ लोगों द्वारा इस फार्मूले को जोर शोर से उठाया गया है और दिल्ली में ऐसा माहौल दिखाया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में भी राजस्थान और पंजाब जैसी अंदरूनी कलह चल रही है, जबकि छत्तीसगढ़ में पूरी कांग्रेस भूपेश बघेल के नेतृत्व में एकजुट है और कई अच्छी योजना लाकर छत्तीसगढ़ियों का दिल जीत लिया है, वहीं भाजपा में पिछले दो दशकों बाद भी छत्तीसगढ़िया रंग चढ़ नहीं पाया है।

क्या सब डोल रहा है?

5 अगस्त को नई दिल्ली में जिस तरह बाबा ने अपने समर्थकों के माध्यम से राहुल गांधी की रैली में अपने पक्ष में शक्ति प्रदर्शन करते हुए नारेबाजी करवाई उससे यह स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ डोले न डोले, बाबा के समर्थकों का सब्र जरूर डोल रहा है और वे अब एक ऐसे निर्णायक मोड़ पर आ चुके हैं जहॉं से वापस लौटना अब उनके लिये संभव नहीं है, इसलिये पार्टी द्वारा लाख नकार दिये जाने के बावजूद वे ढाई साल फार्मूला को जिंदा रखना चाहते हैं ताकि इसी बहाने से उनके पावरफुल होने का भ्रम बना रहे। हालांकि छत्तीसगढ़ में उन्हें पंचायत और स्वास्थ्य जैसे दो बहुत महत्वपूर्ण और शक्तिशाली मंत्रालय सौंपे गये थे परंतु फारमेंस उस तरह नहीं दिख रहा है इससे उनके प्रशासन चलाने के तरीके का भी विश्लेषण हो रहा है। टीएस बाबा ने घोषणापत्र समिति के अध्यक्ष बनने के बाद जनभावनाओं के अनुरूप घोषणापत्र बनाकर माहौल तयौर किया। घोषणा पत्र हर राजनीतिक दल चुनाव के समय बनाते हैं परंतु कांग्रेस की घोषणा पत्र की चर्चा कुछ ज्यादा होने से अब सरकार के लिये सिरदर्द साबित हो रहा है। बाबा नेक इंसान के रूप उभरे है लेकिन प्रशासन चुस्त घुड़सवार चाहती है। कोरोनाकाल के चलते वित्तीय संकट के बीच कम समय में महती योजनाओं व घोषणा पत्र को मूलरूप देना भूपेश बघेल के लिये बड़ी चुनौती बन गई है।
राजनीतिक विश्लेषक यह मानते है कि भाजपा और सिंहदेव के समर्थक लगातार यह हवा फैला रहे हैं कि मुख्यमंत्री चयन के समय राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने आश्वासन दिया था कि ढाई साल बाद बाबा को मुख्यमंत्री बनाया जायेगा। पिछले एक साल से हर दो तीन महीनों में सिंहदेव गुट के नेता कार्यकर्ता और भाजपा के लोग इसी संबंध में सोशल मीडिया, मीडिया और जन चर्चाओं के माध्यम से ढाई साल फार्मूले को हवा देकर आयना स्वार्थ पूरा करने में लगी है। हाल ही में जून 2021 में सरकार के ढाई साल पूरे होने पर प्रदेश प्रभारी महासचिव पी.एल. पुनिया सहित उच्च स्तर पर ढाई साल फॉर्मूले को सिरे से नकार दिया गया। फिर भी विवाद क्यों यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है। इसे क्रिकेट के मैच की तरह विश्लेषण किया जाये तो कहा जा सकता है कि भाजपा ने अपना पिच तैयार कर लिया है कांग्रेसी अगर गलत बाल फेकेंगे तो आऊट कांग्रेस पार्टी होगी। इसी तरह ही ताना-बाना तैयार किया जा रहा है।
हाल ही में जब आदिवासी विधायक बृहस्पति सिंह की फॉलो गार्ड पर टी.एस.सिंहदेव के रिश्तेदार द्वारा हमला किये जाने की घटना हुई, तब भी भाजपा ने इस बात पर हंगामा नहीं किया कि आदिवासी विधायक पर हमला हुआ, बल्कि इस बात को लेकर हंगामा किया गया कि आदिवासी विधायक ने टी.एस.सिंहदेव पर हमला करवाने का आरोप लगाया, भाजपा की रणनीति व राजनीतिक को बारीकी से समझने कांग्रेस के शुभचिंतकों का कहना है कि रणनीति का एक हिस्सा है जैसा वह गैर भाजपा शासित राज्यों में करती आयी है। गैर भाजपा राज्यों में सत्ताधारी दल में असंतोष और विघटन को बढ़ावा देकर, सत्तारूढ़ दल को तोड़कर भाजपा की सरकार बनाने का काम विगत कुछ समय में देश के विभिन्न राज्यों में हमने देखा है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पास इतना बड़ा बहुमत है कि भाजपा सरकार तो नहीं बदल सकती, परंतु भाजपा मुख्यमंत्री बदलवाने की कवायद में अहम भूमिका तो निभा ही सकती है।
अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि भाजपा की स्थिति आज छत्तीसगढ़ में कमजोर हो गई है, भाजपा ने सर्वे कराकर यह पता लगाने की कोशिश की भूपेश के सामने किस नेता को खड़ा किया जाये भाजपा का संगठन कमजोर होने से राष्ट्रीय नेता भी नाराज चल रहे हैं। जिस तरीके से भाजपा को मुद्दा उठाना चाहिए उसमें भी असफल साबित होते जा रहे है। ऐसे में केन्द्रीय एजेंसी की गतिविधियों पर ही सबकी नजर है और भाजपाइयों को भरोसा है। भाजपा के कोर वोट बैंक ओबीसी में भूपेश बघेल ने बड़ी सेंध लगा दी है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भूपेश बघेल की क्षमताओं व रणनीति से अच्छी तरह से वाकिफ है। हाल में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन ने कहा कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री का किसान चेहरा होना हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
हाल ही में बृहस्पति सिंह पर हुए हमले में अपने रिश्तेदार के आरोपी होने और स्वयं पर लगे आरोपों के बाद सदन से परंपरा के विरूद्ध जाकर वॉक आउट करके  सिंहदेव ने विपक्षी दलों को अच्छा अवसर दिया कि वे सरकार पर प्रहार कर सकें। इन बातों से यह स्पष्ट है कि कांग्रेस को एक प्रकार से दो विपक्षों का सामना करना पड़ रहा है, एक भाजपा, जेसीसी और बसपा जैसे प्रतिरोधी हैं, दूसरी तरफ कांग्रेस के ही अंदर के सरकार विरोधी महत्वाकांक्षी नेता हैं।

राजनीति के दांव-पेच

भाजपाईयों ने अभी तक अपनी हिम्मत नहीं हारी है, शायद इसलिए बाबा ने भी हिम्मत दिखाई है, छत्तीसगढ़ की राजनीति में वे सरकार के विरोधी स्वर बीच बीच में मुखर करते रहे हैं।
जैसे ही आलाकमान ने भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाना तय किया, एक नया शिगूफा छेड़ दिया गया कि सरकार के ढाई साल तक भूपेश बघेल मुख्यमंत्री रहेंगे और अगले ढाई साल टी.एस.सिंहदेव प्रदेश की कमान संभालेंगे। जिसके कारण वे बीच-बीच में सरकार एवं पार्टी से पृथक अपनी राय और धारणायें व्यक्त करते रहे। उन्होंने बार बार ये दर्शाने की कोशिश की कि वे कांग्रेस की जन घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष थे और उसकी घोषणाओं की पूर्ति नहीं हो रही हैैं, उन्होंने शिक्षा कर्मियों के नियमितिकरण, किसानों को धान का समर्थन मूल्य बोनस जैसे मुद्दों को लेकर अपना इस्तीफा तक दे देने की बात कही, वहीं सरगुजा में लेमरू एलीफेंट प्रोजेक्ट को लेकर स्थानीय जनता के साथ उठाया। कलेक्टर को पत्र भी लिखा। बीच-बीच में टी.एस.सिंहदेव के राजनीति से सन्यास लेने की भी बातें सुनने में आती है। यहॉं तक कि अंबिकापुर विधानसभा क्षेत्र में वे अपने रिश्तेदार को तैयार कर रहे हैं, हाल ही में बाबा के खास राकेश गुप्ता ने आदि बाबा के लिये जिला पंचायत उपाध्यक्ष का पद भी छोड़ दिया। अंबिकापुर में यह माना जा रहा है कि टी.एस. बाबा अपनी विरासत आदि बाबा को देकर रिटायर होने वाले हैं। यह शिगूफा है या हकीकत यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है।
सीएम की कुर्सी के लिए झगड़ा
मुख्यमंत्री चयन की रस्साकशी में सारे आयामों पर विचार करने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री के ताज से नवाज़ा, जिन्होंने थकी हारी, हताश और निष्कि्रय पड़ी कांग्रेस पार्टी में नया जोश भरा था उन्हें भाजपा सरकार के खिलाफ सड़क पर लाया था, सरकार की सारी असफलताओं को पार्टी के तंत्र और मीडिया के सहारे जन जन तक पहुंचाया था। वो भूपेश बघेल थे जिन्होंने कभी तत्कालीन भाजपा सरकार के साथ संबंध मधुर बनाये रखने की लेश मात्र भी कोशिश नहीं की। अपनी माता और पत्नी सहित ई.ओ.डब्ल्यू में बैठना पड़ा, जेल जाना पड़ा परंतु वे कभी झुके नहीं। प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के पहले से भूपेश बघेल तत्कालीन भाजपा सरकार के निशाने पर रहे। उनके खिलाफ सरकार ने केस दर्ज करवाये, इसी का लाभ कांग्रेस को और भूपेश बघेल दोनों को हुआ है। दिवंगत नेता नंदकुमार पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए जिस तरह से पार्टी को मजबूत करते हुए भाजपा के खिलाफ खड़ा किया था इस अधूरे काम को भूपेश बघेल के संघर्ष ने पूरा किया।

  • टी.एस.सिंहदेव क्लास के लीडर हैं जबकि भूपेश बघेल मास लीडर हैं।
  • सिंहदेव हजार करोड़ के मालिक महाराजा हैं, भूपेश बघेल किसान और जमीनी नेता।
  • सिंहदेव क्षत्रीय जाति के नेता हैं, जबकि भूपेश बघेल ओबीसी की प्रमुख कुर्मी जाति के ठेठ छत्तीसगढ़िया नेता।
  • सिंहदेव पॉलिश्ड और सौम्य हैं, जबकि भूपेश बघेल जेन्यूइन लेकिन एग्रेसिव।
  • सिंहदेव 70 साल के हैं लेकिन भूपेश बघेल 6¸0 साल के हैं जिनका उर्जा का स्तर अभी बहुत बाकी है, जो आने वाले और 15 साल तक भाजपा का कड़ी टक्कर दे सकते हैं।

भूपेश बघेल छत्तीसगढ़िया संस्कृति के ब्रांड एम्बेसेडर के रूप में स्थापित हो चुके हैं जबकि सिंहदेव को लोग अब भी सरगुजा रियासत के महाराज साहब मानते हैं।
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रचंड बहुमत से हुई जीत ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में खलबली मचा कर रख दी थी। 15 साल के शासन के बाद एंटी इन्कम्बेंसी फैक्टर से जूझ रही भाजपा की बुरी तरह हार गई थी। 2013 में झीरमघाटी नक्सली हमले में अपने नेताओं की एक पूरी पीढ़ी को खो चुकी कांग्रेस में इस प्रचंड जीत के बाद जश्न का माहौल था, वहीं लोगों को कौतूहल भी था कि प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा? कुर्सी तो किसी एक को मिलना था और चेहरे कई थे, भूपेश बघेल, डॉ. चरणदास महंत, ताम्रध्वज साहू और टी.एस.सिंहदेव। देश में कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो रही है, तब छत्तीसगढ़ जैसे मजबूत कांग्रेस के गढ़ को बनाए रखने के लिए भाजपा की रणनीति को समझना होगा और कांग्रेस नेताओं को अपने निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर जनता के बेहतरी के लिए काम करके दिखाना होगा।

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