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CAR DEFECT CASE CG : लेक्सस कार में खराबी पर उपभोक्ता आयोग का बड़ा फैसला …

CAR DEFECT CASE CG : Consumer Commission’s big decision on Lexus car defect…

रायपुर, 4 अक्टूबर 2025। छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने लेक्सस RX350H हाइब्रिड कार में मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट पाए जाने पर बड़ा फैसला सुनाया है। आयोग ने लेक्सस इंडिया और टोयोटा किर्लोस्कर मोटर को आदेश दिया है कि वे 45 दिनों के भीतर खरीदार को समान मॉडल की नई कार उपलब्ध कराएं या ₹1.11 करोड़ (कार की कीमत ₹1,01,31,174 + पंजीयन शुल्क ₹9,95,000) 6% वार्षिक ब्याज के साथ लौटाएं।

इसके अलावा आयोग ने मानसिक पीड़ा के लिए ₹50,000 और वाद व्यय के रूप में ₹15,000 अतिरिक्त भुगतान का भी निर्देश दिया है।

मामला क्या है

रायपुर स्थित शिवालिक इंजीनियरिंग लिमिटेड ने 13 अक्टूबर 2023 को यह हाइब्रिड कार अपने सीएमडी के लिए खरीदी थी। यह छत्तीसगढ़ में उस मॉडल की पहली लेक्सस हाइब्रिड कार थी। खरीद के तुरंत बाद ही गाड़ी में गंभीर तकनीकी खराबियां सामने आईं –

स्टार्टिंग में दिक्कत,

चलते-चलते इंजन बंद हो जाना,

बैटरी से करंट लीक होना।

पंजीयन में भी छह महीने की देरी हुई, क्योंकि निर्माता ने दस्तावेज समय पर नहीं भेजे। कंपनी ने कार को भुवनेश्वर सर्विस सेंटर भेजा, लेकिन चार महीने बाद लौटी कार में डेंट और स्क्रैच थे तथा खराबियां जस की तस रहीं।

आयोग की जांच में क्या निकला

आयोग ने पाया कि कार में मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट था और कंपनियां उसे ठीक करने में असफल रहीं। शिवालिक इंजीनियरिंग ने स्वतंत्र तकनीकी जांच रिपोर्ट पेश की, जिसका कोई ठोस खंडन कंपनियों ने नहीं किया।

टोयोटा किर्लोस्कर ने यह दलील दी कि खरीदार “कंपनी” होने के कारण उपभोक्ता नहीं है, और बैटरी वारंटी के तहत समस्या सुलझा दी गई थी। लेकिन आयोग ने यह तर्क खारिज करते हुए कहा कि वाहन निजी उपयोग के लिए खरीदा गया था, इसलिए मामला उपभोक्ता अधिकारों के दायरे में आता है।

आयोग का आदेश

45 दिनों में नई कार (समान मॉडल) उपलब्ध कराएं या

₹1.11 करोड़ की पूरी राशि 6% ब्याज सहित लौटाएं।

देरी होने पर ब्याज दर 9% लागू होगी।

मानसिक पीड़ा हेतु ₹50,000 और मुकदमे के खर्च के लिए ₹15,000 अतिरिक्त मुआवजा।

आयोग का स्पष्ट संदेश

आयोग ने कहा कि निर्माण दोष (Manufacturing Defect), सेवा में कमी, या अनुचित व्यापार व्यवहार जैसे मामलों में कंपनियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा। यह फैसला उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के क्षेत्र में एक मिसाल साबित हो सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

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