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NCERT के विशेष मॉड्यूल पर विवाद: किसे बताया गया विभाजन का जिम्मेदार, आखीर विरोध क्यों?

नई दिल्ली। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने भारत के विभाजन को लेकर दो विशेष मॉड्यूल्स जारी किए हैं। विभाजन विभिषिका दिवस (14 अगस्त) के दिन को याद करते हुए इन दो मॉड्यूल्स में भारत विभाजन की वजह के साथ इसके पीछे जिम्मेदार चेहरों का भी जिक्र किया गया है। एनसीईआरटी की तरफ से हाल ही में कक्षा सात और कक्षा आठ की किताबों में बदलाव को लेकर जारी विवाद के बीच अब इन विशेष मॉड्यूल्स को लेकर भी सियासी सरगर्मियां शुरू हो गई हैं।

 

 

ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर एनसीईआरटी ने जो दो मॉड्यूल रिलीज किए हैं, उनमें विभाजन को लेकर क्या कहा गया है? इसके जो दो प्रारूप (वर्जन) निकाले गए हैं, उनमें क्या-क्या बातें कही गई हैं? इसे लेकर विवाद क्यों हो रहा है? राजनीतिक दलों के नेताओं का इस पर क्या कहना है? आइये जानते हैं…

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एनसीईआरटी के दो मॉड्यूल किसे पढ़ाए जाएंगे?

एनसीईआरटी ने जो दो मॉड्यूल निकाले हैं, वह एनसीईआरटी की मौजूदा पाठ्यक्रम की किताबों (टेक्सटबुक) से अलग हैं। यानी बच्चों को ये प्रारूप किताबों से अलग पढ़ाए जाएंगे। पहला प्रारूप मध्य कक्षाओं (मिडिल स्टेज) यानी कक्षा 6-8 के लिए है। वहीं, दूसरा प्रारूप माध्यमिक कक्षाओं (सेकेंड्री स्टेज) यानी 9 से 12 के लिए है।

दोनों मॉड्यूल में कहा क्या गया है?

 

1. मिडिल स्टेज- मध्य कक्षाओं के लिए

मध्य स्टेज यानी कक्षा 6 से 8 के बच्चों को अब सामाजिक विज्ञान (सोशल साइंस) में इतिहास के पाठों से अलग भारत के विभाजन से जुड़ा मिडिल स्टेज मॉड्यूल भी पढ़ाया जाएगा। इसमें विभाजन से जुड़ी शुरुआती और मध्यम स्तर की जानकारी दी गई है। जैसे विभाजन कैसे हुआ? इससे देश को क्या नुकसान हुए? वगैरह। हालांकि, जिस शीर्षक और उसकी सामग्री को लेकर विवाद हो रहा है, वह है- विभाजन के दोषी। इसमें बताया गया है कि विभाजन किसी एक व्यक्ति का काम नहीं था। भारत के विभाजन के लिए तीन तत्व जिम्मेदार थे। पहला- जिन्ना, जिन्होंने इसकी मांग की। दूसरा- कांग्रेस, जिसने इसे माना और तीसरा- माउंटबेटन, जिन्होंने इसे लागू किया।

 

इसमें आगे कहा गया, “माउंटबेटन एक बड़ी गड़बड़ी के दोषी साबित हुए। उन्होंने सत्ता हस्तांतरण का समय जून 1948 से घटाकर अगस्त 1947 कर दिया। उन्होंने इस पर सब को सहमत कर लिया। इससे विभाजन से पहले पूरी तैयारी नहीं हो सकी। विभाजन की सीमाओं का सीमांकन भी जैसे-तैसे हुआ। उसके लिए सीरल रेडक्लिफ को केवल पांच सप्ताह दिए गए। पंजाब में लाखों लोगों को 15 अगस्त 1947 के दो दिन बाद भी पता न था कि वे भारत में हैं, या पाकिस्तान में? ऐसी जल्दबाजी बहुत बड़ी लापरवाही थी।”

किताब में कांग्रेस की गलती बताते हुए कहा गया, “कांग्रेस नेता माने हुए थे कि विभाजन तो असंभव है। पर उन्होंने मुस्लिम लीग की हिंसा से चिंतित होकर विभाजन को मान लिया। दुर्भाग्यवश उसके कारण और भी अभूतपूर्व हिंसा और तबाही हुई।” इसमें आगे कहा गया, “भारतीय नेताओं ने अपने हाथों से भारत का एक बड़ा भाग, करोड़ों नागरिकों समेत, देश से बाहर कर दिया। यह इतिहास में अपनी तरह की घटना थी, जब किसी देश के नेताओं ने बिना किसी युद्ध के, आपस में बैठकर, करोड़ों लोगों को एकाएक देश से काट दिया। यह बहुत बड़ी भूल साबित हुई।”

2. सेकेंड्री स्टेज- माध्यमिक कक्षाओं के लिए

माध्यमिक स्टेज यानी कक्षा 9 से 12 के लिए इस मॉड्यूल में विभाजन विभिषका के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें बताया गया है कि विभाजन का प्रभाव कितने लोगों पर पड़ा? इसमें नुकसानों को भी अलग-अलग शीर्षकों में बांटा गया है, मसलन- सामाजिक हानि, आर्थिक हानि और दीर्घकालिक हानि, जिसे आज भी जारी बताया गया है। इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान के अलग देश बनने के बावजूद 3.5 करोड़ मुसलमान भारत में ही रह गए। इसके चलते सांप्रदायिक राजनीति वैसी की वैसी बनी रही।

 

 

 

इसमें कहा गया, “फलस्वरूप भारत को आज भी बाहरी शत्रुता और भीतरी सांप्रदायिक विभाजन दोनों से जूझना पड़ता है। वही संदेह, द्वेष और शत्रुता भावना आज भी जीवित है, जो उस समय विभाजन का कारण बनी थी।” इसमें विभाजन से कश्मीर की स्थायी समस्या पैदा होने का भी जिक्र किया गया है, जो कि विश्व भर में चर्चित हुई है और भारत की राजनीति, कूटनीति, सैन्य तंत्र और अर्थव्यवस्था पर आज भी बोझ बनी हुई है। इसे विभाजन का परिणाम बताया गया है और कहा गया है कि इससे पहले तक कश्मीर एक शांतिपूर्ण क्षेत्र था।

इस मॉड्यूल में भी भारत के विभाजन के दोषियों से जुड़ा शीर्षक है। इसमें भी जिन्ना, कांग्रेस और माउंटबेटन को जिम्मेदार कहा गया है। इसमें बकायदा तर्क देते हुए कहा गया है कि ब्रिटिश सरकार ने अंत तक भारत को एक बनाए रखने के विविध प्रयास किये। वायसराय लिनलिथगो और वायसराय बावेल दोनों विभाजन के विरुद्ध थे। लंदन में प्रधानमंत्री क्लेमेंट इटली की सरकार ने भी मई 1947 तक भारत को एक रखने के लिए विभिन्न प्रयास किए। कांग्रेस ने विभाजन को मुख्यत हिंसा से बचने के लिए ही स्वीकार किया। एक बात का लगभग पूरा दोष माउंटबेटन पर जाता है। उन्होंने ही सत्ता-हस्तांतरण की तिथि को जून 1948 से घटाकर अगस्त 1947 कर दिया। इसके लिए उन्होंने सभी पक्षों से सहमति भी प्राप्त कर ली इस कारण विभाजन से पूर्व की अनेक आवश्यक व्यवस्थाएं करने का काम नहीं हुआ।

 

 

गांधी, नेहरू और पटेल के बारे में क्या लिखा?

1. महात्मा गांधी

एनसीआईआरटी के मॉड्यूल में महात्मा गांधी के कुछ कथनों का जिक्र किया गया है। जैसे- “अगर कांग्रेस विभाजन को स्वीकर करना चाहती है तो यह मेरी सलाह के विरुद्ध होगा। लेकिन मैं इसका विरोध न हिंसा से करुंगा और न क्रोध से।”

 

किताब में कहा गया है कि 14 जून 1947 को गांधी विशेष रूप से कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में शामिल हुए और उन्होंने वहां के सदस्यों को विभाजन स्वीकार करने के लिए मनाया, जबकि वे उस समिति के सदस्य भी नहीं थे। कार्यसमिति के अधिकांश सदस्य विभाजन के विरोध में थे, लेकिन गांधी जी ने वरिष्ठ नेताओं को मनाया।

 

 

2. जवाहरलाल नेहरू

किताब में कहा गया है कि नेहरू और पटेल ने गृहयुद्ध की अराजकता की आशंका से विभाजन स्वीकार कर लिया। उनके स्वीकार करने के बाद गांधी जी ने भी विरोध छोड़ दिया। इसके बाद ही उन्होंने कार्यसमिति के सदस्यों को मनाया। किताब में नेहरू के एक भाषण का जिक्र किया है, जिसमें उन्होंने कहा था, “हम ऐसे मोड़ पर आ पहुंचे हैं, जहां या तो हमें विभाजन स्वीकार करना होगा, या निरंतर झगड़े और अराजकता का सामना करनाहोगा। विभाजन बुरा है, लेकिन एकता की कोई भी कीमत गृहयुद्ध की कीमत से कहीं कम होगी।”

 

किताब में एक जगह कहा गया है- कांग्रेस नेताओं ने विभाजन की संभावना को असंभव मान रखा था। यह भी कारण था कि नेहरू ने जिन्ना के प्रयाद को एक दबाव की रणनीति मात्र ही समझा। मार्च 1947 तक नेहरू ने जिन्ना को मामूली नेता ही माना।

 

 

3. सरदार पटेल

एनसीईआरटी के मॉड्यूल में विभाजन को लेकर सरदार वल्लभभाई पटेल के वक्तव्य का भी जिक्र है। उन्होंने कहा था- “मैं विभाजन के पक्ष में नहीं हूं। मैं इसके विरोध में हूं। लेकिन हमें इसे एक कड़वी दवा की तरह स्वीकार करना होगा। देश युद्धभूमि बन चुका है और दोनों समुदाय शांतिपूर्वक साथ नहीं रह सकते। गृहयुद्ध के बजाय विभाजन ही बेहतर है।”

 

इसमें पटेल को लेकर आगे कहा गया, “मार्च 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के नए वायसराय का पद संभाला। आते ही उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं बवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, और मुस्लिम लीग प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना से लगातार विचार-विमर्श किया। उन्होंने पाया कि जिन्ना पाकिस्तान की मांग पर अडिग हैं। दूसरी ओर, नेहरू और पटेल अब तक मानसिक रूप से विभाजन को समस्या समाधान के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार हो चुके थे।” इसके एक और अंश में कहा गया कि जब जिन्ना अलग पाकिस्तान की जिद पर अड़े रहे तो नेहरू और पटेल ने विवश होकर सहमति दे दी।

नए मॉड्यूल को लेकर कैसे छिड़ा है विवाद?

एनसीईआरटी के नए मॉड्यूल को लेकर राजनीतिक स्तर पर विवाद शुरू हो चुका है। इसमें कांग्रेस से लेकर भाजपा और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम तक कूद चुकी है।

 

1. कांग्रेस ने क्या कहा?

कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने कहा कि मैं एनसीईआरटी को विभाजन पर चर्चा के लिए चुनौती देता हूं। भाजपा के पास एनसीईआरटी है। वे विभाजन के बारे में कुछ नहीं जानते। प्रधानमंत्री मोदी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण और उसमें आरएसएस के जिक्र पर कांग्रेस नेता ने कहा कि यह बहुत निराशाजनक था। ऐसा लग रहा था जैसे यह उनका विदाई भाषण हो। ऐसा लग रहा था कि वह किसी को खुश करने के लिए ऐसा कह रहे हैं।

 

दूसरी तरफ कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने एक प्रेस वार्ता के दौरान पूछे गए सवाल पर आक्रामक लहजे में कहा कि ऐसी किताब को आग लगा देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने की कोशिश है।

2. भाजपा का क्या जवाब?

भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा, ‘मैं कांग्रेस से पूछना चाहता हूं…आखिरी समय में इसे (विभाजन) रोकने की शक्ति किसके पास थी?…दो-राष्ट्र सिद्धांत को हर कोई जानता है, जिसे कांग्रेस और मुहम्मद अली जिन्ना ने लागू किया था। कांग्रेस अभी भी मुस्लिम पहले और भारत के विभाजन की बात करती है।

 

भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि बंटवारा एक कड़वा सच है, जिसमें लाखों लोग मारे गए और घर तबाह हो गए। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने बंटवारे को स्वीकार कर देश को जलाया। शाहनवाज ने कहा कि आजादी की बात होती है लेकिन बंटवारे की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। बच्चों को यह जानने का हक है कि उस दौर में क्या हुआ।

3. ओवैसी ने मुद्दे पर क्या कहा?

हैदराबाद से निर्वाचित ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, शम्सुल इस्लाम की किताब ‘मुस्लिम्स अगेंस्ट पार्टिशन’ को NCERT में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विभाजन के बारे में यह झूठ बार-बार बोला जाता है। उस समय 2-3% मुसलमानों को भी वोट देने का अधिकार नहीं था और आज लोग विभाजन के लिए हमें दोषी ठहराते हैं। ओवैसी ने सवाल किया कि विभाजन के लिए हम कैसे जिम्मेदार हैं? जो यहां से भाग गए, वे भाग गए। जो वफादार थे, उन्होंने हिंदुस्तान में ही रहने का फैसला किया।

 

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4. मुद्दे पर इतिहासकार क्या बोले?

भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) के निदेशक (अनुसंधान व प्रशासन) डॉ. ओम जी उपाध्याय ने कहा कि बंटवारा सामान्य घटना नहीं थी, बल्कि इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक थी। 1.5 करोड़ लोग सीमा पार करने पर मजबूर हुए और लाखों की जान गई। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा। डॉ. उपाध्याय ने कहा कि नई पीढ़ी को सच जानना जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।

इससे पहले कब हुआ है एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम पर विवाद?

गौरतलब है कि एनसीईआरटी की तरफ से पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर विवाद पहली बार नहीं हुआ है। बीते साल भी किताबों में कुछ नई चीजों को जोड़ने और पुरानी चीजों को हटाने का मुद्दा उठाया था।

 

1. बीते साल एनसीईआरटी ने राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से बाबरी मस्जिद, गुजरात दंगे और अल्पसंख्यकों जैसे संवेदनशील विषयों को हटा दिया। पाठ्यपुस्तक से बाबरी मस्जिद, गुजरात दंगे और अल्पसंख्यकों जैसे संवेदनशील विषयों को हटाना शामिल रहा। एनसीईआरटी की पाठ्यक्रम मसौदा समिति द्वारा तैयार किए गए परिवर्तनों का विवरण देने वाले एक दस्तावेज के अनुसार, राम जन्मभूमि आंदोलन के संदर्भों को “राजनीति में नवीनतम बदलावों के अनुसार बदला गया है। इसके अलावा 2002 के गोधरा दंगों से जुड़े विषय में भी बदलाव किया गया है।

 

 

2. इस साल जुलाई में भी मुगलकाल से लेकर शिवाजी तक को लेकर इतिहास की किताबों में कुछ बदलाव किए गए। इसके अलावा दिल्ली सल्तनत से जुड़े इतिहास को बर्बर करार देने के साथ मुगल काल में बाबर, अकबर और औरंगजेब के शासनकाल को खास तौर पर असहिष्णु करार देते हुए इन्हें क्रूरता से जोड़ा गया था। हालांकि, किताब में एक दिशा-निर्देश भी जोड़ा गया था, जिसमें कहा गया है कि इतिहास के काले अध्याय को बिना किसी दुराग्रह के पढ़ा जाना जरूरी है, वह भी आज के समय में किसी को दोष दिए बिना, ताकि इतिहास की गलतियों को सुधारा जा सके और एक ऐसे भविष्ट की परिकल्पना की जा सके, जिसमें ऐसी घटनाएं नहीं होंगी।

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