चातुर्मासिक प्रवचन में विराग मुनि ने कहा – धर्म के लिए अब न वैसी श्रद्धा रही न भाव, हमने क्रियाएं ही बदल दी
In the Chaturmasik discourse, Virag Muni said – Now there is neither the same devotion nor feelings for religion, we have changed our actions only.
रायपुर। हमें प्रभु महावीर के बताए रास्ते पर चलना है। समस्या ये है कि इसके लिए जैसी श्रद्धा और भावना होनी चाहिए, अधिकांश लोगों में वह नहीं दिखती। हमें धर्म के रास्ते पर चलना था। हमने पूरी बुद्धि लगाकर धार्मिक क्रियाएं ही बदल डाली। चातुर्मास के अंतर्गत एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी में जारी प्रवचन में विराग मुनि म.सा. ने यह बातें कही।
उन्होंने इस मौके पर मूल सूत्र का वाचन किया। इसमें उन्होंने बताया गया कि पर्यूषण के आठ दिनों में कम से कम व्यापार आदि से निवृत रहें। अपना पूरा समय धर्म-आराधना में लगाएं। दिनचर्या में प्रातः प्रतिक्रमण, पूजा-प्रवचन, शाम का प्रतिक्रमण शामिल करें। मूल सूत्र की वाचना करते हुए उन्होंने बताया कि माता त्रिशला ने गर्भावस्था में अर्धरात्रि में 14 सपने देखे। इन सपनों का महत्व और माता के गर्भ में आए जीव का रहस्य भी उन्होंने समझाया। मुनिश्री ने कहा कि इन आठ दिनों में कम से कम पाप करें। अहिंसा पूर्ण जीवन जिएं। किसी की निंदा न करें। लोगों के गुणों की प्रशंसा करें। ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए। इन आठ दिनों के दौरान हमें पूरे ध्यान से कल्पसूत्र सुनना चाहिए। इसे अपने जीवन में भी उतारना चाहिए।
धर्म इस तरह करें कि आपको देखकर दूसरे भी सही रास्ते पर आ जाएं: विराग
मुनिश्री ने कहा कि सिर्फ धर्म का पालन नहीं करना है। ऐसे करना है कि आपको देखकर दूसरे भी प्रभावित हो जाएं। परमात्मा का प्राकट्योत्सव जैसे मौके आएं तो गरीब बस्तियों मिठाई बांटें। उनकी मदद करें। इससे उनके मन में जिन शासन के प्रति अहोभाव आएंगे। शासन की प्रभावना करें। आत्मकल्याण करें। साधर्मिकों के लिए हमें उदार मन से काम करना चाहिए। निस्वार्थ भाव से उनकी सेवा करनी चाहिए। जिस व्यक्ति के पुण्य का उदय हुआ हो, उसी के हाथों से यह शुभ काम होता है।
अनुष्ठान मेंं सिर्फ क्रियाएं करना काफी नहीं, मन लगाना जरूरी
मुनिश्री ने कहा, अनुष्ठान को लोग सिर्फ धार्मिक क्रिया की तरह करते हैं। ऊपर-ऊपर से दिखाते हैं कि धर्म कर रहे हैं। वास्तव में उस वक्त उनका दिमाग कुछ और सोच रहा होता है। इस तरह अनुष्ठान करने का कोई फायदा नहीं है। धार्मिक क्रियाएं पूरे मन से करें, तभी वह फलदायी होंगी। पूजा-पाठ, दान-धर्म के वक्त हमारे भीतर कैसे भाव चल रहे हैं, यह बहुत ज्यादा मायने रखता है।
4 को धूमधाम से मनाया जाएगा महावीर जन्मोत्सव
चातुर्मास समिति के अध्यक्ष पारस पारख, महासचिव नरेश बुरड़ और कोषाध्यक्ष अनिल दुग्गड़ ने बताया कि महान सिद्धि तप के अंतर्गत 6 की तपस्या पूरी हो गई है। अब 8 की तपस्या शुरू होगी। श्री ऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली ने बताया, पर्यूषण पर्व के अंतर्गत दादाबाड़ी में मूल सूत्र की वाचना की जा रही है। इसके तहत 4 सितंबर को भगवान महावीर का जन्म उत्सव मनाया जाएगा। पूरे मंदिरों को सजाया जाता है एवं रात के प्रभु भक्ति की जाती है