
छत्तीसगढ़ की राजनीति में आईएएस अफसरों की बढ़ती दिलचस्पी ने नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। तीन – चार पूर्व आईएएस पहले ही अलग अलग सीटों से ताल ठोंक रहे हैं। दो-तीन और अफसर किस्मत आजमाने के लिए वीआरएस का आवेदन लगा चुके हैं । कुछ और अफसर चुनावी मैदान में उतरने पर विचार कर रहे हैं। यानी धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। अफसरों को बुढ़ापा काटने के लिए राजनीति का क्षेत्र ही ज्यादा मुफीद लग रहा है। अफसरों की एकाएक राजनीति में बढ़ती दिलचस्पी ने बरसों से राजनीति में सक्रिय कई नेताओं की नींद उड़ा दी है। इनमें से कई ने अफसरों के कच्चे चिट्ठे एकत्रित करने भी शुरू कर दिए हैं, ताकि समय आने पर उसका उपयोग किया जा सके। सत्तारूढ़ कांग्रेस की तुलना में आईएएस अफसरों की दिलचस्पी विपक्षी भाजपा में ज्यादा दिख रही है, इसको लेकर भी अलग-अलग तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
असंतुष्टों को मनाने की कोशिश
15 बरस बाद छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी तो बहुत सारे नेताओं -कार्यकर्ताओं को पद पाने की उम्मीद थी, इनमें से कुछ की उम्मीद पूरी भी हुई। ऐसे लोग मजे में हैं भी। लेकिन बहुत सारे लोगों को तमाम कोशिशों के बावजूद कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं मिल पाई। ऐसे लोग समय समय पर अपनी पीड़ा भी अपने करीबियों को बताते रहते हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी भेंट -मुलाकात अभियान के दौरान कार्यकर्ताओं की इस पीड़ा का अहसास कर चुके हैं। आगामी चुनाव में इससे नुकसान न हो इसलिए उन्होंने कार्यकर्ता सम्मेलन में अगली सरकार में छूटे हुए नेताओं को पद देने की घोषणा कर दी। अब मुख्यमंत्री की इस घोषणा से असंतुष्ट नेता-कार्यकर्ता संतुष्ट होते हैं या नहीं ,यह आने वाले समय में पता चलेगा।
छाप नहीं, फूल नाम वाला जीतेगा…
छत्तीसगढ़ विधानसभा 90 सीटों की है । इसमें सीट क्रमांक 1 में वहीं प्रत्याशी की जीत होती है जिसका नाम फूल के अलग अलग नामों के इर्द गिर्द होता है ऐसा माना जाता है। गुलाब सिंह मनेन्द्रगढ़ विस का दो बार विधायक बनें। उसके बाद 2008 से 2013 तक फूलचंद विधायक बनें। 2013 से 2018 तक चंपादेवी विधायक रहीं और 2018 में गुलाब सिंह कमरो सोनहट विधानसभा क्रमांक 1 से विधायक है। कमल चुनाव चिन्ह भाजपा का है परंतु छत्तीसगढ़ के एक विधानसभा ऐसा भी है जहां पर प्रत्याशी के नाम के इर्द गिर्द फूल होता है। फूलों के कई नाम हैं उसमें से कोई एक नाम वाला इस विधानसभा क्षेत्र से मजबूत प्रत्याशी बनकर सामने आता है । चुनाव में विजेता होता है। आगामी विधानसभा में भाजपा चंपा देवी यानी चंपा को टिकट देने पर गंभीरता से विचार कर सकती है और उनका मुकाबला गुलाब सिंह कमरो से हो सकता है। चंपा भी फूल की एक प्रजाति है।
सरगुजा इलाके में पीए जलवा…
ऐसा माना जाता है कि सरगुजा संभाग के जनप्रतिनिधियों से अधिक पावर फुल उनके विशेष सहायक और पीए रहते हैं।
पिछले दो दशकों के इतिहास का आंकलन करें तो सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को हुआ है। आदिवासी व पिछड़े इलाके में इस क्षेत्र के भोले भाले जनप्रतिनिधि अपने विशेष सहायक के चंगुल में फंस जाते हैं। विशेष सहायकों के तीन मामले इस समय क्षेत्र में गूंज रहे हैं। एक विधायक और निगम मंडल अध्यक्ष के पीए ने हाल ही में जमीन, ट्रेक्टर,मकान व गाड़ी खरीदी है। एक मंत्री को अपने पीए के कारण दो बार शर्मिदगी उठानी पड़ी और हटाना भी पड़ा है। यहां के एक और मंत्री के विशेष सहायक इलाके के तीन विधानसभा क्षेत्र के राजनीतिक गतिविधियों पर पैनी निगाह रखे रहते हैं। यही नहीं,क्षेत्र के एक विधायक से ज्यादा उसकी पीए की चल रही है। 2008 में तो सामरी के विधायक बने सिद्धनाथ पैकरा भी कभी मंत्री के पीए थे और वो शिक्षक की नौकरी छोड़ कर राजनीति में आए।
प्रसाद को मिला प्रसाद
पर्यावरण मंडल में सदस्य सचिव के पद पर नियुक्ति को लेकर पिछले तीन साल से अनेक दिग्गज आईएफएस अधिकारी कवायद करते रहे लेकिन पिछले सप्ताह अरूण प्रसाद की नियुक्ति ने सबको चौंका दिया। सीआईडीसी के एमडी रहते सरकार के बेहद करीबी रहे प्रसाद को फिर एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल गयी है ।जबकि वर्तमान सदस्य सचिव आरपी तिवारी का रिटायरमेंट तीन माह शेष है। रिटायरमेंट से तीन महीने पहले अचानक हटाये जाने के कारणों की खोज में विशेषज्ञ लगें है। ईडी की जांच सहित कई मामलों में संस्थान को पाक साफ निभाने में अहम भूमिका निभाने वाले सदस्य सचिव को हटाये जाने से नीचे के कर्मचारी भी हतप्रभ हैं।
कांग्रेस का झगड़ा खतरनाक मोड़ पर
कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को हटाने का प्रयास लंबे समय से चल रहा है। यह प्रयास विफल होने के बाद उनके पैर कतरने की कोशिश से बवाल मच गया है। मोहन मरकाम के विश्वासपात्र रहे रवि घोष, अमरजीत चावला व श्रीवास्तव की चर्चा इस समय ज्यादा हो रही है। चुनाव के वक्त कांग्रेस संगठन में नियुक्ति को लेकर मचा बवाल अब दिल्ली पहुंच गया है। इसका असर आगामी विधानसभा के टिकिट वितरण में भी देखने को मिलेगा। मोहन मरकाम के पक्ष में कई बड़े दिग्गज खुलकर आ गये हैं। इस दो के झगड़े में तीसरे के फायदे होने की संभावनाएं भी बढ़ गयी है।
शिकायतों के बाद भी अहमियत
कई अफसर ऐसे होते हैं जिनके खिलाफ शिकायतें होती रहती है। बावजूद इसके वो महत्वपूर्ण बने रहते हैं। ऐसे ही एक आईएएस अफसर के खिलाफ शिकायत है कि वो सात महीने अपने एक दफ्तर नहीं गए, जबकि वहां सैकड़ों करोड़ के निर्माण के काम हो रहे हैं। अफसर के पास कई चार्ज भी हैं। वो अन्य दफ्तर में फाइलें बुलाकर निपटा रहे हैं। ईडी की कार्रवाई पर उनकी पैनी नजर है। इसलिए वो अतिरिक्त सर्तकता बरत रहे हैं।
शिवरतन का प्रबंधन
दुर्ग में अमित शाह की जनसभा सफल हुई, तो इसके पीछे स्थानीय प्रमुख नेताओं के बीच बेहतर समन्वय दिखा है। जिले के प्रमुख नेता प्रेम प्रकाश पांडे, सरोज पांडे और सांसद विजय बघेल के बीच आपस में खींचतान रही है। ये नेता एक-दूसरे के साथ बैठना पसंद नहीं करते हैं।
पार्टी को इस अंदाजा था और फिर समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी भाटापारा विधायक शिवरतन शर्मा को सौंपी गई। शिवरतन वहां आठ दिन रहे और सभी बड़े नेताओं के बीच समन्वय स्थापित कर सभा को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई है।