CG ELECTION 2023 : कर्नाटक के चुनाव परिणाम के बाद भाजपा में लोकल फार वोकल की मांग
CG ELECTION 2023: Demand for local for vocal in BJP after Karnataka election results
रायपुर। कर्नाटक के चुनाव परिणाम के बाद भाजपा में लोकल फार वोकल की मांग उठने लगी है। प्रदेश में सत्ता गंवाने के बाद भाजपा पूरी तरह केंद्रीय संगठन और केंद्र सरकार पर निर्भर हो गई थी। प्रदेश में भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की जगह पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। प्रदेश संगठन में भी वरिष्ठ नेताओं को किनारे करके नए चेहरों को मौका दिया है। कर्नाटक चुनाव में यह फार्मूला हिट नहीं हुआ और सत्ता चली गई। अब यह चर्चा शुरू हुई है कि स्थानीय वरिष्ठ नेताओं को प्रमुख भूमिका में रखा जाए। स्थानीय मुद्दों पर आंदोलन किया जाए, तब चुनाव में भाजपा की दमदार उपस्थिति दर्ज हो पाएगी।
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो प्रदेश में भाजपा का संगठन कमजोर नहीं हुआ है, लेकिन संगठन को दिशा देने के लिए प्रदेश स्तरीय नेताओं की स्वीकार्यता जरूरी है। वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने प्रदेश के सभी जिलों का दौरा किया। इस दौरों ने नेताओं और कार्यकर्ताओं से परिचय तो जरूर हुआ, लेकिन उसके बाद सीधा संवाद नहीं हो पाया। राज्य गठन के बाद से पहली बार किसी ऐसे नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई, जो संगठन के किसी भी वरिष्ठ पद पर नहीं रहे हैं। संगठन में बदलाव करते हुए तीन नेताओं केदार कश्यप, विजय शर्मा और ओपी चौधरी को प्रदेश महामंत्री बनाया गया। रमन सरकार में मंत्री रहे केदार कश्यप को छोड़ दिया जाए, तो वरिष्ठ नेता बाकी दो महामंत्री काे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। विजय शर्मा को युवा मोर्चा के बाद प्रदेश मंत्री और फिर महामंत्री बनाया गया है। जबकि ओपी चौधरी आइएएस की नौकरी छोड़कर आए हैं। उनको पार्टी ने खरसिया से विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया था। वह कांग्रेस नेता उमेश पटेल से चुनाव हार गए थे।
आगामी चुनाव में कांग्रेस नारायण चंदेल को बनाएगी मुद्दा
पार्टी ने छह महीने पहले नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी नारायण चंदेल को सौंपी। चंदेल के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद उनके बेटे का मामला सामने आया। भाजपा नेताओं की मानें तो इससे पार्टी की छवि पर प्रभाव पड़ा है। आगामी चुनाव में कांग्रेस इसे मुद्दा बना सकती है। भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम का मामला सामने आने के बाद मजबूती से चुनाव लड़ रही भाजपा बैकफुट पर चली गई थी और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था।
समितियों के गठन में देरी से नाराजगी
पार्टी को चुनाव संचालन समिति, घोषणा पत्र समिति का गठन करना है। चुनाव में छह महीने का समय बचा है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की मानें तो घोषणा पत्र समिति अगर हर विधानसभा का दौरा करके घोषणा पत्र बनाएगी, तो कम से कम तीन महीने का समय लगेगा। अगर समिति की अभी घोषणा होती है, तो जुलाई तक यह काम पूरा हो सकता है। उसके बाद बारिश में गांव-गांव में संवाद करना मुश्किल हो जाएगा। नेताओं का कहना है कि इस समिति में अनुभवी और युवा नेताओं की टीम को मौका दिया जाना चाहिए।
इन नेताओं की प्रदेश स्तर पर स्वीकार्यता
भाजपा के कुछ चुनिंदा नेताओं की ही प्रदेश स्तर पर स्वीकार्यता है। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री डा रमन सिंह, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, पूर्व मंत्री रामविचार नेताम प्रमुख है। वर्तमान में ये नेता किसी भी बड़ी भूमिका में नहीं हैं। वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने भाजपा छोड़ते समय यह आरोप लगाया था कि उनको कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई और पार्टी में वह सामान्य कार्यकर्ता की हैसियत से हैं।
भाजपा के आंदोलनों की हवा निकालती रही कांग्रेस सरकार
भाजपा ने पिछले एक साल में प्रधानमंत्री आवास, युवाओं को रोजगार, महिलाओं की सुरक्षा जैसे मुद्दे पर आंदोलन किया, लेकिन कांग्रेस हर मुद्दे की काट लेकर मैदान में आ गई। पीएम आवास को लेकर राज्य सरकार ने हर बेघर की गणना का अभियान शुरू किया। इसे जून तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बजट सत्र में 2500 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने के घोषणा की। इसकी पहली किस्त पिछले महीने युवाओं के खाते में पहुंच गई। भाजपा अभी तेंदूपत्ता को लेकर अभियान चलाने जा रही है। इसकी काट के रूप में कांग्रेस यह प्रचारित कर रही है कि देश में सबसे ज्यादा वनोपन की समर्थन मूल्य पर छत्तीसगढ़ में खरीदी होती है।ऐसे में भाजपा नेता अब यह मांग कर रहे हैं कि मजबूत स्थानीय मुद्दों को लेकर पूरी ताकत से विरोध करने की जरूरत है।